Categories
हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

क्रांतिकारियों की क्रान्ति भरी हुंकार के परिणाम स्वरूप मिली थी देश को आजादी

——-इंजीनियर श्याम सुन्दर पोद्दार,महामन्त्री,वीर सावरकर फ़ाउंडेशन ———————————————

लन्दन को अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से कँपा देने वाले वीर सावरकर १९३७ में जब लम्बे कारावास से मुक्त हुवे हुए तो राजनीति न करने का उन पर लगाया गया प्रतिबंध भी हटा लिया गया अर्थात अब वे देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा सकते थे। तब उन्होंने हिंदू महासभा और कांग्रेस से मिले अध्यक्ष पद के निमंत्रण में से हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के निमंत्रण को स्वीकार किया।
वीर सावरकर ने हिन्दु महासभा की अध्यक्षता स्वीकार की। उनके ऐसा करते ही अतीत के नामी क्रांतिकारी हार्डिंज बम काण्ड के नायक रासबिहारी बोस जापान हिंदू महासभा के अध्यक्ष बनाए गए। उनके क्रांतिकारी साथियों ने एक स्वर से उनका समर्थन करना आरंभ किया।
अनुशीलन समिति के डॉक्टर हेडगेवार हिन्दु महासभा के उपाध्यक्ष बने। इस तरह सारे भारत व बिश्व के अतीत के क्रांतिकारी संयुक्त रूप से क्रांतिकारी कार्य करके देश को स्वतंत्र कराने के काम में लग गये। इस निमित्त उन्होंने हमारी सेना के तीनो अंगो में देशभक्त नौजवानों को भर्ती कराने का कार्य आरम्भ किया। उनका उद्देश्य देश के हिंदू समाज का सैनीकीकरण करना था। इसलिए प्रत्येक नौजवान को विदेशी सरकार के खिलाफ खड़ा करना अबे आवश्यक समझते थे।
द्वितीय बिश्व युद्ध के चलते अंग्रेजों को अपनी सेना २ लाख से १० लाख पहुचानी थी। इन क्रांतिकारियों ने सारे भारत में हिन्दु महासभा के झंडे तले केम्प लगा-लगा कर लगभग ६ लाख हिन्दु नवयुवक सेना में भर्ती करवा दिये व पहले सेना में हिन्दु सैनिकों की संख्या जहां ३२ प्रतिशत होती थी, वह ६६ प्रतिशत पहुँच गई। इन नौजवानों से यह कहा गया कि एक बार सेना में भरती होकर सेना का प्रशिक्षण ले लो फिर समय आने पर स्वयम समझ जाओगे कि बंदूक़ की नाल किस दिशा में घुमानी है ?
कांग्रेस से निकाले जाने के बाद सुभाष चंद्र बोस बम्बई जाकर वीर सावरकर से मिले। उनके परामर्श पर वे अंगरेजो की आँख में धूल झोंक कर जर्मनी होते हुवे जापान पहुँचे व रास बिहारी बोस से भारतीय राष्ट्रीय सेना का नेतृत्व अपने हाथों में लिया। ५ हज़ार युद्ध बन्दी भारतीय सैनिकों से आरम्भ हुई भारतीय राष्ट्रीय सेना को ४५ हज़ार सैनिक सिंगापुर के पतन के साथ मिले। जब भारतीय सैनिकों ने रास बिहारी बोस की अपील पर काम करना आरंभ किया तो उन्हें पता चल गया कि उन्हें भारत की आज़ादी के लिये लड़ाई लड़नी चाहिये न कि भारत को ग़ुलाम बनाने वाले अंग्रेजों के लिये।
