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स्वर्णिम इतिहास

ऐसे होते हैं देश-भक्‍त

एक बार भगतसिंह जी ने बातचीत करते हुए चन्द्रशेखर आजाद जी से कहा, ‘पंडित जी, हम क्रान्तिकारियों के जीवन-मरण का कोई ठिकाना नहीं, अत: आप अपने घर का पता दे दें ताकि यदि आपको कुछ हो जाए तो आपके परिवार की कुछ सहायता की जा सके।’

आजाद जी सकते में आ गए और कहने लगे, ‘पार्टी का कार्यकर्ता मैं हूँ, मेरा परिवार नहीं। उनसे तुम्हें क्या मतलब?

दूसरी बात, ‘उन्हें तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं है और न ही मुझे जीवनी लिखवानी है। हम लोग नि:स्वार्थभाव से देश की सेवा में जुटे हैं, इसके एवज में न धन चाहिए और न ही ख्याति।

एक बार ऐसा भी हुआ की आजाद अपने गांव अपने माता पिता से मिलने गये,गांव के लोगो ने बोला की आजाद तुम देश का इतना बड़ा आंदोलन चला रहे हो,और तुम्हारे माता पिता यंहा भूखो मरते है,तुम कुछ पैसा उस कोष में से दे दो तो तुम्हारे माता पिता पेटभर रोटी खा सके ,इस पर आजाद ने गांव के लोगो को उत्तर दिया था,की ये पैसा राष्ट्र का है और में इसको आजादी के अभियान में ही खर्च करूँगा,इसमें से १ पैसा भी नहीं दूँगा! गांव वालो यदि आप मेरे माता पिता को रोटी दे सको तो देना,यदि नहीं दे पाओ तो मुझे सूचित करना रात के अंधरे में आऊंगा १ गोली माँ के और १ गोली पिता के सिने में उतार कर चला जाऊंगा पर देश के साथ धोखा नहीं करूँगा ! ऐसे थे हमारे पूजनीय,आदरणीय चन्द्रशेखर जी आजाद!

नवी आर्या

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