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मंजिल अपनी पहचान

क्यों हो गया रक्त पिपासु? आणविक रासायनिक अस्त्रों से,
क्या तेरे बुझेगी प्यास? मायावाद की मरूभूमि में,

तुझे कहां मिलेगी घास? संभूति और असंभूति का,
मिलन ही पूर्ण विकास। है मंजिल यही तेरे जीवन की,

तुझे कब होगा अहसास? क्या कभी सोचकर देखा?
निकट है काल की रेखा।

जीवन बीत रहा पल-पल, जीवन बदल रहा पल-पल
अरे मनुष्य! तेरे जीवन के, पहिये आज और कल।

दादा दारी की सुनी थी लोरी, बचपन की उन राहों में।
धूल में खेले, रूठे, मचले, फिर भी उठा लिया बाहों में।

दिखा के चंदा मामा नभ पर, बंद किया था रोने से। दुलार भरी मां की थपकी, ले आई नींद किस कोने से?

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