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सम्मान खोइए, तब सम्मान पाइए

सरकारी पुरस्कारों, जैसे पद्मश्री, पद्मभूषण, विभूषण आदि पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग शरद यादव ने की है। शरद जनता दल के नेता हैं, समाजवादी हैं । वे अगड़ों से भी अगड़े हैं लेकिन उनका जातिवाद उनपर इतना हावी है कि वे सही तर्क भी गलत ढंग से पेश कर देते हैं । वे इन सरकारी पुरस्कारों पर प्रतिबन्ध की मांग इसलिए कर रहे हैं कि इनमें पिछड़े, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक लोग दिखाई नहीं पड़ते । सिर्फ उन्हीं लोगों को ये पुरस्कार दिए जाते हैं, जो ‘बेईमान’ होते हैं और सरकार की जीहुजूरी करते हैं।sarad yadav

शरद यादव का उक्त कथन तथ्यों के विपरीत है । सारे पुरस्कृतों में से कुछ अयोग्य हो सकते हैं, कुछ के नाम पर मतभेद हो सकते हैं, कुछ से आप नफरत कर सकते हैं लेकिन उन्हें बेईमान कहना कहाँ तक तर्कसंगत है ? कहाँ तक उचित है ? अनेक पुरस्कृत या सम्मानित लोग तो ऐसे भी हैं, जिन्हें हम ईमानदारी की प्रतिमूर्ति भी कह सकते हैं । इसके अलावा शरद यादव की यह बात तथ्यपूर्ण है कि इन सम्मानों, पुरस्कारों में आदिवासियों, पिछड़ों, दलितों, अल्पसंख्यकों, की संख्या कम होती है लेकिन यह मान कर चलना तो अजीब-सा है कि ये सम्मान उनको जान-बूझकर इसलिए नहीं दिए जाते कि वे कमजोर वर्गों के हैं । शरद यादव ने अपने तर्क को खुद अपनी मिसाल से काटा है । वे ‘पिछड़े’ हैं, फिर भी उन्हें श्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिला या नहीं? क्या वे चाहते हैं कि कोई चाहे योग्य न हो लेकिन किसी तथाकथित पिछड़ी जाति में पैदा हो गया है तो उसे कोई भी सम्मान जरूर मिलना चाहिए ? वे सम्मानों में भी आरक्षण चाहते हैं क्या ? ये सम्मान है या नौकरियाँ हैं ?

लेकिन इस आलोचना के बावजूद मैं शरद यादव की मूल बात में काफी औचित्य देखता हूँ । पद्म पुरस्कार ही नहीं, भारत-रत्न समेत सभी पुरस्कारों-सम्मानों में मानवीय पूर्वाग्रह काम करता है । बहुत योग्य लोग छूट जाते हैं और कम योग्य लोग छा जाते हैं। ऐसे लोग उंगलियों पर गिनने लायक होते हैं, जिन्हें घर बैठे कोई पुरस्कार या सम्मान मिलता है। ज्यादातर लोग वे होते हैं, जो इन सम्मानों को पाने के लिए अपना सम्मान खो देते हैं । ये बड़े-बड़े विद्वान, कलाकार, पत्रकार, समाजसेवी लोग दो-दो कौड़ी के नेताओं के आगे नाक रगड़ते हैं । जिन लोगों की अपनी कोई औकात नहीं, वे ही ये सम्मान (रेवड़ियाँ) बाटते हैं, क्योंकि उन्होंने कुछ खास राजनीतिक पद हथिया रखे हैं। सम्मानित व्यक्ति की औकात तो सम्मान मिलने के पहले और बाद में भी बनी रहती है लेकिन सम्मान देनेवाले पद से हटते ही कूड़ेदान में समा जाते हैं । इसीलिए सम्मान देनेवाले कौन हैं, सबसे पहले उनकी प्रामाणिकता सुनिश्चित होनी चाहिए ! सरकारी पुरस्कारों-सम्मानों में इस प्रामाणिकता का कोई खास महत्व नहीं होता ।

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