केजरीवाल सरकार के ‘प्रदूषण’ से उखड़ा सुप्रीम कोर्ट, कहा- प्रचार पर हो रहा खर्चा, ऑडिट करा दूँगा

दिल्ली वालों ने मुफ्तखोरी के लालच के कारण किस अराजक के हाथ दिल्ली की सत्ता दी है, अनेकों बार खुलासा हो चूका है, लेकिन मुफ्तखोर दिल्लीवासियों ने अपनी आंखें और दिमाग नहीं खोली। अपने स्वार्थ के लिए जो उन्हीं की जान को कदम-कदम पर जोखिम में डाल रहा है। दिल्लीवासियों थोड़ा दिमाग पर जोर डालो, चौधरी ब्रह्म प्रकाश से लेकर शीला दीक्षित तक इतने मुख्यमंत्री आये किसी भी मुख्यमंत्री ने अपनी नाकामियों को छुपाने के कभी को आरोपित नहीं किया, कभी किसी का वेतन नहीं रोका, कभी प्रदुषण का रोना नहीं रोया, लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को देखिए सुप्रीम कोर्ट ने किस तरह फटकार लगाई।
जिस तरह कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी पर कितनी अराजकता फैलाई गयी, अस्पतालों के बाहर जमीनों पर पड़े मरीजों की भीड़, ऑक्सीजन की ब्लैक परन्तु जैसे ही केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में ऑक्सीजन ऑडिट की बात करते ही दिल्ली ही नहीं पूरे भारत में ऑक्सीजन की कमी एकदम ख़त्म हो गयी, उसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने प्रदुषण खर्चे की ऑडिट देने की बात कहकर केजरीवाल सरकार के तोते उड़ा दिए। प्रदुषण पर अपनी नाकामी छुपाने के लिए दूसरे राज्यों पर आरोप लगाने वाली केजरीवाल सरकार पर क्या करेगी?
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के मामले में निष्क्रियता दिखाने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (15 अक्टूबर) को अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि जिस तरह प्रदूषण नियंत्रण पर दिल्ली सरकार बहाने बना रही रही है, उसको देखते हुए कोर्ट को सरकार की आय और प्रचार के लिए विज्ञापनों पर किए जा रहे खर्चों का ऑडिट कराने का आदेश देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए दिल्ली सरकार ने क्या कदम उठाए हैं। दिल्ली सरकार के पास सड़कों पर से धूल-मिट्टी हटाने के लिए कितनी मशीनें हैं? इस पर दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा कि रोड को साफ करने का काम नगर निगम के अंतर्गत आता है। दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि प्रदूषण को रोकने के लिए नगर निगमों को भी कुछ उठाने चाहिए। इस पर कोर्ट ने पूछा कि प्रदूषण के लिए क्या वे नगर निगमों पर दोष लगा रहे हैं?

इसके बाद मेहरा ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली में रोड साफ करने वाली 69 मशीनें हैं। तब कोर्ट ने पूछा कि दिल्ली में और कितनी मशीनें चाहिए और वो कैसे आएँगी इसके बारे में बताइए। तब वकील मेहरा ने कहा कि ये बात नगर निगम के कमिश्नर बताएँगे। इस पर चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा, “मेरी दादी एक एक चेन की कहानी सुनाती थी और बताती थी कि कैसे मछली मर गई। आप लोग नगर निगम पर आरोप लगा रहे हैं।”

सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि कोर्ट को ऑडिट कराने के मजबूर होना पड़ेगा, जिसमें देखा जाएगा कि सरकार को कितनी आय हो रही और वह अपने विज्ञापनों पर कितना खर्च कर रही है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि नगर निगम कोर्ट को पहले ही बता चुका है कि उसके पास कर्मचारियों को वेतन देने तक के पैसे नहीं हैं। इस पर दिल्ली सरकार ने कहा कि वह नगर निगम को फंड जारी के लिए तैयार है।

प्रदुषण का कारण पराली नहीं

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि दिल्ली में प्रदूषण का कारण पराली जलाना नहीं है। केंद्र ने बताया कि प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान सिर्फ 10 प्रतिशत है। इस पर कोर्ट को पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा के मुख्य सचिवों को केंद्र द्वारा कल की आपातकालीन बैठक के लिए उपस्थित रहने के लिए कहा। कोर्ट ने कहा कि सरकार इस पर भी गौर करे कि प्रदूषण को रोकने के लिए किन उद्योगों, वाहनों, बिजली संयंत्रों को कुछ समय के लिए बंद किया सकता है। कोर्ट ने बुधवार शाम तक दिल्ली और केंद्र सरकार से इस पर जवाब माँगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्रों के राज्यों को इस बीच घर से काम करने का निर्देश दिया। इस पर दिल्ली सरकार ने कहा कि वह पूर्ण लॉकडाउन के तैयार है। दिल्ली सरकार ने सोमवार से एक सप्ताह के लिए स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर, जहाँ परीक्षाएँ आयोजित की जा रही हैं, शारीरिक कक्षाएँ बंद करने की घोषणा कर दी है। इस मामले पर अगली सुनवाई 17 नवंबर को होगी।

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर गंभीर स्तर तक पहुँच चुका है। राष्ट्रीय राजधानी में रविवार को 24 घंटे का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 330 दर्ज किया गया, जबकि शुक्रवार को एक्यूआई 471 था, जो इस सीजन में अब तक का सबसे खराब है। शीर्ष अदालत ने शनिवार को प्रदूषण के स्तर में वृद्धि को ‘आपात स्थिति’ बताते हुए राष्ट्रीय राजधानी में तालाबंदी का सुझाव दिया था।

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