ये जीवन स्वर्ग कैसे बने :-


बिखरे मोती

ये जीवन स्वर्ग कैसे बने :-

आंखों में स्वर्ग रखो।
हृदय में रहम रखो॥
हाथों में कर्म रखो।
वाणी को नरम रखो।।

गुणी- ज्ञानी के पास में लगा रहे दरबार :-

सागर को घेरे रहे,
ज्यों सरिता की धार।
गुणी-ज्ञानी के पास में,
लगा रहे दरबार ।।

मूरख से बचाव ही श्रेयस्कर है:-

चन्दन दुर्लभ ही मिले,
ज्यादा मिलते झाड़।
जितना हो बचकर रहो,
मूरख का मुंह भाड़ ॥1680।

विधाता की विभूति को कोई बिरला ही पहचानता है:-

झाड़ों में चन्दन उगा,
खुशबू से भरपूर।
बिरला ही पहचानता,
है कुदरत का नूर।।1681॥

भावार्थ :- यह विश्व विधाता की विचित्र रचना है। यह विविधता से भरा पड़ा है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि कांटेदार झाड़ियों के बीच में चन्दन का दुर्लभ वृक्ष उग आता है और झाड़ियों के कांटे उसकी पत्तियों को फाड़ कर उसे आघात पहुंचाते रहते हैं किन्तु वह फिर भी अपनी भीनी-भीनी सुगन्ध से वहां के वातावरण को सुरभित करता है, मादकता पूर्ण बनाता है। जो लोग चन्दन के पौधे को नहीं पहचानते अथवा उसके महत्व को नहीं जानते वे उसे काट कर भी फेंक देते हैं।ठीक इसी प्रकार परिवार, समाज अथवा राष्ट्र में सदियों के बाद कोई ऐसी पुण्यात्मा आती है, जो चन्दन की तरह अपने अन्तःकरण की आर्जवता से परिवार, समाज व राष्ट्र को सुरभित करती है, यशस्वी बनाती है। किन्तु दुष्ट प्रवृत्ति के कतिपय लोग उसे पहचान नहीं पाते है और उसका मजाक उड़ाते हैं,ताना देते हैं, छींटाकशी करते हैं, तरह-तरह की यातना देते हैं, यहां तक कि कई बार तो उस पुण्यात्मा के प्राण भी ले लेते हैं। जैसा कि स्वामी श्रद्धानन्द, महर्षि देव दयानन्द, महात्मा राष्ट्रपिता गांधी, ईसामसीह, सुकरात इत्यादि के साथ हुआ।
जिस प्रकार चन्दन के पौधे को कोई बिरला ही पहचानता है, ठीक इसी प्रकार ऐसी पुण्यात्माओं के प्रादुभार्व को कोई बिरला पहचान पाता है कि ये विधाता की विभूति है, जिसे परमपिता परमात्मा ने अपनी दिव्य विलक्षणताओं से विभूषित किया है।
क्रमशः

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