पुस्तक समीक्षा : कारवां मंजिल की ओर (सांझा कहानी संकलन)


‘कारवां मंजिल की ओर’ की सम्पादिका श्रीमति हिमाद्रि ‘समर्थ’ हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का शुभारंभ अनंत इच्छाओं को लेकर करता है। यह अलग बात है कि उसकी अनेक इच्छाओं में से बहुत कम ही पूरी हो पाती हैं। पर यह अनंत इच्छाएं मनुष्य को कुछ कर गुजरने के लिए अवश्य प्रेरित करती हैं। वह एक स्थान पर जड़वत होकर बैठ नहीं सकता, बल्कि उसे इच्छाओं की पूर्ति के लिए कुछ करते रहना पड़ता है। जीवन भर कुछ ना कुछ करते रहना उसके लिए अनिवार्य हो जाता है। क्योंकि कुछ ना कुछ करते रहने से ही उसे कुछ ना कुछ पाने का एहसास होता रहता है। दार्शनिकों की मानें तो यह अनंत इच्छाएं व्यक्ति को मारती हैं, पर एक सांसारिक व्यक्ति के बारे में सोचें तो अनंत इच्छाओं के वशीभूत होकर वह कई बार कुछ ऐसा कर गुजरता है जो उसे साधारण से असाधारण बना देता है।
इस पर हिमाद्रि कहती हैं कि :-

चलते जाओ नेक नीयत से
नेकी के फरिश्ते मिल ही जाएंगे,
आज बेशक अकेले हो तुम सफर में
कल कारवां भी बनते जाएंगे।

इस पुस्तक में हिमाद्रि ‘समर्थ’ ने संपादक का काम किया है। उन्होंने कुल 51 कहानियों को इसमें स्थान दिया है। जिसमें 51 लेखिकाओं की प्रतिभा को समाविष्ट किया गया है। इस प्रकार महिला सशक्तिकरण को समर्पित यह कहानी संग्रह अपने आप में अनूठा है। जिसके लिए श्रीमती हिमाद्री बधाई और अभिनंदन की पात्र हैं। “संपर्क संस्थान” इस प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है ,इसलिए संस्थान भी विशेष धन्यवाद का पात्र है।
एक कहानी “नारी नारी की दोस्त” डॉक्टर लता श्रीमाली द्वारा लिखी गई है। जिसमें कहानी कुछ इस प्रकार अपने महत्वपूर्ण संदेश की ओर आगे बढ़ती है ‘राधा ने हॉस्पिटल में कदम रखते ही भाई और भाभी को संतान होने की शुभकामना देते हुए प्रेम से राखी बांधी। राघव भैया ने शकुन के ₹2000 देते हुए आशीर्वाद दिया और पत्नी रानी से मजाक करते हुए हंसते हुए कहा – रानी तुम भी सरकार में उच्च पद पर हो तो तुम भी ₹2000 तक राखी के शकुन के मेरे बराबर तो दोगी ? रानी ने मुस्कुराते हुए राधा को पास बुलाया और कहा – हाथ आगे करो दीदी, यह लो आपका शकुन।’ सभी आश्चर्य से अविश्वसनीय तरीके से रानी की ओर देखने लगे। रानी ने कहा – राधा दीदी! आज रक्षाबंधन पर ईश्वर ने यह तोहफा मेरी तीसरी संतान के रूप में आपके लिए भेजा है। यह आज मेरी तरफ से रक्षाबंधन का शकुन है। आपके कोई संतान नहीं थी ना ,तो मुझसे आपका यह दुख देखा नहीं जा रहा था । तभी मैंने सरकारी नौकरी होते हुए भी पदोन्नति की परवाह न करते हुए आपको यह उपहार देने का निर्णय किया। आपको शायद मैं इससे बड़ा कोई उपहार ना दे पाऊं।’ राधा की आंखों से बस निरंतर खुशी के आंसू निकल रहे थे। भाभी को आलिंगनबद्ध कर वह बहुत देर तक बिना बोले खुशी के मारे रोती रही।
इसी प्रकार के महत्वपूर्ण संदेशों से भरी हुई प्रत्येक कहानी हमें बहुत कुछ सोचने समझने और करने की प्रेरणा देती हैं।
पुस्तक का मूल्य ₹300 है। कुल 176 पेजों में यह सारी कहानियां पूर्ण हो जाती हैं। पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता जयपुर 0141 – 2310785, 40 22 382 है। जिनसे उपरोक्त फोन नंबरों पर संपर्क पर पुस्तक प्राप्त की जा सकती है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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