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प्राकृतिक आपदा से त्रस्त लोगों ने शुरू किया ‘पलायन’

farmer painभगवान के भरोसे अन्नदाता। किसानों पर प्रकृति का कहर जारी। बारिश के साथ कई जिलों में गिरे ओले। कुदरत के प्रकोप से पुरूषार्थी किसान हारे, गंवाई जान। बरबादी सहन नहीं कर पा रहे हैं किसान।

-रीता विश्वकर्मा

मैं तुम्हें छोड़कर हरगिज न जाता गरीबी मुझको लेकर जा रही है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों के गरीबों, मेहनत कश मजदूरों और किसानों को अतिवृष्टि एवं ओलों (प्राकृतिक आपदा) ने पूरी तरह से तबाह कर दिया है। दिहाड़ी मजदूरों के सामने आजीविका के लिए रोजी-रोटी की समस्या आ खड़ी हुई है। इस तबाही ने किसान और मजदूरो को अपना घर-द्वार छोड़ने पर मजबूूर कर दिया है। बटिया और कटाई के बदले अनाज से अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले भूमिहीन मजदूरों का कहना है कि अब दो वक्त के लिए भोजन जुटाना भी मुश्किल हो रहा है।

त्योहार पर घर का हाल-चाल जानकर परदेश में मजदूरी करने वापस जा रहा हूँ। गाँव मे रहकर भूखों मरने से तो अच्छा परदेश में मेहनत मजदूरी करके बच्चों का भरण-पोषण कर साहूकारों के कर्ज पर लिए पैसे ही कमा लिया जाए। सैकड़ों लोगों के पलायन करने से अब गांव के गांव खाली होने लगे हैं। गाँवांे में लौट आई रौनक एक बार फिर गायब होने लगी है। बेरोजगारी के बीच प्रतिदिन सैकडों लोग महानगरों की ओर काम की तलाश में पलायन कर रहे हैं। पलायन का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। करीब आधा दर्जन गांवों का दौरा करने पर अधिकांश घरों में ताले लटके मिले। प्राकृतिक आपदा से त्रस्त किसानों एवं मजदूरों का कहना है कि खेती-बाड़ी में अब कुछ नही रह गया है, जो पैदा भी होता था वह इस बार पानी, ओला आदि प्राकृतिक आपदा ने चौपट कर दिया। खाद-पानी के लिए साहूकारांे से कर्ज पर पैसे लेने पड़ते हैं।

खेतिहर मजदूर किसान के लिए एक ओर बेरोजगारी का दंश तो दूसरी ओर साहूकारों का कर्ज और ऊपर से सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएँ भी नाकाफी साबित हो रही हैं। हर हाथ को काम हर गरीब को रोटी सिर्फ नारों तक ही सीमित रह गयी है। योजनाएं अमीरों तक घूमती हुई खत्म हो जाती हैं। गेहूँ की तैयार फसल पानी हवा में गिर जाने से बरबाद हो गई है। इस वर्ष फसल पर आफत बनकर गिरे पानी से किसानों के सब्र का बांध टूटकर उसका धैर्य जबाव देने लगा है और वे आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा रहे हैं।

किसी भी प्राणी के जीवन के लिए मूलभूत आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति जिस स्थान पर नहीं होती है, लोग वहाँ रहकर कैसे जी सकेंगे। भोजन, वस्त्र, हवा, पानी और बसेरा होना आवश्यक आवश्यकताओं में शुमार है। चाहे जिस स्तर के लोग हों, उन्हें इन सबकी व्यवस्था करनी पड़ती है। गाँव से लेकर शहरों में रहने वाले मेहनत मशक्कत करके इन आवश्यकतों की पूर्ति के लिए हर सम्भव प्रयास करते हैं। गरीबी, भुखमरी से बचने के लिए ऐसे स्थानों की तलाश करते हैं, जहाँ रहकर भोजन, वस्त्र, हवा, पानी और बसेरा मिल सके।

बहुतों ने रोटी, कपड़ा और मकान के लिए पलायन किया है। दुःखद पहलू यह है कि मेहनतकश किसान और अन्य लोग प्रकृति की विनाशकारी लीला से त्रस्त होकर ‘पलायन’ करने लगे हैं। ऐसे लोगों के पुनर्वास की अपर्याप्त व्यवस्था होना भी एक कारण है, सरकारी इमदाद नाकाफी होने की वजह से मजबूरन लोग रोटी-वस्त्र के लिए देश छोड़कर परदेस गमन करते हैं। वहाँ मेहनत करके रोजी-रोटी कमाते है, अपना और अपने आश्रितों का भरण-पोषण करते हैं, इसके उपरान्त धन संचित करके अपना स्वयं का आवास बनाते हैं।

इस वर्ष ही प्रकृति के कहर से देश के कई इलाकों के लोगों की गाढ़ी कमाई बेमौसम बरसात, ओलों और आग की चपेट में आ गई। प्राकृतिक आपदा की चपेट में आकर अनेक लोगों के समक्ष रोटी के लाले पड़ गए। आत्महत्याएँ करके स्वयं के जीवन का अन्त करने वालों के आश्रितों पर अचानक वज्राघात सा होने लगा। क्या करें, क्या न करें……….?

जिन्दगी से पलायन न करने वालों ने जीवन यापन करने के लिए अपनी मातृभूमि से ही पलायन करने की सोचकर पहले से बनाए बसेरे का त्याग करने में ही अपनी बेहतरी समझा। प्राकृतिक आपदा के शिकार ये लोग वर्तमान में ‘पलायन’ करने लगे हैं। हालाँकि कई जानकारों के अनुसार पलायन करके परदेस जाने से लोगों की हालत बेहतर हो जाती है। कई उदाहरण देते हुए इन सबने कहा कि पुरानी जगह छोड़कर नए स्थान पर जाने से लोग बेझिझक रोजी-रोटी कमाने लगते हैं। ऐसा करने से उनके पास ह रवह चीज उपलब्ध हो जाती है, जिसकी आवश्यकता होती है। रोटी, कपड़ा, मकान मेहनतकश के लिए दुर्लभ चीजें नहीं हैं। स्थान (जगह) का पलायन करने वालों को कालान्तर में सर्व सुख-सुविधा सम्पन्न देखा गया है। स्थान-स्थान का अन्तर होता है। कई ऐसों के बारे में हमने महसूस किया है कि एक दशक की अवधि में वह लोग करोड़पति बन गए क्योंकि वह भी अपने पुराने स्थान से मोहभंग करके पलायन करके अन्यत्र जा बसे और एक नए ढंग से स्वरोजगार करके दस वर्षों में ही सर्व सुख सुविधा सम्पन्न हो गए।

बहरहाल! हमें भी प्रकृति के प्रकोप से त्रस्त्र लोगों के प्रति हमदर्दी है, साथ ही यह भी उम्मीद है कि इन लोगों के लिए ‘पलायन’ लाभ दायक सिद्ध होगा। बशर्ते यह लोग लगन और विश्वास से मेहनत कर रोजी-रोटी कमाएँ। सरकारी अनुदान के चक्कर में न पड़े, स्वरोजगार अपनाएँ।

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