समझो सफल है उनकी, यह पावन जिंदगानी
माँ सम दे वात्सल्य गाय, अरु देय सुधा सम नीर
जो सेवन नित इसका करे, होय विविध बहु वीर
सकल सिद्धि दाता गौ-माता, वेदन यही बखानी
तुलसी व्यास कबीर सूर, सबकी ये अमृत वानी
भला माँ गंगे की महिमा, सकें कौन कवि गाय
जग तारण को स्वर्ग से, भूलोक आयीं हर्षाय
ये देखो माता गंग की, उज्जवल चपल तरंग
कितने ही हैं पापी तरे, पाकर माँ गंगे का संग
गरिमा मात गायत्री की, कहूँ कछुक मैं आज
हे माता मैं मंदमति, तुम राखो जन की लाज
मात गायत्री सदा सदा, सबको देतीं बुद्धि विवेक
नाम मात्र से मात के, बनते बिगड़े काज अनेक
ॐ भूर्भुवः स्वः मन्त्र का, करहिं जाप जो प्राणी
सुख सम्पति व संस्कार, संग होवे मधुरम वाणी