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कश्मीर में ‘तीन सौ सत्तर’ बाधाएं

370राकेश कुमार आर्य

मोदी सरकार बड़ी सावधानी से फूंक-फूंक कर कदम  आगे बढ़ा रही है। मोदी ने अपनी सरकार की छवि ‘बातें कम-काम अधिक’ वाली बनाने का प्रयास किया है। उनकी सोच ‘चुपचाप काम में लगे रहो और परिणामों पर जनता  की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करो’ वाली है। वह सही समय पर नपा-तुला बोलना पसंद करते हैं। अभी तक भी उनकी कार्यशैली सचमुच ‘प्रधान सेवक’ वाली ही है।

बात यदि कश्मीर की करें तो मोदी इस बार कश्मीर में हिंदू मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। इसके लिए उनके पास वहां की विधानसभा के आगामी चुनावों में कम से कम 44 विधायक होने आवश्यक हैं। यदि लोकसभा चुनावों की स्थिति पर नजर डालें तो उस समय भाजपा ने 29 सीटों पर बढ़त प्राप्त की थी। अब भाजपा ने कुलगाम, अनंतनाग, गंदरबल, हब्बाकदल, तराल, खनयार, अमीर कदल जैसी कुछ सीटों की पहचान की है, जिन पर वह अच्छी बढ़त ले सकती है।

विधानसभा चुनावों के दृष्टिïगत जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनकी पार्टी की ‘पराजित मानसिकता’ दीखने लगी है। नैकां और कांग्रेस का गठबंधन टूट गया है। अब भारत पाक सीमा पर पाकिस्तानी हरकतों के कारण जो तनाव पैदा हुआ और पाक ने  आतंकी संगठनों से मिलते रहने की अपनी पुरानी आदत पर काम किया तो भारत को सख्ती के साथ पाकिस्तान से किसी भी प्रकार की वार्ता करने को तब तक के लिए बेतुका करार दिया है, जब तक कि सीमा पर ‘गोले और गोलियां’ दागे जाते रहेंगे। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथग्रहण समारोह के समय ही पाक के अपने समकक्ष नवाज शरीफ को यह स्पष्टï कर दिया था कि बम धमाकों के शोर में बातचीत नही हो पाएगी। चुनावों के समय मोदी ने उमर अब्दुल्ला और उनके पिता को कठोर शब्दों में  सावधान किया था और उन्हें बताया था कि साम्प्रदायिकता क्या होती है? अभी पिछले दिनों पी.एम. ने कश्मीर की पवित्र धरती पर खड़े होकर ही पड़ोसी पाक को सावधान किया था कि वह ‘छद्म युद्घ’ छोड़े और सीधे-सीधे दो-दो हाथ करे। इन सब बातों का प्रभाव कश्मीर के विस्थापित पंडितों पर पडऩा स्वाभाविक ही है। इसलिए मोदी सरकार का ‘कश्मीर मिशन’ इन सब बातों की पड़ताल करने पर ही साफ होता है कि वह चाहते क्या हैं और उनकी योजना क्या हो सकती है? निश्चित रूप से कोई भी प्रधानमंत्री किसी भी प्रांत में अपनी पार्टी की सरकार देखना चाहता है, तो यह उसका लोकतांत्रिक अधिकार भी है और अपनी पार्टी को आगे बढ़ता देखने का उसका एक सपना भी होता है। यदि मोदी ऐसी कोई संरचना बुन रहे हैं तो इसमें बुरा कुछ भी नही है। कुछ समय पहले बिहार में  मुस्लिम मुख्यमंत्री बनने को धर्मनिरपेक्षता की सही परिभाषा रामविलास पासवान ने माना था। तब कुछ लोगों ने उनके कथन की आलोचना करते हुए तर्क दिया था कि कश्मीर में हिंदू  मुख्यमंत्री होना धर्मनिरपेक्षता नही है तो बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री होना धर्म निरपेक्षता कैसे है? बात तो सही थी, पर अब पासवान भी मोदी के साथ हैं। अब कई चीजों की परिभाषा अपना सही स्वरूप और सही अर्थ ले रही है। इसलिए पहली बार एक सशक्त योजना जम्मू-कश्मीर को एक हिंदू के हाथ में देने की बन रही है। इन सब संभावनाओं के बीच कश्मीरी विस्थापित पंडितों को अपने घर लौटने की उम्मीदें पैदा होती जा रही हैं। तस्वीर पर अभी हालांकि बहुत कुछ धुंधलका है पर इतना गहरा भी धुंधलका नही है कि कुछ भी ना दीख सके।  बहुत कुछ होने की उम्मीदें  बनती बढ़ती जा रही हैं और अभी मोदी सरकार के लिए इतनी संभावनाएं पैदा कर देना भी एक बड़ी उपलब्धि है। इससे आगे हमें आने वाले कश्मीरी विधानसभा चुनावों का जनादेश रास्ता बताएगा कि हम धारा 370 की तीन सौ सत्तर रस्सियों की बाधाओं में उलझ कर रह जाएंगे, या कुछ आगे भी कर पाएंगे, संकेत कुछ अच्छे हैं, उम्मीद करें कि हम होंगे कामयाब…..एक दिन।

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