अमेरिका का पहला सच

 अमेरिका के रक्षा मंत्रालय की एक रपट में यह पहली बार स्वीकार किया गया है कि भारत के विरुद्ध आतंकवाद फैलाने के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है। पाकिस्तान की फौज भारत के मुकाबले बहुत कमजोर है इसलिए इस कमी की भरपाई वह आतंकवाद के जरिए करना चाहती है। नरेंद्र मोदी की शपथ के समय भी हेरात में भारतीय वाणिज्य दूतावास में जो आतंकवादी हमला हुआ था उसमें पाकिस्तान का ही हाथ था।

अमेरिका ने इतने साफ शब्दों में पाकिस्तान की फौज के असली इरादों का भांडाफोड़ कभी नहीं किया। यदि इसी तरह की साफ-साफ बात अमेरिका शुरु से करता रहता तो पाकिस्तान की क्या मजाल थी जो भारत के विरुद्ध वह युद्ध छेड़ता या आतंकवाद फैलाता। यह अमेरिका की ही शह थी कि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध पिछले 67 साल से नकली सैन्य-संतुलन बनाए हुए है। क्या अमेरिका के पास इस सवाल का जवाब है कि पाकिस्तान अपने दम पर भारत का मुकाबला कर सकता है? भारत को धौंस दे सकता है? भारत के खिलाफ आतंकवाद फैला सकता है? यह सब वह इसलिए करता आ रहा है कि उसकी पीठ पर हमेशा अमेरिका का हाथ रहा है।

मैं समझता हूं कि पाकिस्तानी आतंकवाद को बढ़ावा देने का सारा दोष अमेरिका का ही है। अमेरिका ने अफगानिस्तान में रुस को पटकनी मारने के लिए पाकिस्तान को अपना मोहरा बनाया था। ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों को प्रश्रय दिया। बाद में जाकर जो आतंकवादी अमेरिका के खिलाफ थे उन्हें मारा। लेकिन जो आतंकवादी भारत के खिलाफ थे उनके बारे में अमेरिका हमेशा चुप्पी साधे रखा। लादेन को मारने वाले अमेरिका ने आज तक भारत विरोधी सभी आतंकवादियों को छुट्टा क्यों छोड़ रखा है?

अब उसने यह जो रपट जारी की है, यह सिर्फ भारत की खुशामद के लिए है। यदि वह सचमुच इस रपट के तथ्यों में विश्वास करता है तो मैं पूछता हूं कि वह पाकिस्तानी फौज का टेंटुआ क्यों नहीं कसता? यदि पाकिस्तानी फौज का खर्चा-पानी बंद हो जाए तो आतंकवाद भी खत्म होगा और पाकिस्तान की जनता के सीने पर से फौज का बोझ भी हट जाएगा। पाकिस्तान में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना होगी। नवाज शरीफ सरकार मजबूती के साथ काम कर सकेगी। अमेरिका को अब शायद डर है कि अफगानिस्तान से उसकी वापसी के बाद कहीं तालिबान उसके बचे हुए सैनिकों का कत्लेआम न कर दे। इसलिए वह पाकिस्तानी फौज के विरुद्ध इस सच्चाई को उगल रहा है। बेहतर यही होगा कि अपनी आंखों से वह क्षुद्र स्वार्थ का चश्मा उतारें और भारत-पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सच्ची शांति की स्थापना में मदद करें। यदि दक्षिण एशिया में अमेरिका का सीधा हस्तक्षेप बंद हो जाए तो यह तीनों राष्ट्र भाईचारे की डोर में बंध सकते हैं।

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