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‘मेरी जाति हिंदुस्तानी’ की विजय

सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के जिस निर्णय को रद्द किया है, अगर वह लागू हो जाता तो देश के लिए वह अत्यंत विनाशकारी सिद्ध होता। मद्रास न्यायालय का फैसला यह था कि देश में जो जनगणना होती है, उसका आधार जाति हो। जाति-आधारित जन-गणना ब्रिटिश सरकार ने 1857 की क्रांति के बाद शुरु की थी। उसका लक्ष्य था- भारतीयों में फूट डालना। उनकी एकता को भंग करना। उन्हें जातियों में बांट देना। भारतीय समाज के इतने टुकड़े कर देना कि वह एक होकर अंग्रेजी राज को कभी चुनौती न दे सके। इसीलिए उसने हर जनगणना में जाति को आधार बनाया।

लेकिन यह दांव ज्यादा चला नहीं। गांधीजी के नेतृत्व में देश एक हो गया और ब्रिटिश राज को कड़ी चुनौती मिलने लगी। इसके अलावा अंग्रेज हुक्मरान को पता चला कि जातियों के तिलिस्म को समझना उसके बस की बात नहीं है। शुरु-शुरु में जातियों की संख्या सैकड़ों में थी। बाद में वह हजारों में हो गई। हर जन-गणना में जात में से जात पैदा होती गईं। इतनी जातियां निकल आईं कि उनका गिनना मुश्किल हो गया। इतना हीं नहीं, एक ही जाति अलग-अलग जिलों और प्रांतों में अलग-अलग नामों से जानी जाने लगी। हर जाति अपने आप को उंचा दिखाने लगी। वर्ण-व्यवस्था का रुप इतना विकट हो गया कि उसका सही-सही ब्यौरा रखना मुश्किल हो गया। अंग्रेज ने तंग आकर 1931 में जन-गणना से जात को निकाल बाहर किया।

लेकिन कांग्रेस की मति मारी गई। लगभग 80 साल बाद उसने दुबारा जातीय जन-गणना की घोषणा की, जिसका मैंने डटकर विरोध किया। ‘मेरी जाति हिंदुस्तानी’ नामक आंदोलन मैंने छेड़ा। देश के लगभग सभी पार्टियों के नेताओं, नामी-गिरामी विद्वानों, कलाकारों, पत्रकारों और समाजसेवियों के सहयोग से वह आंदोलन सफल हुआ। ‘सबल भारत’ द्वारा छेड़े गए इस आंदोलन की मांग को स्वीकार करते हुए सोनिया गांधी ने जन-गणना से जाति को निकलवा दिया। यदि जातीय जन-गणना होती तो भारतीय समाज खंड-बंड हो जाता। मुझे बहुत खुशी है कि सर्वेाच्च न्यायालय ने जातीय गणना के समर्थन में दिए गए सभी तर्कों का जोरदार खंडन किया है। भारत की राजनीति से जिस दिन जातिवाद खत्म हो जाएगा, यहां सच्चे लोकतंत्र को बड़ा संबल मिलेगा।

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