मोदी का शीर्षासन!

नेता नौकरशाहों का नौकर ही होता है

नरेंद्र मोदी जैसे ही प्रधानमंत्री बने, उन्होंने सर्वत्र हिंदी का इस्तेमाल शुरु कर दिया। दक्षेस राष्ट्रों के नेताओं से भी हिंदी में बात की। देश को लगा कि यह ऐसा पहला प्रधानमंत्री आया है, जो गुजराती होते हुए भी राष्ट्रभाषा को उसका उचित स्थान दिलाएगा। यह सच्चा राष्ट्रवादी है और अंग्रेजी का गुलाम नहीं है। मोदी ने जो अपना पहला पत्र राष्ट्रपति को लिखा था, शपथ के पहले, वह अंग्रेजी में था। उस पर किसी का ध्यान नहीं गया लेकिन मुझे वह एक अपशगुन सा लगा था और लोगों से मोदी की इस भूल की अनदेखी करने को कहा था। अक्सर इस तरह के पत्र अफसर ही तैयार करते हैं। उस समय जल्दबाजी में किसी अफसर ने वह तैयार कर दिया होगा और हड़-बड़ में मोदी ने उस पर हस्ताक्षर कर दिए होंगे।

लेकिन अब पता चल रहा है कि कोई आदमी प्रधानमंत्री बन जाए या राष्ट्रपति, रहता है वह नौकरशाहों का नौकर ही। सर्वोच्च पद पर पहुंच कर भी हमारे लोग स्वतंत्र राष्ट्र के नेता की तरह बर्ताव करने का साहस नहीं जुटा पाते। यह साहस शुरू-शुरू में मोदी ने दिखाया था लेकिन अब मोदी भी अंग्रेजी की गुलामी में पूरे मनोयोग के जुट गए हैं। मोदी ने अपनी जापान और अमेरिका यात्रा के दौरान हिंदी का प्रयोग करके अटलजी की परंपरा निभाई बल्कि मैं यह कहूं तो गलत नहीं होगा कि वे उनसे भी आगे निकल गए। अटलजी भाषण तो प्राय: हिंदी में देते थे लेकिन कूटनीतिक वार्ता अंग्रेजी में करते थे।

मगर ‘ब्रिक्स’ सम्मेलन में ब्राजील पहुंचते ही अफसरों ने पट्टी पढ़ाई और मोदी महोदय फिसल पड़े। अंग्रेजी में लिखा हुआ अफसरों का भाषण उन्होंने जैसे-तैसे पढ़ डाला लेकिन अब अफसरों ने मोदी को नया खिलौना पकड़ा दिया है, जिसका नाम है-‘टेलिप्रॉम्टर’। यह कैमरे जैसा यंत्र करोड़ों लोगों को धोखे में डाल सकता है। इस यंत्र की खूबी यह है कि अंग्रेजी में लिखा भाषण वक्ता के सामने पर्दे पर चलता रहता है। वह वक्ता को तो दिखता रहता है लेकिन श्रोताओं को दिखाई नहीं पड़ता। वक्ता उसे पढ़ता जाता है। श्रोता समझते हैं कि वक्ता बोल रहा है, बिना कुछ देखे हुए या पढ़े हुए। यह धोखे की ठट्ठी वक्ता की आवाज को भी टेका देती रहती है।

इसी यंत्र का इस्तेमाल करके मोदी ने ऑस्ट्रेलिया की संसद, फिजी और दक्षेस सम्मेलन में शीर्षासन की मुद्रा धारण कर ली। अंग्रेजी प्रेमी पत्रकार मुझसे पूछ रहे थे कि आपके मोदी को यह हुआ क्या है? रातों-रात वह इतनी अच्छी अंग्रेजी कैसे बोलने लगा है? हिंदी प्रेमी और राष्ट्रवादी लोग अपना माथा धुन रहे हैं। उन्हें क्या पता कि भारत की नौकरशाही का शिकंजा कितना मजबूत है। वह मोदी जैसे संघ के निष्णात स्वयंसेवक, लोकप्रिय और साहसी प्रधानमंत्री को भी सिर के बल खड़ा कर देगी।

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