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योग: मुसलमान घाटे में क्यों रहें?

yog-528da90c30cbc_exlभारत सरकार की पहल पर संयुक्तराष्ट्र ने २१ जून को योग—दिवस घोषित किया है। सारे विश्व में योग की धूम मचेगी लेकिन भारत के शरीयत बोर्ड ने घोषणा की है कि यदि स्कूलों में मुसलमान बच्चों को योगाभ्यास करवाया गया तो वह इसका विरोध करेगा। भारत सरकार और विभिन्न प्रांतीय सरकारें इस कार्यक्रम को बड़े पैमाने पर चलानेवाली हैं। शरीयत बोर्ड ने संकल्प किया है कि इस अनिवार्य योग—अभियान के विरुद्ध वह अदालत के दरवाजे खटखटाएगा, क्योंकि यह गैर-कानूनी और असंवैधानिक है। बोर्ड के प्रवक्ता ने यह भी कहा है कि नरेन्द्र मोदी का यह अभियान भारत के प्रधानमन्त्री का नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक का मालूम पड़ता है।

योग के बारे में यह ग़लतफ़हमी होना स्वाभाविक है, क्योंकि योग हिन्दू धर्म या हिन्दुओं की जीवन—पद्धति का अभिन्न अंग रहा है। इस्लाम, ईसाइयत या यहूदी परम्परा में योग का कोई स्थान नहीं है। लेकिन यह कैसे मान लिया जाए कि योग इस्लाम–विरोधी है? यदि कोई मुसलमान योगाभ्यास करेगा तो क्या वह मुसलमान नहीं रहेगा? या क्या वह कमतर मुसलमान हो जाएगा? योग में ऐसी कौन सी बात है, जो इस्लाम विरोधी है? भारत के करोड़ों मुसलमान तवे की रोटी खाते हैं। कुर्ता—पाजामा या धोती—कुर्ता पहनते हैं। वे अरबों, ईरानियों और पठानों की तरह तंदूरी या खमीरी रोटी नहीं खाते। जैसी हिन्दू खाते हैं, वैसी खाते हैं तो क्या उनकी मुसलमानियत में कोई कमी हो गई है? भारत के मुसलमान अफगानों और पाकिस्तानियों की तरह सलवार—कमीज़ या अरबों की तरह गतरा और कंदूरा नहीं पहनते। वे हिन्दुओं की तरह कुर्ता—पाजामा या पैंट—कमीज़ पहनते हैं तो क्या वे हिन्दू हो गए हैं? हमारे कितने मुसलमान भाई है,जो अरबी और फ़ारसी बोलते हैं? करोड़ों ऐसे हैं जो उर्दू भी नहीं जानते। उर्दू तो हिंदवी भाषा है। हमारे मुसलमान हिंदी, उर्दू, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगु और मलयालम—मातृ भाषा के तौर पर बोलते हैं तो क्या हम यह मान लें कि वे इस्लाम से भटक गए हैं? बांग्लादेश के मुसलमान तो बांग्ला ही बोलते हैं।

इस्लाम या ईसाई धर्म जहाँ—जहाँ गए हैं, वहाँ—वहाँ उन्होंने देश और काल के मुताबिक अपने आप को ढाला है। योगाभ्यास भारत में हज़ारों बर्षों से चला आ रहा है। तथाकथित हिन्दू धर्म पैदा हुआ, उसके बहुत पहले से चला आ रहा है। सारी दुनिया इसका फ़ायदा उठा रही है। हम अपने मुसलमानों को घाटे में क्यों रखें? उन्हें सेहतमंद क्यों न बनाएँ? वे दीर्घजीवी क्यों न हों?

प्राणायाम करते समय जहाँ तक ‘ओम’ शब्द के उच्चारण का सवाल है, आप ‘ओम’ की जगह ‘अल्लाह’ कह लीजिए। बात तो एक ही है। वो उपरवाला न हिन्दू है, न मुसलमान है। वह तो एक ही है और सबका है। हालांकि आजकल ‘अल्लाह’ और ‘खुदा’ में दंगल चल रहा है। अरबी लोग ‘अल्लाह हाफ़िज़’ बोलते हैं जबकि ईरानी, पाकिस्तानी, भारतीय और बंगाली मुसलमान ‘खुदा हाफ़िज़’। जब अल्लाह और खुदा जैसे शब्दों पर युद्ध छिड़ा हुआ है तो ओम और सूर्य-नमस्कार पर तो ऐतराज़ होगा ही! मैं अपने मुसलमान नेताओं से कहता हूँ कि वे शब्दों की पूंछ पकड़ कर उन पर लटके न रहें। अपने करोड़ों मुसलमानों के भले और विकास की बात सोचें।  प्रधानमन्त्री तो आते-जाते रहते हैं। उन पर जरूरत से ज्यादा तवज्जोह न दें।

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