हमला कायराना नहीं, मुकाबला कायराना

छत्तीसगढ़ में माओवादियों ने पुलिस के 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। अभी तक यह पता नहीं चला है कि माओवादी कितने मारे गए हैं। इसका मतलब यही हुआ कि हमारे जवानों को गाजर−मूली की तरह काट दिया गया है। याने यह हमला एकतरफा हुआ है। इसका क्या यह मतलब निकाला जाए कि हमारे जवान निहत्थे थे और माओवादी सशस्त्र? यदि ऐसा था तो यह तो राज्य और केंद्र की सरकारों के लिए डूब मरने की बात है लेकिन विश्वास नहीं होता कि ऐसा हो सकता है। तो फिर क्या हुआ होगा? हमारे जवान मारे गए लेकिन छत्तीसगढ़ के उन जंगलों तक सरकार की पहुंच आसान नहीं है। वरना मारनेवाले नक्सलियों का अभी तक भुर्त्ता बना दिया जाता।

छह माह पहले तक तो हर पिटाई के बाद यह तर्क दिया जाता था कि केंद्र में कांग्रेस और राज्य में भाजपा की सरकार है। दोनों में ताल−मेल की कमी है। इसका फायदा माओवादी उठा रहे हैं लेकिन यह तर्क अब चकनाचूर हो चुका है। केंद्र और राज्य, दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। ऐसी स्थिति में इतने बड़े हमले का होना दोनों सरकारों के माथे पर कलंक का टीका है। यह कह देने से काम नहीं चलेगा कि यह हमला कायराना था। हमला कायराना नहीं, मुकाबला कायराना था। हमारे 500 जवानों ने तो अपनी जान बहादुरी से झोंक दी लेकिन सारे देश में 20 लाख जवानों की फौज और पुलिस आखिर हमने किसलिए पाली हुई है? वे किसके इशारे पर लड़ते हैं? अभी वे कौनसा युद्ध लड़ रहे हैं? यदि हमारे नेता कायर न हों तो इन नक्सलियों का सिर्फ आठ दिन में पूरा सफाया हो सकता है। क्या छत्तीसगढ़ भारत का हिस्सा नहीं है

वहां आठ−पंद्रह दिन के लिए एक ब्रिगेड क्यों नहीं लगाई जाती? एक−एक गांव से उनका सफाया क्यों नहीं किया जा सकता? नेताओं को इतनी शर्म भी नहीं आती कि छत्तीसगढ़ के कई बड़े−बड़े नेताओं को पिछले साल मार दिया गया था और वे अब भी कोरी बातें बना रहे हैं। वे बातें बना रहे हैं, बनाते रहें। किसी दिन उनका भी बंडल बंध जाएगा। यदि ऐसा हो गया तो उनकी मौत पर कोई आंसू बहानेवाला भी नहीं मिलेगा। जिन 14 जवानों की हत्या हुई है, क्या उनके परिजन को मोटी राशि दे देने से नेताओं की जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी? गुप्तचर सूचना के बिना जवानों को मौत की भट्ठी में झोंकने के लिए कौन जिम्मेदार है? राजनीतिक दलों के कार्यकर्त्ता सत्ता की मलाई चाटने के लिए मरे जाते हैं। लेकिन वे इन हिंसाग्रस्त इलाकों में जाकर नागरिकों को सचेत क्यों नहीं करते? उन्हें प्रशिक्षण क्यों नहीं देते? माओवादियों से सीधा संवाद करने में कोई बुराई नहीं है। जो समर्पण करें, उनका स्वागत है लेकिन जो हिंसा पर उतारु हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि वे दक्षिण एशिया के सबसे शक्तिशाली देश से लड़ने की मूर्खता कर रहे हैं।

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