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आजमगढ़ रामपुर में हो रहे चुनाव और भविष्य की राजनीति


अजय कुमार 

आजमगढ़ में बीजेपी नेता, समाजवादी पार्टी के खिलाफ परिवारवाद को मुद्दा बनाए हुए हैं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव प्रचार के दौरान सपा नेता और यहां के निवर्तमान सांसद अखिलेश पर आजमगढ़ की जनता के साथ धोखा किए जाने का आरोप लगाते रहे।

उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों के लिए चुनाव प्रचार थमने के बाद अब लोगों की नजर 23 को मतदान और 26 जून को नतीजों पर आकर टिक गई है। कहने को तो यूपी की 80 में से मात्र दो लोकसभा सीटों आजमगढ़ और रामपुर में उप-चुनाव हो रहा है, लेकिन इन दोनों सीटों के नतीजों की गूंज दूर तक सुनाई देगी। इसीलिए इन दो लोकसभा सीटों के चुनाव ने प्रदेश में सियासी पारा गरमा दिया है। यूं तो दोनों ही सीटें समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती हैं, लेकिन बीजेपी और बहुजन समाज पार्टी यहां सेंधमारी में पूरी ताकत से लगी हैं। आजमगढ़ लोकसभा सीट, जहां से 2019 में सपा मुखिया अखिलेश यादव खुद चुनाव लड़कर संसद पहुंच चुके हैं। वह सीट अखिलेश के लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफे के बाद खाली हुई है। वहीं दूसरी रामपुर लोकसभा सीट सपा का कद्दावर मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खान की है, जिनका इस इलाके में दबदबा माना जाता है। वह रामपुर की राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं, जिसके ऊपर हाथ रख देते हैं उसकी चुनाव में जीत सुनिश्चित हो जाती है। 2024 में होने वाले आम चुनाव से करीब दो साल पहले हो रहे उप-चुनाव में बीजेपी ने सपा के खिलाफ अपना पूरा जोर लगा दिया है। यह चुनाव उस समय होने जा रहा है जबकि पैगंबर साहब पर बीजेपी की एक पूर्व नेत्री के विवादित बयान देने के बाद मुसलमान वोटर भड़का हुआ है। नुपूर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग को लेकर कई जगह हिंसा हो चुकी है, लेकिन अभी नुपूर शर्मा की गिरफ्तारी नहीं हुई है। वहीं सेना में भर्ती के लिये लाई गई ‘अग्निपथ’ योजना को लेकर युवाओं का गुस्सा चरम पर है। इसको लेकर कई जगह युवा सड़क पर उतर कर उपद्रव कर रहे हैं। उक्त दो मुद्दों को लेकर बीजेपी चुनाव में अपने आप को असहज महसूस कर रही है।  

ताजा राजनीतिक घटनाक्रम को देखें तो आजमगढ़ जिस बेल्ट में आता है, वहां से भारी संख्या में युवा सेना में जाते हैं। केंद्र सरकार की हालिया अग्निपथ योजना को लेकर देश भर में विरोध चल रहा है। ऐसे में आजमगढ़ का चुनाव बीजेपी की इस नई स्कीम को लेकर जनमत का टेस्ट भी कर देगा कि वोट देते समय लोग इस स्कीम को ध्यान में रखकर फैसला लेंगे या नहीं? आजमगढ़ लोकसक्षा क्षेत्र की बात करें तो यहां से मुलायम परिवार के ही धर्मेंद्र यादव उम्मीदवार हैं। बीजेपी ने भोजपुरी सिने स्टार दिनेश लाल यादव पर पुनः दांव लगाया है। बीएसपी ने यहां स्थानीय नेता गुड्डू जमाली को उतार कर लड़ाई को एक बार फिर दिलचस्प बना दिया है। उलेमा कौंसिल ने भी जमाली को स्थानीय नेता बताकर उनका समर्थन करने का निर्णय लिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव को यहां से 60 फीसदी वोट मिले थे लेकिन इस बार हालात अलग हैं। पहले तो पिछली बार उम्मीदवार अखिलेश यादव थे लेकिन इस बार लोकप्रियता के पैमाने पर दिनेश लाल यादव धर्मेंद्र यादव से कहीं आगे हैं। इसके साथ ही विधान सभा चुनाव के बाद कई मुस्लिम संगठन भी समाजवादी पार्टी पर मुसलमानों का साथ नहीं देने का आरोप लगा चुके हैं। ऐसे में बसपा नेता गुड्डू जमाली सपा के लिए मुसीबत का सबब बन सकते हैं। वैसे भी मायावती विधान सभा चुनाव के बाद लगातार मुसलमानों को आगाह कर रही हैं कि वह अखिलेश यादव के बहकावे में नहीं आएं। सपा मुसलमानों को छल रही है। वैसे भी गुड्डू जमाली इलाके में लोकप्रिय नेता हैं। इसके अलावा बीजेपी के उम्मीदवार दिनेश लाल यादव यादव सपा के यादव वोटों को अपनी ओर खींच सकते हैं। सपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल है तो बीजेपी के लिए भी यह रण उसकी सियासी धमक के जीतना जरूरी है।