हमारे इतिहास का यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष है कि इसमें क्रांतिकारी इतिहास की पूर्णतया उपेक्षा की गई है। यदि सत्य इतिहास लिखा जाए और तथ्यों को सही तरीके से स्थापित किया जाए तो पता चलता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यह सेना निरंतर आगे बढ़ती गई और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए अंग्रेजों की नींद हराम करने में सफल हुई। इस सेना के बढ़ते कदमो से अंग्रेजों को यह एहसास हो गया था कि अब उन्हें जल्दी ही भारत को छोड़ना पड़ेगा। इतना ही नहीं कांग्रेस की लोकप्रियता भी इस सेना और नेताजी जैसे क्रांतिकारियों के कारण उस समय बहुत नीचे चली गई थी। उसके नेता प्रभाव शून्य हो गए थे ।गांधी नेहरू जैसे नेताओं को समय कोई नहीं पूछता था।
भारतीय रास्ट्रिय सेना ने अण्डमान निकोबार द्वीप उनके हाथ में आ जाने के बाद स्वतंत्र भारत की पहली आज़ाद हिन्द सरकार का गठन २१ अक्टूबर १९४४ के दिन सुभाष चंद्र बोस ने किया। जिसे बिश्व के ९ शक्तिशाली देशों ने स्वीकृति प्रदान की। उधर इम्फ़ाल तक आज़ाद हिंद फ़ौज के सैनिक पहुँचने में सफल रहे थे। इस अभियान में आज़ाद हिन्द फ़ौज के १६ हज़ार सैनिक शहीद हो गये।
वीर सावरकर के सैनिकीकरण कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुवे व कांग्रेस नेतावो की सोच पर आक्रमण करते हुवे सुभाष चन्द्र बोस ने २५ जून १९४४ के दिन आज़ाद हिन्द रेडियो से प्रक्षेपित किये गये अपने भाषण में कहा,”कांग्रेस के प्रायः अदूरदर्शी नेता ब्रिटिश हिन्दी सेना को केवल भाड़े के टट्टू तथा पेटपेसुए कह कर आते जाते निन्दा करते थे, फिर भी उत्साहजनक बात यह कि वीर सावरकर निर्भयता पूर्वक हिन्दी युवकों को सशस्त्र सेना में प्रवेश करने के लिये सतत प्रोत्साहित कर रहे है। ब्रिटिश सेना में प्रविष्ट इन्ही हिन्दी युवकों से हमारी हिन्दी रास्ट्रिय सेना को ,I.N.A. को,समरकला में प्रवीण और मुरब्बी प्रशिक्षितो (Trained Men) तथा सैनिकों का संभरण हो रहा है। “
दूसरी तरफ़ रास बिहारी बोस ने रेडियो संदेश में वीर सावरकर के अमूल्य सिद्धांत शत्रु का शत्रु मित्र होता है। उसी तरह अंग्रजों का शत्रु जापान हमारा मित्र है। उससे मदद ले कर देश को स्वतंत्र करने की भूरी भूरी प्रशंसा की। हीरो सीमा-नागासाकी पर अणु बम गिरने से जापान के आत्म समर्पण करने से ब्रिटिश सरकार भारतीय रास्ट्रिय सेना के सैनिकों को क़ैद कर भारत लाई व लाल क़िले में उनका ट्रायल आरम्भ किया।
अभी तक भारत में आज़ाद हिन्द फ़ौज व सुभाष बोस के नाम पर प्रेस सेंसरशिप थी। वह सेप्टेम्बर १९४५ में उठ जाने से भारत के लोगों को आज़ाद हिन्द फ़ौज की वीरता के किस्से मालूम होने आरम्भ हुए। लोगों में देश को स्वाधीन करने के लिये ज़बरदस्त जोश पैदा हो गया। सारे भारत के हर शहर हर क़स्बे में अंग्रेजों के विरुद्ध लोग सड़कों पर उतर आये। कांग्रेस जो आज़ाद हिन्द सेना का बिरोध करती थी १९४५ के केंद्रीय धारा सभा के चुनाव जीतने के लिये आज़ाद हिन्द सेना के जवानो को अपनी सभा के मंच पर सम्मानित करने लगी।
