इस हमले का अर्थ क्या है?

जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकवादी हमले का अर्थ क्या है? इसका मोटा-सा अर्थ यह है कि कश्मीर के अलगाववादियों के पांव के नीचे की जमीन खिसक गई है। पिछले दो मतदानों में 72 प्रतिशत मतदान होना कोई मामूली बात नहीं है। इतना अभूतपूर्व मतदान तब हुआ है जबकि अलगाववादियों ने उसके बहिष्कार का आह्वान किया था। अब फिर सोमवार को श्रीनगर में प्रधानमंत्री की सभा है। उसके बाद मतदान का तीसरा दौर होना है। इस मौके पर 12 घंटों में चार आतंकवादी हमलों का मकसद क्या हो सकता है, यह स्पष्ट है।

वे चाहते हैं कि डर के मारे कश्मीरी लोग वोट डालने के लिए घर से बाहर न निकलें। अभी उन्हें सुरक्षा देने वालों को मारा गया है। क्या अब वे आतंकवादी कश्मीरी माताओं, बहनों और बुजुर्गों को भी मारेंगे, जो कड़ाके की ठंड में भी वोट देने के लिए अपने घरों से निकल पड़ते हैं? वे सारे खतरे मोल ले कर भी वोट दे रहे हैं याने भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था पर अपनी मुहर लगा रहे हैं। उन सब के खिलाफ आतंकवादी कैसे लड़ेंगे? वे बंदूक के जोर पर लाखों कश्मीरियों की राय कैसे बदलेंगे? भारत की इतनी लंबी-चौड़ी फौज का वे सात जन्म में भी मुकाबला नहीं कर सकते और कश्मीर की जनता भी उनसे तंग आई हुई है।

ऐसे में वे खुद का खून फिजूल क्यों बहा रहे हैं? इस छुट-पुट हिंसा से उन्हें क्या हासिल होगा? उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि उनकी हिंसा से सबसे ज्यादा नुकसान किसका होता है? क्या कश्मीरियों का ही नहीं होता? क्या वे मुसलमान नहीं है? उन बेकसूर मुसलमान कश्मीरियों की हत्या को कौन मौलाना ‘जिहाद’ कह सकता है?

अगर हम यह मान लें कि इन आतंकवादियों को पाकिस्तानी सरकार नहीं भेज रही है तो भी यह सवाल मन में उठता है कि इन्हें रोकने के लिए वह क्या कर रही है? भारत सरकार का आरोप है कि ये आतंकवादी पाकिस्तान फौज और आईएसआई के दम पर ही हमला करते हैं।

क्या पाकिस्तान सरकार को यह बात अभी तक समझ में नहीं आई है कि इस तरह के हमले अगर हजार बरस तक भी होते रहे तो कश्मीर उसे मिलने वाला नहीं है। कश्मीर का हल बातचीत से ही होगा। हथियारों से नहीं।

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