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पाकिस्तान की मांग का समर्थन करने वाले भारतीय मुसलमानों के लिए संविधान में नहीं है कोई भी अधिकार

आजकल मुसलमान नेताओं को यह अक्सर कहते सुना जाता है कि भारत के मुसलमानों को भारत के संविधान में अमुक अमुक अधिकार दिए गए हैं। मुसलमानों के इन नेताओं में ओवैसी, जावेद अख्तर और उन जैसे कई चेहरे सम्मिलित हैं । उनका तर्क होता है कि भारत के संविधान के द्वारा प्रदत्त अधिकारों को मुसलमानों से कोई भी छीन नहीं सकता।

हम सभी यह भली प्रकार जानते हैं कि १९५० की २६ जनवरी को हमारा संबिधान लागू हुआ व देश सही मायने में स्वाधीन हुआ। अभी तक  भारत ब्रिटिश राज का एक उपनिवेश राज्य था। हमारे संविधान निर्माताओं को ज्ञात था कि भारतवर्ष में एक बृहत्तर मुस्लिम समाज अपना पाकिस्तान मिल जाने के बाद भी यहीं रह रहा है । इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने संविधान में धर्म निरपेक्ष शब्द नही रखा। पण्डित नेहरू को संविधान निर्माताओं के इस कार्य से बड़ा कष्ट हुआ, क्योंकि वह शुरू से ही इस सोच के थे कि मुसलमानों को कांग्रेस का वोट बैंक बनाकर प्रयोग किया जाए। उन्होंने तुरत फुरत में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली खान को भारत आने का निमंत्रण दिया। जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया व अप्रेल १९५० में दिल्ली पहुँच गये। तब भारत पाकिस्तान के इन दोनों नेताओं के बीच नेहरू लियाक़त अली समझौता हुआ। उस समझौते में कहा गया किभारत में रह गये मुसलमानो को हमारा संविधान सुरक्षा प्रदान करेगा व पाकिस्तान में रह गये हिन्दुओं को पाकिस्तान की संविधान सभा सुरक्षा प्रदान करेगी। उस समय होना यह चाहिए था कि जिन लोगों ने आजादी से पहले पाकिस्तान बनाने में किसी भी प्रकार सहायता की थी और अब भारत में रह गए थे , उनके मौलिक अधिकारों को छीन लिया जाए, परंतु देश के पहले प्रधानमंत्री ने देश विरोधी लोगों के वोट पाने के लालच में उन्हें संविधान के सारे मौलिक अधिकार प्रदान कर दिए ।
इस तरह पिछले दरवाज़े से पाकिस्तान  बनाने वाले मुसलमानो को संविधान का अधिकार दिया गया। भारतवर्ष में पाकिस्तान बनानेवाले मुसलमान नेहरू लियाक़त अली समझौते के चलते रह रहे है। पर हिन्दु समाज का दुर्भाग्य है कि पाकिस्तान के प्रधान मन्त्री लियाक़त अलिखान ने इस समझौते को तार तार कर दिया ।पाकिस्तान में १९४७ से चल रहा हिन्दुओं का  नरसंहार जारी रहा व पाकिस्तान के २३ प्रतिशत हिन्दू १ प्रतिशत के नीचे पहुँच गये। परन्तु भारत ने नेहरू लियाक़त समझौते का आज तक पालन किया।  पाकिस्तान बनाने वाले भारतीय मुसलमान सुरक्षित ही नही हैं, बहुत फलफूल भी रहे है। पाकिस्तान का निर्माण असम्भव था यदि आज भारत में रहने वाला १०० प्रतिशत मुसलमान मुस्लिम लीग की १९४५ के चुनाव में  पाकिस्तान माँग का समर्थन नही करता। आज के भारतीय मुसलमान ने मुस्लिम लीग की भारत को तोड़कर पाकिस्तान बनाने की माँग का समर्थन ही किया। कलकत्ता हिन्दुओं की हत्या से आरम्भ हुआ। हिन्दुओं की हत्यावो में नोवाखाली, उत्तरप्रदेश, पंजाब, बम्बई सारे भारत में  बढ़चढ़  कर भाग लिया व जिन्ना की प्रसिद्ध बन्दूक की गोली की तरह काम किया।
नेहरू ने तो इनको अपना वोट बेंक बनाने के लिये इन पाकिस्तान निर्माता मुसलमानो को रक्खा पर यह सच है कि भारत का संविधान उन गद्दारों को भारत में रहने की अनुमति नहीं देता जो आजादी के समय भारत को तोड़ने की गतिविधियों में शामिल संलिप्त रहे थे। जो लोग आजादी से पहले पाकिस्तान का गुणगान करते थे वह बाद में भारत में भारत को अपना देश मान कर नहीं रहे बल्कि एक नए पाकिस्तान की मांग की आधार भूमि तैयार करने के लिए रहे। भारत में रहकर जनसंख्या बढ़ा कर या हिंदुओं का धर्मांतरण कराकर वे अपने इस काम में लग गए।
इस लक्ष्य में मुसलमान समाज तेज़ी से आगे भी बढ़ रहा है। हिन्दुओं की तुलना में इनकी जनसंख्या अब तक दुगुनी बढ़ी।पाकिस्तान बनाने से बाद मुसलमान २३ प्रतिशत थे पाकिस्तान में भारत की ३० प्रतिशत ज़मीन ले गए। रिज़र्व बैंक का २३ प्रतिशत जनसंख्या के अनुपात में ७५ करोड़ रुपया ले गये। भारत सरकार का २३ प्रतिशत जनसंख्या के हिसाब से सोना चाँदी ले गये। गाड़ी घोड़ा रेल फ़र्निचर किताब सब ले गए।फिर भी भारत में रह गये। तो ओबेसी मियाँ ! जावेद मियाँ !! हिंदुस्तान में रहना है तो पाकिस्तान को गई अपने हिस्से की एक तिहाई ज़मीन, ७५ करोड़ का एक तिहाई रुपया, गाड़ी, रेल,फ़र्निचर,किताब लाओ। आप भारत में रहकर पाकिस्तान के गीत नहीं गा सकते और याद रखो कि जिस संविधान की दुहाई तुम बात बात  पर देते हो उसमें ऐसे देशविरोधी लोगों के लिए कहीं कोई स्थान नहीं है।
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत के संविधान की मूल प्रति में कहीं पर भी धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। इसे इंदिरा गांधी ने 1976 में उस समय स्थापित किया था जिस समय सारा विपक्ष जेलों में पड़ा हुआ था। आपातकाल में स्थापित किया गया यह प्रावधान देश की संसद के द्वारा स्थापित किया गया प्रावधान नहीं है, इसलिए हमारा इसमें कोई विश्वास नहीं होना चाहिए।

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