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साक्षात्‍कार

चांदमियां से बना ‘सांईबाबा’ हमारा भगवान नही हो सकता

आचार्य अजय गौतम वह नाम है जो सांई विरोधी आंदोलन की एक मजबूत कड़ी के रूप में अपना नाम स्थापित कर चुके हैं। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 160 किलोमीटर दूर कबर्धा में सांई विरोध में एक  धर्म संसद का आयोजन किया गया। जिसमें श्री गौतम ने बढ़ चढक़र भाग लिया। उन्होंने इस विषय पर एक पुस्तक ‘सांई का सच’ लिखकर सांई की वास्तविकता को लोगों के समक्ष लाने का भी प्रशंसनीय कार्य किया है। श्री गौतम को इस बात की विशेष चिंता है कि यदि भारत का हिंदू समाज अभी नही जागा तो परिणाम (सांई पूजा के) बड़े भयंकर आ सकते हैं। इसलिए वह सांई विरोध के माध्यम से देश की सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए विशेष कार्य कर रहे हैं। धर्म संसद के समय कबर्धा में उनसे हमारी भेंट हुई, तो बातचीत उनके सांई विरोधी आंदोलन पर ही सिमट गयी। उन्होंने इस बातचीत में जो महत्वपूर्ण बातें हमें बतायीं, उन्हें हम यहां अपने पाठकों के लिए भी प्रस्तुत कर रहे हैं। जिनसे सांई चरित्र के कई अनछुए पहलुओं से पर्दा उठता है।

आचार्य अजय गौतम से वार्ता करते ‘उगता भारत’ के सहसंपादक श्रीनिवास एडवोकेट। छाया : ‘उगता भारत’
आचार्य अजय गौतम से वार्ता करते ‘उगता भारत’ के सहसंपादक श्रीनिवास एडवोकेट। छाया : ‘उगता भारत’
शंकराचार्य स्वरूपानंद जी ‘उगता भारत’ की प्रति का अवलोकन करते हुए साथ में हैं पत्र के मुख्य संपादक श्री राकेश कुमार आर्य एवं कार्यकारी संपादक पं. बाबा नंदकिशोर मिश्र। ‘छाया: उगता भारत’

उगता भारत : आचार्य जी! सांई पूजा के विरोध का आपका मुख्य आधार क्या है?

गौतम : देखिए! सांई का अपना अस्तित्व ही हिंदू धर्म में मिलावट कर इसे क्षतिग्रस्त करना था। हमारा देश प्राचीन काल से ऋषियों मुनियों के वैज्ञानिक अनुसंधानों का राष्ट्र रहा है, इसीलिए ऋषियों के प्रति विशेष श्रद्घा हमारे समाज में आज भी मिलती है। पर कुछ लोगों ने इस श्रद्घा का अनुचित लाभ उठाया और अपनी-अपनी दुकान खोलकर बैठ गये। जहां तक सांई का प्रश्न है तो यह व्यक्ति इस्लाम की उस परंपरा में सम्मिलित है जिसने सूफी-संत होने का भ्रम उत्पन्न कर हिंदू समाज को छला है।

उगता भारत : गौतम जी, इस बात का क्या प्रमाण है कि सांई मुसलमान थे। उनके अनुयायियों का कथन तो आपकी मान्यता के सर्वथा विपरीत है?

गौतम : भारत को लंबे काल तक आक्रमणों से पददलित करने पर भी जब इस्लाम को अपनी अपेक्षाओं के अनुरूप सफलता नही मिली, तो मुसलमानों ने तरह तरह के प्रपंच रचे, सूफी फकीरों ने भी भारत के इस्लामीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और साम, दाम, दण्ड, भेद हर प्रकार की नीति से भारत में धर्मातरण करने का कुचक्र रचा। 1838 ई. में ऐसे ही एक बच्चे ने जन्म लिया जो आगे चलकर मुस्लिम फकीर बना और शिर्डी के सांई बाबा के नाम से प्रसिद्घ हुआ। सांई के पिता का नाम बहरूद्दीन था और सांई के विषय में उपलब्ध तथ्यों के आधार पर ज्ञात होता है कि सांई का अपना वास्तविक नाम चांदमियां था। जहां तक सांई के भक्तों के मानने या न मानने की बात है तो ये तथ्य ऐसे हैं कि जो उन्हीं के ‘भगवान’ के संबंध में उपलब्ध साहित्य में उपलब्ध हैं। जिसका खण्डन आज तक किसी भक्त ने नही किया है।

उगता भारत : शिर्डी के सांई बाबा के मुस्लिम होने के और क्या प्रमाण हैं?

गौतम : सांई बाबा के एक भक्त ओ.पी. गोयल ने अपनी पुस्तक ‘शिरडी सांई बाबा: डिवाइन इन्कारनेशन’ में लिखा है कि शिरडी के बच्चे उसे मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति मानते थे और जब वह शिरडी की गलियों से गुजरते थे तो अक्सर उन्हें बच्चे पत्थर से भी मारते थे, क्योंकि वे अक्सर मुसलमानों के पहनावे में रहते थे और उन्हीं के जैसा जीवन यापन करते थे। पुस्तक के पृष्ठ 17 के अनुसार उन्हें खण्डोबा मंदिर में प्रवेश नही करने दिया गया था क्योंकि वह एक मुसलमान फकीर थे। पृष्ठ 18 पर लिखा है कि तब बाबा पास की एक मस्जिद में ठहरे, जो पहले एक हनुमान मंदिर था। इसी पुस्तक के पृष्ठ 22 पर लिखा है कि बाबा के एक शिष्य माधवराव देशपाण्डे के अनुसार सांई बाबा अरबी, उर्दू, फारसी और कभी-कभी समझ में न आने वाली भाषा में बात किया करते थे।

उगता भारत : क्या बाबा को वेदादि हिंदू शास्त्रों का कोई ज्ञान था?

