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पाकिस्तान की समझदारी

pak flagयमन के मामले में पाकिस्तान बहुत समझदारी से काम ले रहा है। सबसे पहले तो मैं उसकी तारीफ इस बात के लिए करुंगा कि उसने 11 भारतीय नागरिकों को यमन से बाहर निकालने और भारत पहुंचाने का मैत्रीपूर्ण काम किया। वह भारत से पीछे नहीं रहा। भारत सरकार ने भी कुछ पाकिस्तानी नागरिकों को वहां से सुरक्षित निकाला था। यदि हमारे ये दोनों देश सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसी तरह का दोस्ताना रवैया अपनाएं तो जल्दी ही पूरे दक्षिण एशिया का नक्शा बदल जाए।

दूसरी बेहद महत्वपूर्ण बात यह है, जो पाकिस्तान की विदेश नीति को एकदम नए रुप में ढाल रही है। सउदी अरब की लाख कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान अपनी फौजें यमन में नहीं भेज रहा है। यमन में सउदी अरब, कुछ अन्य अरब राष्ट्र और अमेरिका मिलकर वहां के सुन्नी शासक अब्द रब्बू मंसूर हादी को बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। हादी ने भागकर सउदी अरब में शरण ले रखी है। वे सुन्नी हैं जबकि उनके विरुद्ध यमन के शियाओं ने बगावत का झंडा गाड़ रखा है। इन हौथी शियाओं ने यमन के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया है। इन्हें ईरान की शिया सरकार का समर्थन डटकर मिल रहा है।पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ आज जिंदा हैं और प्रधानमंत्री हैं, इसका बड़ा श्रेय सउदी अरब को है। तख्ता पलट के बाद नवाज़ को बचाने और शरण देने का काम सउदी अरब ने ही किया था। पाकिस्तान की पैसे की किल्लत को भी सउदी अरब ही हमेशा दूर करता है।

पिछले साल ही उसने लगभग 90 हजार करोड़ रु. की मदद दी थी। इसके बावजूद पाकिस्तानी संसद में हुई बहस में किसी भी सांसद ने यमन में फौज या हथियार भेजने का समर्थन नहीं किया। याने पाकिस्तान का रवैया किसी भी स्वतंत्र और गुटनिरपेक्ष राष्ट्र की तरह हो गया है। उसका यह कदम यह सिद्ध कर रहा है कि वह अमेरिका और सउदी अरब जैसे देशों के इशारे पर अब नाचने के लिए तैयार नहीं है। उसे पता है कि वह इस शिया—सुन्नी झगड़े में पड़ेगा तो उसकी आंतरिक शांति भंग हो सकती है और वह फिजूल ही ईरान को भी नाराज़ क्यों करें?

इस समय ईरानी विदेश मंत्री इस्लामाबाद में हैं और तुर्की राष्ट्रपति ईरान में हैं। तुर्की और पाकिस्तान इस झगड़े को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। इन दोनों राष्ट्रों के प्रयत्न सफल हो जाएं तो पश्चिम एशिया में चल रही उठा-पटक बड़े पैमाने पर कम हो सकती है।

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