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कविता

हाँ मैं कश्मीरी पंडित हूँ

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कौन कमबख़्त कहता है कि मैं शरणार्थी हूँ
नहीं, देवासुर संग्राम में मैं घायल योद्धा हूँ

हाँ मैं कश्मीरी पंडित हूँ
वो रत्न जो भारत मॉ के मुकुट में मंडित हूँ
हाँ मैं कश्मीरी पंडित हूँ

इस धर्मक्षेत्र में मैं अग्रिम पंक्ति का सैनिक हूँ
अनंत शिवयात्रा में मैं अदना सा पथिक हूँ
लेकिन
इस देश के समस्त इतिहास का आमुख हूँ
भारतीय ज्ञान गंगा का गोमुख हूँ

हाँ मैं कश्मीरी पंडित हूँ
हाँ मैं कश्मीरी पंडित हूँ

कश्यप ऋषि की कर्मभूमि मैं ही कश्मीर हूँ
नीलमत द्वारा रचित मैं वहीं पुराण हूँ
महाभारत काल का योद्धा मैं ही गोनंद हूँ
इस धरती पर स्वर्ग का मैं ही उपमान हूँ ।

सम्राट अशोक द्वारा निर्मित मैं ही श्रीनगर हूँ
वराहमूल वही बारामुल्ला का मैं प्रहरी हूँ
सूयपुर वही सोपोर का मैं ही अभियंता हूँ
प्रवरपुर और परिहासपुर का मैं ही बाशिंदा हूँ ।

हर भारतीय नारी के सुहाग का मैं ही कुंकुम हूँ
हर खीर में समा जाऊँ मैं वही केसर हूँ
अमरनाथ और वैष्णोदेवी का मैं ही निवास हूँ
आर्यावर्त के नदियों का मैं ही उद्गम हूँ ।

महान ललितादित्य का मैं ही वैभव हूँ
राजा यशस्कर का मैं ही तपस्थल हूँ
अवंतिवर्मा से संरक्षित मैं ही साहित्य हूँ
कोटरानी के अदम्य साहस का मैं ही प्रतिबिम्ब हूँ ।

रसोत्पत्ति में मैं ही आनंदवर्धन हूँ
अभिनवगुप्त का मैं प्रसिद्ध तंत्रालोक हूँ
सोमदेव का मैं ही कथा सरित सागर हूँ
चालुक्य विक्रम के विद्यापति मैं ही बिल्हण हूँ
राजतरंगिणी के प्रणेता मैं ही कल्हण हूँ ।

शिवसाधना से समुद्भूत मैं शिवाद्वैत हूँ
सूफ़ी दर्शन के मूल्यों का मैं ही प्रदर्शन हूँ

कोई तो समझाओ उन नासमझ बिगड़े दिमाग़ों को
मज़हब बदलने से माँ बाप नहीं बदलते
इबादत बदलने से सरहद नहीं बदलते
धर्मग्रन्थ बदलने से भगवान नहीं बदलते ।

कोई तो कह दो उन मूर्ख पत्रकारों से
अपने ही भाई का कातिल क्रांतिकारी नहीं होता
हमवतन का हत्यारा भगतसिंह नहीं होता ।

कुछ हत्यारों के आतंक का मैं शिकार हूँ
हर ज़ुल्म सहा हूँ पर मैं डिगा नहीं हूँ
चंद सौ वर्षों में दम नहीं कि मुझे मिटा सके
पाँच हज़ार सालों से पुराना मेरा इतिहास है ।

हाँ मैं कश्मीरी पंडित हूँ
हाँ मैं कश्मीरी पंडित हूँ

– यूँ ही कभी कभी

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#PallaviJoshi #anupamkher

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