Categories
प्रमुख समाचार/संपादकीय

समझें शक्ति उपासना का मर्म

navratriशक्ति उपासना का वार्षिक पर्व नवरात्रि आज से शुरू हो गया है। साल भर में इस प्रकार के कई अवसर आते हैं जब हम उपासना के नाम पर बहुत कुछ करते हैं।

उत्सव, पर्व और त्योहारों के साथ ही आजकल शक्ति उपासना के कई नवीन सरोकारों का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है।

नवरात्रि वह पर्व है जिसमें मनुष्य को शक्ति संचय करने का वह स्वर्णिम अवसर प्राप्त होता है जिसमें वह एकान्तिक साधना करता है और साल भर के लिए ऊर्जाओं का संचय करता है और यही ऊर्जाएं वर्ष भर आत्मोद्धार तथा विश्वमंगल के लिए खर्च होती रहती हैं।

नवरात्रि में साधना अपने आप में ऎसा शब्द है जो कि सीधा दैवी से संबंध रखता है और इसमें साधक होता है और सामने देवी। बीच में कोई अवरोध नहीं होता।

साधना दो प्रकार की होती है। एक है सामूहिक साधना और दूसरी है एकान्तिक साधना। आमतौर पर साधना एकान्तिक ही होती है और इस एकान्तिक साधना का आनंद ही कुछ और है क्योंकि यह जितनी गुप्त होती है उतना अधिक लाभ प्रदान करती है।

इस दृष्टि से एकान्तिक साधना का आनंद कुछ और ही है। इसी प्रकार सामूहिक साधना का प्रचलन है और यह सामूहिक साधना अपने आप में ऎसी है जिसमें साधना बड़े पैमाने पर होती है लेकिन इसका प्रभाव कुछ ज्यादा इसलिए नहीं होता क्योंकि इसमें छीजत ज्यादा होती है और इस कारण साधना का पूर्ण प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता।    दूसरा आजकल साधना की बजाय दिखावा कुछ ज्यादा हो चला है। इस पाखण्ड की वजह से भी हमारा साधना पक्ष कमजोर हो गया है और फैशनी दिखावे का आडम्बर ज्यादा है।

इसके अलावा फिजूल खर्ची और अनुशासनहीनता का जो दौर हम देख रहे हैं उसमें हालात ये हो गए हैं कि दैवी साधना और देवी को रिझाने की बजाय हमारा जोर सांसारिक आनंद और लोगों को दिखाने का अधिक है।

यही कारण है कि आजकल साधना  के नाम पर इतना अधिक कुछ होने के बावजूद समस्याएं, आपदाएं और विषमताएं चरम पर हैं।

साधना को साधना ही रहने देने की जरूरत है ताकि नवरात्रि में शक्ति का संचय हो सके और साल भर के लिए शक्ति और ऊर्जा का संग्रहण हो सके।

सभी को नवरात्रि की शुभकामनाएं….

—000—

Comment:Cancel reply

Exit mobile version