कंगना रनौत ने हाल ही में कहा था कि 1947 में भारत को भीख में आज़ादी मिली और असली आज़ादी 2014 में मिली। तमाम विपक्षी दलों के नेता उनके इस बयान का विरोध करते हुए उनका पद्मश्री सम्मान वापस लेने की बातें कर रहे हैं। कंगना रनौत ने कहा कहा कि उन्होंने उसी इंटरव्यू में स्पष्ट कर दिया था कि 1857 में भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम हुआ था और उन्होंने महारानी लक्ष्मीबाई, सुभाष चंद्र बोस और वीर सावरकर के बलिदानों को भी याद किया। ये कैसा विरोधाभास है कि जिस वीर सावरकर की ये लोग आलोचना कर रहे हैं, जबकि उन्हीं की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी सावरकर जी की प्रशंसा करती थी। 

कंगना रनौत ने आज़ादी को भीख में मिलने वाली बताकर कुर्सी के भूखे तुष्टिकरण पुजारियों की दुखती नव्ज पर हाथ रखा तो चीखना लाजमी है। अपनी वाह-वाही के चक्कर में भारत के असली इतिहास को ही गड्डे में डाल मुग़ल आतताइयों का गुणगान कर देश को भ्रमित करते रहे हैं। कंगना को कुछ कहने से पहले ट्रिब्यून, फरवरी 12, 2006(संलग्न) देख लेना चाहिए। नाथूराम गोडसे को महात्मा गाँधी का हत्यारा कहने वालों देश को बताओं कि किस कारण गाँधी ने ब्रिटिश सरकार से नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के विरुद्ध अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे? नेताजी बोस देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे थे, फिर उनके विरुद्ध इतनी बड़ी साज़िश क्यों की गाँधी ने? किस हैसियत से गाँधी ने उस अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे? देश की आज़ादी के लिए अपनी हर साँस खतरे में डालने वाले को आज़ादी के बाद भी गुमनामी ज़िंदगी जीनी पड़ी। शर्म आनी चाहिए। फिर कहते हैं गाँधी ने बिना खड़क के आज़ादी दिलवाई। 

70 वर्षों से रो रही थीं भारत माता, 2014 से शुरू किया मुस्कुराना’: गोविंद देवगिरि ने पूछा – राम को काल्पनिक बताने का पाप किसने किया?

राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य गोविंद देवगिरीअयोध्या राम मंदिर के कोषाध्यक्ष और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य गोविंद देवगिरी महाराज का बयान इन दिनों सुर्खियों में है। उन्होंने पुणे में शुक्रवार (12 नवंबर 2021) को कहा, “भारत माता 70 साल से खुश नहीं थी, लेकिन 2014 के बाद उसने थोड़ा-थोड़ा मुस्कुराना शुरू किया है।”  

गोविंद देवगिरी महाराज ने समग्र वंदे मातरम ग्रंथ प्रकाशन समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जिस इतिहास में मुगल को महान बताया जाए, छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए महज 5 पंक्तियां लिखी जाएँ और महाराणा प्रताप को दूर फेंक दिया जाए, तो क्या वो इतिहास हमारा इतिहास है? गोविंद देवगिरी ने साम्यवाद पर निशाना साधते हुए कहा कि यही इतिहास हमको आज तक पढ़ाया गया, क्योंकि दिल्ली के तख्त के नीचे जो सारे साम्यवादी बैठे थे। उन्होंने शिक्षा का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में लेकर रखा था।

इसके अलावा उन्होंने परंपराओं और इतिहास झुठलाने वालों को भी करारा जवाब देते हुए कहा, ”हमारी परंपराओं को झुठलाकर, हमारे इतिहास-भूगोल को झुठलाकर, हमारे तीर्थों को झुठलाकर, भगवान राम को काल्पनिक कहकर, राम सेतु किसी के द्वारा बनाया ही नहीं गया ये कहकर और इसका एफिडेविट देकर हमारी सरकारों ने जो पाप किया वो पाप आपके माथे पर भी लगा हुआ है।”  

