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कविता

वसन्त वसत है मन में मेरे….

कविता  – 32

वसन्त वसत है मन में मेरे बनके प्यारा राजा।
वर्षा ऋतुओं की रानी है करती मन को ताजा।।

राजा अपनी मुस्कुराहट से सबका मन हर लेता।
रानी का द्रवित हृदय भी सबको वश में कर लेता।।

दोनों की राह अलग सी है पर लक्ष्य नहीं है न्यारा।
प्राणीमात्र के हितचिंतन में जीवन समर्पित सारा।।

राजा अपनी दिव्य सुरभि से सबको सुरभित करता।
रानी की भव्य भावना में भी मुखरित होती मानवता।।

राजा आशा का संचार करे रानी ‘प्यास’ को दूर करे।
दोनों मिलकर प्राणीमात्र की सेवा और सत्कार करें।।

रोज-रोज की तपन से हमको मुक्ति देती वर्षा प्यारी।
वसन्त पतझड़ से मुक्ति देकर हरता पीर हमारी।।

राजा – रानी होकर भी दोनों ने ना मिलने की ठानी।
यज्ञमयी है जीवन दोनों का और कल्याणी वाणी।।

है संस्कृति की चेतना के ये दोनों ही सजग प्रहरी।
तभी तो दोनों के स्वागत हेतु अब प्रकृति भी ठहरी।।

चाहे शिव और पार्वती हों चाहे त्रेता के हों सियाराम।
प्राणी मात्र के हितचिंतन में भजते माला सुबह शाम।।

जो प्राणी मात्र के हित चिंतन में अपना ध्यान लगाते।
ऐसे जन ही  धरती  पर  आकर  देव पुरुष  कहलाते।।

निष्काम कर्म योगी की भांति जो  जन  जीवन  जीते।
ऐसे जन ही शिवजी की भान्ति जग के विष को पीते।।

बढ़ते – बढ़ते जीवन  जिनका  वटवृक्ष  सा  हो  जाता।
हर पंथी उनकी छाया में आकर ऊर्जित सा हो जाता।।

नई  ऊर्जा  को  पाकर  जब  जोर  लगाया  जाता  है ।
तब हर मंजिल आसान लगे लक्ष्य निकट आ जाता है।।

ऐसे ही वसंत- वर्षा को जानो, हमको देते यही संदेश।
जीवन व्रत हो परकल्याणी अमृतसम हो जा ‘राकेश’।।

यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’-  से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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