हम समुदाय व देश के लिए हैं मुट्ठी भर लोगों के लिए नहीं

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मुट्ठी भर लोगों के लिए नहीं

– डॉ. दीपक आचार्य
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देश का प्रत्येक नागरिक समाज और देश के लिए है और उसे सुनागरिक के रूप में इनकी सेवा और उन्नति के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहना चाहिए। हमारी भारतीय जीवन पद्धति में व्यक्तिवाद की बजाय राष्ट्रवाद और समाजवाद का भाव गहरे तक समाया हुआ है और इसी का पालन करते हुए आगे बढ़ना हमारा धर्म भी है और फर्ज भी।

सच्चा देशभक्त और समाजसेवी वही है जिसकी निष्ठाएं समुदाय के कल्याण और देश के उत्थान के प्रति हों। जो लोग वैयक्तिक हितों को सामने रखकर व्यक्तिवादी सोच के साथ कर्म करते हैं वे समाज और देश के लिए घातक हैं और ऎसे लोगों के भरोसे देश की अस्मिता को अक्षुण्ण बनाए रखने की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए।

व्यक्तिपूजक लोग आम तौर पर सिद्धान्तहीन होते हैं और अपनी लाभ-हानि को देखकर किसी भी क्षण, किसी भी पाले में छलांग लगा सकते हैं। व्यक्तिवादियों का कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। इनके लिए अपने स्वार्थ सर्वोपरि होते हैं। इन लोगों को समाज या देश से कोई आत्मीय सरोकार नहीं होता। समाज के लिए इनके द्वारा कही जाने वाली बातें और किए जाने वाले कार्य ऊपरी दिखावा मात्र होते हैं।

सच्चे समाजसेवियों व देशभक्तों के लिए अपने स्वार्थ नहीं होते बल्कि इनकी सोच और कर्म समाज और देश के लिए समर्पित होते हैं। पर आजकल आदमी कम समय और कम मेहनत में पूरे संसार को पा जाने को लालायित  है और इस चक्कर में वह समुदाय और देश की उपेक्षा कर मुट्ठी भर चंद लोगों को खुश कर लेना ही जिंदगी का परम सत्य मान बैठा है जिनके सहारे उसके स्वार्थ सिद्ध हो सकते हैं अथवा उसे संरक्षण प्राप्त हो सकता है।

ऎसे लोगों के लिए न विचारों की प्रतिबद्धता है, न सिद्धान्तों या मर्यादाओं का पालन, और न ही कर्मयोग।  इनका एकमेव उद्देश्य यही बना रहता है कि उन लोगों को कैसे खुश रखा जाए जो हमारे काम आने वाले हैं, हमें संरक्षण देते हैं और हमारे स्वार्थों को पूर्ण करने में हद से बाहर जाकर मदद करने वाले हैं।

ऎसे में आदमी को अपने वजूद को लोकप्रिय बनाने के लिए अब उतनी ऊर्जा, श्रम या समय का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है। पहले आदमी के सामने सारा समाज और देश हुआ करता था और ऎसे में मन-वचन और कर्म में शुचिता रखना अनिवार्य थी और तब ही लोग स्वीकार किया करते थे। आजकल मुट्ठी भर लोगों को खुश करने से ही काम चल जाता है।

भले ही हम शक्तियों के विकेन्द्रीकरण की बातें करते रहें मगर हकीकत कुछ इसके उलट ही है। आजकल हमारे चाल-चलन और चरित्र से किसी को कोई सरोकार नहीं रहा। समुदाय और देश की उपेक्षा हो तो हो, चंद  लोगों की जो प्रसन्नता प्राप्त कर लेता है वह अपने मंसूबों में सदैव कामयाबी का परचम लहराता रहता है। फिर आजकल इंसान को खुश करने के लिए कोई ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। हर आदमी सच्ची और कड़वी बात सुनने से तो कतराएगा ही मगर चिकनी-चुपड़ी और प्रशंसा से भरी बातों से हर कोई खुश हो जाता है, चाहे झूठ-मूठ की प्रशंसा ही क्यों न होती रहे। इसके अलावा इंसान की जयगान और झूठी शोहरत को दुनिया तक पहुंचाने के लिए अब तो कई सारे माध्यम आ गए हैं जिनका भरपूर उपयोग करते हुए होशियार लोग हथेली में दिल्ली क्या अमेरिका बता देने में माहिर हो गए हैं।

आजकल हकीकत से किसी का कोई लेना-देना नहीं रहा, जो सामने वाले को जितना अधिक भ्रमित रख सकता है, जितनी अधिक लल्लो-चप्पो कर सकता है, खुश करने के लिए जितने अधिक उपकरणों और मुद्राओं तथा नवाचारों का प्रयोग कर सकता है, सारी मर्यादाओं को एक तरफ रखकर जो जितना अधिक समर्पण करने का माद्दा रखता है वही आजकल सर्वाधिक सफलता पा  जाता है।

खूब सारे लोगों के बारे में अक्सर यह सुना जाता है कि कुछ लोगों के मुँह लगे हुए  हैं, साथ उठते-बैठते हैं इसलिए इतना कुछ अहंकार आ गया है कि आम लोगों से सीधे मुँह बात नहीं करते, काम आने की बात तो दूर है। खूब सारे लोगों के बारे में सुना जाता है कि वे न समाज और देश के काम के हैं, न किसी अच्छे काम आ सकते हैं, बावजूद इसके कुछ लोगों की मेहरबानी से फल-फूल रहे हैं और फूल कर ऎसे कुप्पा हो रहे हैं जैसे कि इनके जैसा दुनिया में और कोई हो ही नहीं।

कुछ लोगों के इर्द-गिर्द दिन-रात मण्डराते रहने वाले ऎसे लोग भले ही चंद लोगों के लिए अकबर के नवरत्नों से भी बढ़कर क्यों न हों,मगर समाज और देश के लिए इनकी कोई उपयोगिता नहीं क्योंकि इनका कोई सा कर्म या व्यवहार न समाजोन्मुखी होता है, न राष्ट्रोन्मुखी। ये ही वे लोग हैं जिन्होंने सामाजिक सेवा से जुड़े हुए सारे सरोकारों और इंसान की आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धताओं के सारे समीकरणों की हत्या कर रखी है।

जो लोग ऎसा करें उन्हें करने दें, पूर्वजन्म के इन क्रीत दासों का अधूरा रह गया दासत्व योग इस जन्म में इसी प्रकार पूर्ण होगा। तभी तो ये व्यक्तिवादी और चंद लोगों को खुश करने वाले लोग आज इसकी और कल उसकी प्रशस्ति गाया करते हैं।

हमारा प्रत्येक सोच-विचार, चिंतन और कर्म समुदाय के लिए है, देश के लिए है। जो कुछ करें वह समाज और राष्ट्र को सामने रखकर करें। अपनी वैयक्तिक ऎषणाओं की पूर्ति समाज और देश अपने आप करता है।  जो कुछ है वह समाज और देश के लिए है, इसी ‘इदं न मम’ की भावना से काम करें, यही सच्ची समाजसेवा और आदर्श देशभक्ति है।

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