कंगना रनौत ने कहा कि 1857 का तो उन्हें पता है, लेकिन अगर कोई उनके सामने ये सिद्ध कर देगा कि 1947 में कौन सा युद्ध हुआ था, तो वो अपना पद्मश्री वापस करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि उस स्थिति में वो माफ़ी भी माँग लेंगी। कंगना रनौत ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा कि उन्होंने बलिदानी लक्ष्मीबाई की फिल्म में काम किया है, ऐसे में उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को लेकर काफी रिसर्च किया है। उनका मानना है कि उस दौरान राष्ट्रीयता और दक्षिणपंथ, दोनों ऊँचा उठ रहा था।

कंगना रनौत का पूछना है कि लेकिन ये सब अचानक से ख़त्म कैसे हो गया? उन्होंने पूछा कि महात्मा गाँधी ने भगत सिंह को क्यों मरने दिया? साथ ही सवाल दागा कि क्यों नेताजी सुभाष चंद्र बोस को मार डाला गया और उन्हें कभी महात्मा गाँधी का समर्थन नहीं मिला? उन्होंने ये भी सवाल पूछा कि विभाजन की रेखा आखिर एक गोरे व्यक्ति ने क्यों खींची? कंगना रनौत का ये प्रश्न भी है कि आज़ादी का युद्ध लड़ने की बजाए भारतीय क्यों एक-दूसरे को मारने लगे? उन्होंने कहा कि इन सवालों के जवाब वो खोज रही हैं, इसमें उनकी कोई सहायता करे।

कंगना रनौत ने लिखा, “इतिहास वही है जो आज स्पष्ट दिख रहा है। अंग्रेजों ने भारत को तब तक लूटा, जब तक उन्हें संतुष्टि नहीं हुई। चरम गरीबी, सूखा और शत्रुता के बाद भी वो भारत में रह रहे थे, वो भी तब जब उन पर दूसरे विश्व युद्ध का दबाव था। उन्हें पता था कि वो वो सदियों के अत्याचार की कीमत चुकाए बिना यहाँ से नहीं जा सकते। इसीलिए, उन्हें भारतीयों के मदद की ज़रूरत थी। INA (आज़ाद हिन्द फ़ौज) का एक छोटा युद्ध भी हमें आज़ादी दिला देता। तब सुभाष चंद्र बोस भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बनते।”

कंगना रनौत ने पूछा कि जब दक्षिणपंथ इसे लड़ तक लेने के लिए तैयार था, तब आज़ादी कॉन्ग्रेस के भीख के कटोरे में क्यों डाली गई? उन्होंने कहा कि कोई उन्हें ये बात समझा दे। उन्होंने कहा कि कोई उन्हें इन सवालों के जवाब खोज कर दे देता है तो वो ख़ुशी से अपना पद्मश्री वापस कर देंगी। उन्होंने कहा कि अगर कोई साबित कर देता है कि ‘टाइम्स नाउ’ के इंटरव्यू में उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान किया है, तब भी वो अपना पद्मश्री सम्मान वापस कर देंगी।

उन्होंने कहा कि सीधे गाली बकने या बड़ी चालाकी से एडिट किए गए इंटरव्यू के किसी क्लिप को शेयर करने से कुछ नहीं होगा। उन्होंने कहा कि उनका कहा पूरा वाक्य सुना जाए और तथ्यों पर बात की जाए, तब वो कोई भी परिणाम भुगतने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास ज़रूर भौतिक आज़ादी थी, लेकिन 2014 में हमारी चेतना को आज़ादी मिली। उन्होंने कहा कि तब एक मृत सभ्यता उठ खड़ी हुई और उसने अपने पंख लहराए। उन्होंने कहा कि आज के सभ्यता दहाड़ मार रही है और ऊँचाई को प्राप्त कर रही है।

कंगना रनौत ने लिखा, “आज शायद पहली बार है जब अंग्रेजी न बोलने, छोटे शहरो से आने या स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने के लिए कोई हमें शर्मिंदगी महसूस नहीं करा सकता। उस इंटरव्यू में मैंने सब स्पष्टता से रखा है। लेकिन जो चोर हैं, उनकी तो जलेगी। कोई बुझा नहीं सकता है।” कंगना रनौत ने ‘ट्रांसफर ऑफ पॉवर’ का एक पुराना पत्र शेयर करते हुए लिखा कि ये वो ‘फ्रीडम फाइट’ है, जिसका उन्होंने अपमा किया था, जो ‘डोमिनियन ऑफ इंडिया’ को पॉवर का ट्रांसफर था।

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