INA Rehabilitation & Relief कमेटी बनाई व भुला भाई देसाई के साथ नेहरू भी लाल क़िले में इन सैनिकों के समर्थन में पैरवी करने लगे। सेना के तीनो अंगो में अंग्रेजों के विरुद्ध सुगबूगाहट होने लगी। इससे घबड़ा कर सेना प्रधान औचलिंक ने लन्दन से कम से कम एक लाख सैनिक भेजने का आग्रह किया। वही दूसरी तरफ ब्रिटेन में प्रतिपक्ष के सांसद १७ फ़रवरी १९४६ प्रधान मन्त्री एटली से भारत की बिगड़ती स्थिति से चिन्तित हो , मिले व उनसे कहा कि या तो हम भारत को स्वाधीन कर दे अन्यथा भारत के लोग हमें मार कर स्वाधीनता प्राप्त कर ले। १८ फ़रवरी १८४६ हमारी नौ सेना के सैनिकों ने आज़ाद हिन्द सेना के सेनापतियों को आजीवन कारावास देने पर विद्रोह आरम्भ कर दिया। नौ सेना के बेड़े से ब्रिटिश झण्डा यूनियन जेक उतार कर तिरंगा फहरा दिया व ब्रिटिश अफ़सरों पर तोप दागने लगे।
दूसरे दिन यह बग़ावत वायु सेना में फेल गई व वायु सैनिक उनके समर्थन में हड़ताल पर चले गये। थल सेना में पहुँचने के पहले २३ फ़रवरी १८४६ब्रिटिश वायसराय ने घोषणा की आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों का ट्रायल बन्द होगा, सेनापतियों के दण्ड की कार्यवाही वापस ली जायेगी व भारत को आज़ादी दी जायेगी।
वही दूसरी तरफ़ गाँधी का १९४२ के अगस्त का “अंग्रेजों! भारत छोड़ो,पर अपनी सेना यहां रक्खो”आन्दोलनआरम्भ होने के साथ साथ समाप्त हो गया। इसकी असफलता पर ब्रिटिश प्रधान मन्त्री चर्चिल ने गर्व भरे शब्दों में कहा कि मै ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करने के लिये प्रधान मन्त्री नही बना। परन्तु हमारे देश का दुर्भाग्य है कि भारत के लोगों को भारत की स्वाधीनता का सच्चा इतिहास पढ़ाया ही नही गया। जिन लोगों के हाथ में अंग्रेजों ने सत्ता का हस्तांतरण इसलिये किया कि उन्होंने १९४५ के केंद्रीय धारा सभा का चुनाव यह प्रतिज्ञा करके जीता था कि गाँधी जी की लाश पर देश का विभाजन होगा। देश का विभाजन कर सत्ता प्राप्त की।
जिस गाँधी को २१ लाख हिंदुवो का हत्यारा कहा जाता है। जिसने भारत भूमि को तोड़ कर ३० प्रतिशत भूमि पर पाकिस्तान देश बनाया वह गाँधी नेहरू का पिता हो सकता है क्योंकि उसे गाँधी ने प्रधान मन्त्री बनाया पर राष्ट्र का पिता कभी नही हो सकता।
क्योंकि देश गांधी के चरखा से आजाद नहीं हुआ था बल्कि क्रांतिकारियों के बलिदानों के कारण आजाद हुआ था । हमें जितनी जल्दी यह तर्क और तथ्य समझ में आ जाएगा उतना ही आज की पीढ़ी के लिए यह लाभकारी होगा। क्योंकि शत्रु 1947 के हालात पैदा कर फिर देश का विभाजन करने की तैयारी कर रहा है और हम गांधीवादी नीतियों से उसका विरोध करने के अभ्यासी हो गए हैं। इस प्रवृत्ति को बदलने की आवश्यकता है। हमें सावरकरवाद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों के विचारों का समर्थन करते हुए उनको राष्ट्रीय जीवन में अपनाना चाहिए। तभी देश की एकता और अखंडता बची रह सकती है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version