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साम्प्रदायिक राजनीति…    

        modi ji   आज के  समाचारो से ज्ञात हुआ है कि  शब-ए-बरात (2.6.2015) पर मिलने आये मुसलमानों के एक शिष्ट मंडल को मोदी जी ने स्पष्ट कहा है कि “वह ऐसी राजनीति में विश्वास नहीं रखते जो लोगो को साम्प्रदायिक आधार पर बॉटती है और न ही वह कभी साम्प्रदायिक भाषा बोलेंगे।उन्होंने कहा कि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की राजनीति देश को पहले ही बहुत क्षति कर चुकी है”।

परंतु एक ओर उनकी राजनैतिक विवशता भी देखे जो उनकी ही उपरोक्त बातों व कार्यो में विरोधाभास पैदा करती है । मोदी जी ने अपने एक वर्ष के कार्यकाल में  “कितने अल्पसंख्यकों को रोजगार मिला” के आंकड़े  एकत्रित करने के लिए  अपने  सभी विभागों से कहा है।

अल्पसंख्यकों के लिए पूर्ववर्ती योजनाओं को कम करने के स्थान पर कुछ अन्य योजनायें भी अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए मोदी सरकार लाने के लिए क्रियाशील है।अगर उनकी समानता का दृष्टिकोण यही है फिर वे कैसे कह सकते है कि साम्प्रदायिक आधार पर वे राजनीति नहीं करते ?

उनको अपना चुनाव से पूर्व का राष्ट्रवादी रूप दिखाते हुए समाज में समानता व सौहार्द बनाने के लिए मुस्लिम नेताओ से क्या यह कहना उचित नही होता कि जो विद्यायें व शिक्षायें लोगो को धर्म के अधार पर बॉट रही है, उनमें आज के आधुनिक विज्ञानमय युग में आवश्यक संशोधन किये जाए ? क्या उनको सभी भारतवासियो  में आपसी भाईचारा सुदृढ़ करने के लिए  2004 में बना अल्पसंख्यक मंत्रालय बंद नहीं करवा  देना चाहिये ?
क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नही है कि आज 125 करोड़ के जननायक में जो उत्साह व साहस होना चाहिये था , वह राजमद में दुविधाओ से ग्रस्त क्यों हो रहा है ?

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