आजमगढ़ में बीजेपी नेता, समाजवादी पार्टी के खिलाफ परिवारवाद को मुद्दा बनाए हुए हैं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव प्रचार के दौरान सपा नेता और यहां के निवर्तमान सांसद अखिलेश पर आजमगढ़ की जनता के साथ धोखा किए जाने का आरोप लगाते रहे। बीजेपी लगातार यह दावा करती है कि उत्तर प्रदेश में उसने परिवारवाद को खत्म कर दिया है। ऐसे में आजमगढ़ चुनाव जीतकर वह अपने इस दावे को और पुख्ता करने की कोशिश करना चाहती है। यही वजह है कि मुस्लिम-यादव बहुल इलाके में अपनी जीत तय करने के लिए पार्टी ने अपने सभी दिग्गजों को चुनाव प्रचार के मैदान में उतारा। डिप्टी सीमए केशव मौर्य से लेकर योगी आदित्यनाथ ने तो वहां रैली की ही इसके साथ ही पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही को क्षेत्र में चुनाव की कमान संभाले रहे। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आजमगढ़ चुनाव को लेकर बीजेपी कितनी गंभीर है।
आजमगढ़ के बाद रामपुर लोकसभा सीट की बात की जाए तो यहां से आजम खान सांसद थे और उन्होंने रामपुर से ही विधानसभा सीट जीतने के बाद लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। उस समय वह जेल में थे। वहीं से चुनाव जीत गए थे, अब यह सीट खाली हुई तो आजम खान बाहर आ गए हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो शख्स आजम खान जेल में रहकर अपना चुनाव बेहद आसानी से जीत सकता है, वह अपने क्षेत्र में खुला घूमते समय क्या कर सकता है। इसीलिए बीजेपी ने इस सीट पर पूरी तरह से अपनी नजर गड़ा रखी है। सपा का गढ़ और मुस्लिम बहुल होने के बावजूद रामपुर में बीजेपी अपनी पूरी शक्ति के साथ चुनाव लड़ रही है। बीजेपी के उम्मीदवार घनश्याम लोधी हैं, जो पहले सपा में रह चुके हैं। वह आजम खान के करीबी भी माने जाते रहे हैं।

रामपुर में आजम खान की बीजेपी सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ से अदावत के चर्चे सियासी गलियारों से लेकर चौक-चौराहे तक में खूब सुनने को मिल जाते हैं। सरकार बनने के बाद से ही योगी ने आजम खान पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। आजम को जेल भी जाना पड़ा था। ऐसे में रामपुर की जंग इस अदावत में शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा भी बन सकती है। हालांकि, बीजेपी के लिए यह आसान नहीं होगा। सपा ने यहां से आजम के करीबी आसिम रजा को टिकट दिया है। आजम खान उप-चुनाव को लेकर काफी सक्रिय भी हैं और लगातार मंचों पर भाषणों के दौरान अपने रंग में लौटते नजर आ रहे हैं। बीजेपी और योगी सरकार पर वह लगातार हमलावर रहते हैं। रामपुर में बीजेपी अगर जीतती है तो इस जीत के बाद वह जोरशोर से यह प्रचारित करने की कोशिश करेगी कि सरकार बनने के बाद आजम खान पर लिए गए ऐक्शन का ‘सियासी शत्रुता से कोई संबंध नहीं था। साल 2024 के चुनाव के मद्देनजर मुस्लिम वोटों के भगवा पार्टी के साथ होने के दावे का परीक्षण भी इस चुनाव में हो जाना है।
बहरहाल, चुनाव प्रचार अब थम गया है। 23 जून को मतदान और 26 को मतगणना होगी। आजमगढ़ में सिर्फ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रचार करने गए थे, सपा की तरफ से अखिलेश यादव और बसपा की तरफ से मायावती यहां प्रचार के लिए नहीं पहुंचीं। यही स्थिति रामपुर लोकसभा सीट पर भी रही।

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