आक्रांता टीपू ने कोडावा हिन्दू नरसंहार कर कावेरी नदी को रक्तरंजित किया था – दिव्य अग्रवाल

कोडागु/कोडावा/ कर्नाटक का एक पहाड़ी क्षेत्र है,जिसे कावेरी नदी का जन्म स्थान भी कहा जाता है । भारत की सेना में कोडागु जनजाति को कोडावा योद्धा कहा जाता है। जनसंख्या के आशय से आज इस दुनिया में कोडवा दूसरी सबसे कम आबादी वाली जनजाति है। जिसका जिम्मेदार मुस्लिम आक्रांता टीपू और उसका अब्बाजान हैदर अली था। वर्ष 1760 -1790 के कालखंड में जिहादी मानसिकता रखने वाले क्रूर आक्रांता टीपू सुल्तान ने कोडागु में 600 से अधिक मंदिरों को नष्ट कर दिया था। टीपू ने हजारो रक्त पिशाच सैनिको के साथ कोडागु समाज पर विदेशी हथियारों से आक्रमण किया था । जिसका प्रतिकार करते हुए कोडागु समाज के वीर योद्धा, कंदांडा दोददाया और अपचचिरा मंडन्ना ने अपने वीर सैनिकों के साथ टीपू को पराजित कर अपनी शौर्यता व् सामर्थ का परिचय दिया था । ऐसा मात्र एक बार नहीं हुआ था अपितु लगभग इकतीस बार वीर हिन्दू कोड़ावा योद्धाओ ने क्रूर व् बर्बता का अभिप्राय बन चुके कटटरपंथी जिहादी टीपू को अपनी कौशल गोरिल्ला युद्ध नीति से परास्त कर दिया था । यह सिलसिला लगभग 20 से 25 वर्ष तक चलता रहा तत्पश्चात अनेको जिहादी व् मुस्लिम आक्राँताओं की भाँती छल, कपट व् धोखे का मार्ग चुनते हुए कपटी कायर टीपू ने कोडवों को शांतिवार्ता हेतु कावेरी नदी के तट पर आमंत्रित किया। 13 दिसंबर 1785 के दिन जब कोडवा अपने पुरे परिवार के साथ बड़ी संख्या में देवतिपरंबू के कावेरी तट पर पहुंचे तभी आक्रांता टीपू की रक्तपिशाची सेना ने जंगलो में से छुपकर कोड्वो व् उनके पुरे परिवार पर घात लगाकर छल के साथ हमला कर नरसंहार किया था । जिसमे लगभग 75,000 से अधिक कोडवा जनजाति के लोगो की हत्या कर दी गयी और 92,000 कोडावों को बंदी बनाया गया , बंदी बनायी गयी हिन्दू महिलाओं के साथ बड़ी अमानवीयता से सामूहिक रूप से दुराचार और बच्चों का उत्पीड़न किया गया था। यह हिन्दू नरसंघार इतना भयावह था की कावेरी नदी का रंग भी कई दिनों तक कोड़वा हिन्दुओ के रक्त से लाल हो गया था । ऐसा प्रतीत हो रहा था की कावेरी नदी में जल का नहीं अपितु रक्त का प्रवाह हो रहा हो। यह मुस्लिम , सेक्युलर हिन्दुओ व् वामपंथियों के गठजोड़ एवं आज़ादी के पश्चात मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की ताकत का परिणाम था की इतने बड़े क्रूर आक्रांता टीपू को इस देश का महपुरुष घोषित कर दिया गया । इसमें वो इतिहासकार भी दोषी है जो यह सब प्रपंच देखते हुए भी सत्ताओ के समक्ष मौन रहे । अतः इसमें कोई संदेह न था न है की सनातन हिन्दू वीर योद्धाओ को आज तक कोई भी पराजित नहीं कर सका, सनातन धर्म प्रहरियों के साथ सदैव जिहादी आक्रांताओं ने छल, कपट व विश्वासघात किया । अतः सनातन धर्म के अनुयायियों को अपने शौर्य को जाग्रत कर आत्मरक्षार्थ व राष्ट्र सुरक्षा हेतु स्वयं को निर्भीक , निडर योद्धा की तरह पुनः अपने पूर्वजो की भांति तराश कर प्रत्येक परिस्थिति हेतु तत्पर रहना चाहिए।
सादर धन्यवाद

दिव्य अग्रवाल
लेखक व विचारक

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