बिखरे मोती : मन, दिव्य शक्ति है-

मन के शुभ संकल्प से,
होता है कल्याण।
मन रक्षक मन ब्रह्म है,
शक्ति दिव्य महान॥1666॥

व्याख्या:- प्रायः मन के बारे में कहा जाता है कि मन पापी है, मन कपटी है, मन चोर है, मन बेलगाम घोड़ा है, यह मन का नकारात्मक पक्ष है किन्तु समग्र दृष्टि से देखिए,समीक्षा कीजिए, सकारात्मक पक्ष पर भी गम्भीरता से विचार कीजिए तो आप पायेंगे मन तो परम पिता परमात्मा का अमूल्य अप्रतिम और अनुपम उपहार है, एक दिव्य शक्ति है। जिसकी साधना से अर्थात् शुभ संकल्पों से प्रागैतिक हासिक काल से लेकर अद्यतन काल तक जितना भी सम्यता और संस्कृति का बहुआयामी विकास हुआ है, यह की शक्ति की ही तो देन है। वैज्ञानिक मन की अति सूक्ष्म शक्ति से चिन्तन करते हैं, नये-नये आविष्कार करते हैं जिनसे लोक- कल्याण होता है, जीवन सरल और सुगम होता है। इसलिए मन को बुरा-भला कहना, उसे आरोपित करके कोसना न्यायसंगत नहीं है।ध्यान रहे! मन बन्धन और मोक्ष का कारण है। मन को साधने वाले साधक के विवेक पर निर्भर करता है कि, वह मन की दुष्प्रवृत्तियों के वशीभूत होकर कार्य करता है अथवा खद्प्रवृत्तियों के वशीभूत होकर स्वयं का और संसार का कल्याण करता है। मन की सद् प्रवृत्तियों में इतनी अथाह शक्ति है कि, प्रकृति के पंचमहाभूत भी अनुकूल हो जाते हैं, लोक- कल्याणकारी हो जाते हैं, जैसे प्रकृति के दो तत्व आग और पानी की शक्ति के संयोग से सुविख्यात वैज्ञानिक जेम्स वाट ने रेल का इंजन बना दिया और संसार के लिए कल्याणकारी सिद्ध हुआ।
मन हमारा रक्षक है, परम मित्र है, सखा है, बान्धव है, जन्म जन्मान्तरों का साथी है बशर्ते कि, इसे सही दिशा और गति दी जाये।मन हमें धैर्य और शौर्य देता है,कार्य सिद्धि के लिए नया होंसला देता है, उत्साह और उल्लास देता है। मन में ही आनन्द का अजस्र स्रोत बहता है, जो आनन्द सिंधु से अर्थात् परमपिता परमात्मा से मिलाता है,मोक्ष दिलाता है, प्रभु से साक्षात्कार कराता है, उससे से तदाकार कराता है, उसके स्वरूप में अवगाहन कराता है। इसलिए छान्दोग्य – उपनिषद् के ऋषि ने मन को ‘ब्रह्म’ तक कह दिया। अतः मन की दिव्य शक्ति को पहचानिए, मन को अमन बनाइये, सुमन बनाइये, स्वयं का और संसार का अकल्पनीय, अभिनन्दनीय और वन्दनीय कल्याण कीजिए ताकि मानव जीवन सार्थक हो।
क्रमशः

Comment: