रोहिंग्या और बंगलादेशियों का इकोसिस्टम और दोगले चैनलों का प्रसारण

दो दिन पहले एक लाइन का समाचार पेपर और चैनलों पर आया था कि गाजियाबाद में एक गौशाला में आग लगने से ४० गायें जल मरीं और २०घायल हैं।साथ में लगी एक झुग्गी बस्ती जलकर खाक हो गई।आग एक कबाड़ी के गोदाम में
लगी थी। पुलिस की जांच पड़ताल शुरू हुई तो भेद खुल गया। गौशाला के पास एक अब्दुल की आईडी पाई षड्यंत्र समझिए। यह रोहिंग्या पहले कहीं सरकारी जमीन पर झुग्गी डालते हैं। कुछ दिन रहने के बाद एक रात झुग्गियों में से अपना सामान निकाल कर खुद ही आग लगा देते हैं। फिर शुरू हो जाता है विक्टिम कार्ड।हमारा सब कुछ जल गया।खाने के लिए नहीं है। फिर सरकार इन्हें पक्के मकान दे देती है जैसे अमानुल्लाह खान और केजरीवाल दिल्ली में करता है।
पुलिस को अंदेशा है कि असल में आग गौशाला में लगाई गई थी और बढ़कर झुग्गी बस्ती भी लपट में आ गई।अब यहां शुरू होती है चैनलों की भूमिका। चैनलों ने यह तो बताया कि गौशाला में आग लगी है और बस्ती भी जल गई है पर यह नहीं बताया कि बस्ती में रहने वाले कौन थे? मंगल ग्रह से तो आए नहीं होंगे। बंगलादेश से पहले बंगाल आते हैं। फिर वहीं आधार कार्ड राशन कार्ड वोटर कार्ड बन जाता है। इसके देश के कोने कोने में झुग्गियां बनाकर बस जाते हैं।
कहां तक बचेंगे आप लोग? इनका कुछ उपाय नहीं हुआ तो विनाश निश्चित है।

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