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गजेंद्र की मौत, बुद्धू बक्सा और नेतागण

farmer sucideआम आदमी पार्टी की रैली में गजेंद्रसिंह की जो मौत हुई, उसे क्या कहा जाए? आत्महत्या या मौत? दुर्घटना या सोची—समझी साजिश? गजेंद्र स्वयं किसान था या निराश नेता या पगड़ियों का व्यापारी? उस समय पुलिस क्या कर रही थी?

ये सब प्रश्न ऐसे हैं कि इनका जवाब एक जैसा नहीं हो सकता। पहला प्रश्न तो यही है कि यह गजेंद्रसिंह कौन है? जैसे ही उसकी मौत की खबर आई, पत्रकारों ने उसका ठौर-ठिकाना खोज निकाला। वह राजस्थान के दौसा जिले के एक गांव का निवासी था। उसके संपन्न परिवार में खेती होती है लेकिन वह खुद पगड़ियों का व्यापार करता था। वह पगड़ी पंडित था। उसे पगड़ी बांधने की ऐसी महारत हासिल थी कि कहते हैं कि 15-20 सेंकड में ही किसी के भी सिर पर वह पगड़ी बांध सकता था। उसने बिल क्लिंटन, अटलबिहारी वाजपेयी और पता नहीं, किन-किन नेताओं के सिर पर आनन-फानन पगड़ी बांधकर शोहरत हासिल की थी। उसके कई चित्र अब अखबारों में भी छप रहे हैं।

शोहरत का यह शौक उसे राजनीति में भी खींच लाया। नेताओं को जैसे अखबारों में ‘छपास’ और टीवी पर ‘दिखास’ की बीमारी होती है, वैसी उसको भी थी। राजनीतिज्ञों को जितने सेंत-मेंत में शोहरत मिलती है, किसी को नहीं मिलती। कोई भी कौड़ीपति रातों-रात करोड़पति बन जाता है। इसीलिए गजेंद्र ने पहले भाजपा में जाकर विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन हार गया। दुबारा टिकिट न मिलने पर वह सपा से लड़ा लेकिन फिर हार गया। फिर कांग्रेस में उसने अपनी किस्मत आजमाई। वहां दाल न गलने पर अब आम आदमी पार्टी से नत्थी हो गया।

‘आप’ में भी वह जलवा नहीं दिखा पाया। वहां उससे भी कहीं ज्यादा महत्वाकांक्षी लोग भरे पड़े हैं। उससे भी बड़े नौटंकीबाज! उसने अपने नेताओं को मात करने के लिए यह तरकीब निकाली थी। वे मंच पर चढ़े तो वह पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ तो मंच से भी उंचा था। उसने नेताओं से भी ज्यादा जोर की आवाज़ में चिल्लाना शुरु किया लेकिन लाउडस्पीकर के शोर में उसकी आवाज डूब गई। निराश होकर उसने अपने गले में गमछा लपेट लिया ताकि फांसी लगाने के इस नाटक को तो टीवी चैनल दिखाएं लेकिन कहते हैं कि उसका पांव फिसल गया। गमछा फांसी का फंदा बन गया। सारा देश सन्न रह गया। टीवी चैनलों के पंख उग आए। वे उड़ने लगे।

नेताओं की चांदी हो गई। वे एक-दूसरे पर साजिश, लापरवाही, निर्ममता और क्रूरता के आरोप लगा रहे हैं। किसानों की दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं लेकिन कोई ऐसा काम नहीं कर रहे, जिससे किसानों का फायदा हो। इस बात की जांच किए बिना कि गजेंद्र कौन था, उसके इरादे क्या थे, उसकी मौत के लिए कौन जिम्मेदार है, नेता लोग टीवी चैनलों की उंगली पकड़कर अंधेरे में छलांग लगा देते हैं। हजारों सच्चे किसानों की आत्महत्या से उनके सिर पर जूं भी नहीं रेंगती लेकिन एक पगड़ी पंडित की मौत ने उन्हें संवेदना का हिमालय बना दिया है। हमारे टीवी चैनल नेताओं की बुद्धि कैसे हर लेते हैं और उन्हें कैसा नाच नचाते हैं, इसका प्रमाण यह घटना है। अमेरिकी लोग टीवी को ‘बुद्धू बक्सा’ ( इडियट बाक्स) यू ही नहीं कहते हैं।

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