सेकुलर का अर्थ पंथनिरपेक्षता है, धर्मनिरपेक्षता नहीं

भारत ने अपने नागरिकों को मौलिक अधिकार देकर उनको सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय देने का प्रयास किया है। भारत की पंथनिरपेक्षता की नीति प्राचीन काल से रही है। पंथनिरपेक्षता का अभिप्राय है कि कानून के सामने जाति पंथ संप्रदाय को नहीं देखा जाएगा बल्कि व्यक्ति को नैसर्गिक न्याय देने का हर संभव प्रयास किया जाएगा। इसलिए भारतीय संविधान में यदि पंथनिरपेक्षता का शब्द स्थापित किया गया तो यह उचित ही था। इसके स्थान पर कांग्रेस और कम्युनिस्ट या धर्मनिरपेक्ष दल धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग करते हैं जो कि गलत है और कानून व संविधान की मूल आत्मा के विरुद्ध भी है।
वर्ष 1976 में संशोधन करके प्रस्तावना को बदलकर इसकी मूल चेतना के साथ खिलवाड़ और समझौता करते हुए ‘सेकुलर’ शब्द प्रयोग किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत को सेकुलर देश घोषित किया। जिसका अर्थ ‘पंथनिरपेक्ष’ होना चाहिए था, परंतु कांग्रेस ने इसका अर्थ धर्मनिरपेक्ष कर दिया।
    हमें पंथनिरपेक्षता के आधार पर अपनी राजनीति के हिंदू स्वरूप अर्थात वैदिक दृष्टिकोण को भी स्थापित करने की आवश्यकता थी। जिससे देश वैदिक धर्म की मान्यताओं के आधार पर चलता, परंतु यहां तो लोगों को धर्म की परिभाषा ही पता नहीं है। ऐसा ना करके शासक वर्ग ने भारत की आध्यात्मिक छवि को चोट पहुंचाई गई, इसका यह हश्र हुआ कि भारत किसी एक धर्म से नहीं पहचाना गया , पांडवों से लेकर मौर्य काल, मुगलों और  अंग्रेजों के शासन काल में भारत की छवि वैदिक धर्म के सिद्धांतों के अनुरूप बनी रही। सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया  – की पवित्र वाणी में भारत का समाजवाद स्पष्ट झलकता है। जिसे कभी भी किसी भी शासक वर्ग ने ठुकराया नहीं। हां, अंग्रेजों और मुगलों के शासन काल में इस नीति को अवश्य ठुकरा दिया गया और किसी संप्रदाय विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए शासक वर्ग काम करने लगा।
वैदिक काल में हिंदू शासकों के शासनकाल में देश अपने नागरिकों की देखभाल करने में सक्षम व समाजवादी प्रवृत्ति को लेकर सभी धर्मों को साथ लेकर चला । इस काल में नागरिकों को कर्तव्य शील बनाने पर ध्यान दिया जाता था ना कि अधिकारों के लिए लड़ने की शिक्षा दी जाती थी। इससे समाज में शांति बनी रहती थी। आज भी यदि हम अपने पूर्वजों की धारणा को मान्यता प्रदान करें तो देश में अफरा तफरी लड़ाई झगड़े का माहौल खत्म हो सकता है ।
  हमारे वेद उपनिषद आदि सभी में नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ-साथ उनके मौलिक कर्तव्यों पर विशेष ध्यान दिया जाता था। भारत को अपने मौलिक चिंतन को पहचान कर अपनी राजनीति को नई दिशा देते हुए उसका अनुकरण करने की आवश्यकता है। यदि आज हमने राजनीति का हिंदूकरण करने की सावरकर की सोच पर अमल किया तो निश्चय ही भारत विश्व गुरु बन सकता है।
                ……… श्रीनिवास आर्य

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