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कविता

गीत – 4 गीता संदेश

                       गीता संदेश

टेक : गीता का सन्देश यही बस कर्म तुम्हारे वश में है।
        कर्म ही करते जाना बन्दे तेरी भलाई इसमें है।।

    घर घर बैठे हैं अर्जुन ,हथियार फेंक दिए जीवन के।
     घोर निराशा मन में छाई,  भाग रहे कायर बन के।।
     रसना और वासना हावी ,है त्राहिमाम मची जग में ।
    शत्रु सेना सजी खड़ी  है,  अर्जुन नहीं खड़ा रण में।।
     मोह में अंधे हुए घूमते ,संतुष्ट नहीं कोई रस में है …
     कर्म ही करते जाना बन्दे तेरी भलाई इसमें है …

     माया, मोह , ममता के कारण नीरस सब सम्बन्ध हुए।
    आग लगी हर घर के भीतर ‘भीष्म’ के मुंह बन्द हुए ।।
     उन्मादी दुर्योधन जीवित, युद्धिष्ठिर यहाँ पाबन्द हुए ।
     द्रोण, महात्मा विदुर सभी जन अपमानित से खड़े हुए।।
    ‘धृतराष्ट्र’ अभी मरा नहीं है और ‘दु:शासन’ के वश में है..
    कर्म ही करते जाना बन्दे तेरी भलाई इसमें है …

    मोह में अंधे हो गए सारे आज भारत के सब नेता हैं।
   ‘प्रथम’ नहीं  रहा  देश  हर कोई  झूठे भाषण देता है ।।
    बिगड़ गया संगीत , गीत भी अब सब नीरस लगता है।
   भंग व्यवस्था  हो  गई  सारी  घुप्प  अंधेरा  लगता  है।।
   मर्यादाएं  टूट  रही  हैं , हर  कोई  खड़ा  अब  रण में है ..
   कर्म  ही  करते  जाना  बन्दे  तेरी  भलाई   इसमें  है …

    महाभारत के साज सजा कर एक बार तो देख लिया।
    शिक्षा ग्रहण नहीं की हमने परिणाम भी उल्टा देख लिया।।
    गीता का सन्देश सुना , पर कभी  नहीं  स्वीकार  किया।
    परिणाम सदा वैसा होता है , जैसा  हमने  कर्म  किया।।
    ‘राकेश’ देश की  चिन्ता कर ले शत्रु फिर से रण में है ..
     कर्म ही करते जाना बन्दे तेरी भलाई इसमें है …

( ‘गीता मेरे गीतों में’ नमक मेरी नई पुस्तक से)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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