गौतम : बाबा को वेदादि वैदिक हिंदू धर्म शास्त्रों का ज्ञान होने का कोई प्रमाण नही मिलता है। इसके विपरीत यह प्रमाण अवश्य है कि 1889 ई. में उनके पास अब्दुल बाबा नाम का एक मुस्लिम फकीर रहने लगा था, जो उन्हें नियमित कुरान पढक़र सुनाया करता था। इसका प्रमाण हेमाडयन्त द्वारा रचित पुस्तक ‘सांई स्वचरित्र’ के पृष्ठ 38 पर भी उपलब्ध है कि सांई बाबा खाने से पहले फातिहा पढ़ते थे। शिर्डी परिवार के भीतर लगे शिलालेख से भी इन तथ्यों की पुष्टि होती है।

अब्दुल बाबा जो कि सांई के शिष्य थे, वे सांई बाबा के मरने के बाद भी सांई की मजार की देखभाल करते रहे थे, और जब वह 1954 में मरे तो उन्हें भी उसी परिसर में दफना दिया गया था।

उगता भारत : सांई भक्तों का कथन है कि सांई बाबा को मरने के बाद समाधि दी गयी थी ना कि उन्हें दफनाया गया था?

आ. गौतम : देखिए! सांई को समाधि देने की बात कहना भी सर्वथा एक भ्रांति ही है। उनकी मृत्यु के बाद मौलवियों के कहने से उन्हें जिलाधिकारी की अनुमति से दफनाया गया था। उन्हें समाधि देने की बात इसलिए फेेलायी गयी है, जिससे कि भारत के साधुओं को समाधि देने की परंपरा से उनका संयोग हो जाए और ऐसा लगे जैसे कि सांई भी एक साधु थे।

जबकि जिस परिसर में सांई को दफनाया गया था उसी में सांई के एक भक्त तात्या पाटिल की समाधि को देखने से यह भ्रांति स्वत: मिट जाती है, क्योंकि सांई की मजार की आकृति लंबाई वाली है (व्यक्ति को लंबा करके लिटाने से मजार लंबी होती है) और तात्या की समाधि (बैठाकर समाधिस्थ करने से) छोटी है।

उगता भारत : बाबा की मूर्ति का निर्माण कब से होने लगा?

आ. गौतम : 1952 में बाबा की कब्र के साथ एक निर्माण कार्य आरंभ हुआ और वहां बाबा के कुछ हिंदू समर्थकों ने मूर्ति लगानी चाही।

अंत में एक संगमरमर की मूर्ति वहां स्थापित कर दी गयी। वहां एक  बड़ा सा बोर्ड  लगा दिया गया कि सांई एक हिंदू भगवान हैं। इसके साथ साथ सांई के नाम से पहले ‘ओ३म्’ और बाद में ‘राम’ जोड़ दिया गया। अब्दुल बाबा की डायरी से हमें ज्ञात होता है कि ऐसा देखकर मुस्लिम फकीरों ने वहां आना छोड़ दिया था। इसी डायरी से हमें बाबा के नित्य कुरान सुनने की जानकारी मिलती है।

उगता भारत : क्या बाबा एक लुटेरा पिण्डारी था?

आ. गौतम : देखिए! ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी एम 15 ने  राममंदिर आंदोलन के पश्चात सांई की पूजा में अचानक वृद्घि देखी। ब्रिटेन और सांई का रिश्ता बहुत पुराना है। जब मराठों ने मुगल साम्राज्य की ईंट से ईंट बजाकर दिल्ली पर अधिकार कर हिंदू साम्राज्य की पुन: स्थापना करने में सफलता प्राप्त कर ली थी, तो अफगानिस्तान के लुटेरों (पिण्डारी) ने मराठों को बदनाम करने के लिए उनके क्षेत्रों में  लूटमार आरंभ कर दी, जिनमें सांई का पिता भी सम्मिलित था। वह चांद मियां को भी अपनी सहायता के लिए साथ रखा करता था। चांदमियां आजकल के उन मुस्लिम भिखारियों की तरह था जो चादर फेलाकर भीख मांगते हैं। चांदमियां का काम था लूट के लिए  सही समय देखना और पिता को उसकी सूचना देना। एक बार चांदमियां अंग्रेजों के हत्थे चढ़ गया। उसे धन का लालच देकर झांसी भेजा गया, जहां पर वह रानी के किले में प्रवेश पाने में सफल हो गया था, आपत्ति के समय उसने पीछे से दरवाजा खोलकर रानी को हराने में अहम भूमिका निभाई। यही चांदमियां क्रांति के आठ साल बाद जेल से छूटकर सांई बाबा बनने की डगर पर चल दिया था। उसका उद्देश्य था इस्लाम की सेवा, इस्लाम को बढ़ाना और कुरान की शिक्षा का प्रचार प्रसार करना, फिर वह कैसे हमारा भगवान हो सकता है?

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