विवाह के लिए जन्म कुंडली का मिलान कितना वैज्ञानिक है ?


संगीता पुरी

(लेखिका गत्यात्मक ज्योतिष की विशेषज्ञ हैं।)

आए दिन हमारी भेंट ऐसे अभिभावकों से होती है, जो अपने बेटे या बेटी के विवाह न हो पाने से बहुत परेशान हैं। उनकी विवाह योग्य संतानें पढ़ी-लिखी है,पर पांच-सात वर्ष से उपयुक्त वर या वधू की तलाश कर रहें हैं, कहीं भी सफलता हाथ नहीं आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण किसी संतान का मंगली होना है और मंगली पार्टनर न होने से वे कई जगह बात बढ़ा भी नहीं पाते। अगर पार्टनर मंगली मिल भी जाए तो कई जगहों पर लड़के-लड़कियों के गुण न मिल पाने से भी समस्या बनी ही रह जाती है। ये समस्या समाज में बहुतायत में है और सिर्फ कन्या के ही अभिभावक नहीं, वर के अभिभावक भी ऐसी समस्याओं से समान रुप से जूझ रहे हैं। लड़का-लड़की या परिवार के पूर्ण रुप से जंचने के बावजूद भी मंगला-मंगली और गुण-मिलान के चक्कर में संबंध जोडऩा संभव नहीं हो पाता है।
पुराने युग में शादी-विवाह एक गुड्डे या गुडिय़ा की खेल की तरह था। सिर्फ पारिवारिक पृष्ठभूमि का ध्यान रखते हुए किसी भी लड़की का हाथ किसी भी लड़के को सौंप दिया जाता था। कम उम्र में शादी होने के कारण लड़के-लड़कियों के व्यक्तित्व, आचरण या व्यवहार का कोई महत्व नहीं था। अत: बड़े होने के बाद लड़के-लड़कियों के विचारों में टकराव होने की संभावना बनी रहती थी। इसी कारण अभिभावक शादी करने से पूर्व ज्योतिषियों से सलाह लेना आवश्यक समझने लगे और इस तरह कुंडली मिलाने की प्रथा की शुरुआत हुई। कुंडली मिलाने के अवैज्ञानिक तरीके के कारण समाज में वैवाहिक मतभेदों में कोई कमी नहीं आई, साथ ही दुर्घटनाओं के कारण भी जातक के वैवाहिक सुख में बाधाएं उपस्थित होती ही रहीं, लेकिन फिर भी कुंडली मिलाना वर्तमान युग में भी एक आवश्यक कार्य समझा जाता है। यद्यपि कुंडली मिलाना आज किसी समस्या का समाधान न होकर स्वयं एक समस्या बन गया है।
ज्योतिष की पुस्तकों के अनुसार किसी भी लड़के या लड़की की जन्मकुंडली में लग्न भाव, व्यय भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव या अष्टम भाव में मंगल स्थित हो तो उन्हें मांगलीक कहा जाता है। परंपरागत ज्योतिष में ऐसे मंगल का प्रभाव बहुत ही खराब माना जाता है। यदि पति मंगला हो तो पत्नी का नाश तथा पत्नी मंगली हो तो पति का नाश होता है। संभावनावाद की दृष्टि से इस बात में कोई वैज्ञानिकता नहीं है। किसी कुंडली में बारह भाव होते हैं और पांच भाव में मंगल की स्थिति को अनिष्टकर बताया गया है। इस तरह समूह का 5/12 भाग यानि लगभग 41 प्रतिशत लोग मांगलिक होते है, लेकिन अगर समाज में ऐसे लोगों पर ध्यान दिया जाए जिनके पति या पत्नियां मर गयी हों, तो हम पाएंगे कि उनकी संख्या हजारों में भी एक नहीं है।
मंगला-मंगली के अतिरिक्त ज्योतिष की पुस्तकों में कुंडली मिलाने के लिए एक कुंडली मेलापक सारणी का उपयोग किया जाता है। इस सारणी से केवल चंद्रमा के नक्षत्र-चरण के आधार पर लड़के और लड़कियों के मिलनेवाले गुण को निकाला जाता है। यह विधि भी पूर्णतया अवैज्ञानिक है। किसी भी लड़के या लड़की के स्वभाव, व्यक्तित्व और भविष्य का निर्धारण सिर्फ चंद्रमा ही नहीं, वरन् अन्य सभी ग्रह भी करते हैं। इसलिए दो जन्म कुंडलियों के कुंडली-मेलापक द्वारा गुण निकालने की प्रथा बिल्कुल गलत है।
इस संबंध में एक उदाहरण का उल्लेख किया जा सकता है। मेरे पिताजी के एक ब्राह्मण मित्र ने, जो स्वयं ज्योतिषी हैं और जिनका जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण में हुआ था, पुष्य नक्षत्र में स्थित चंद्रमावाली लड़की को ही अपनी जीवनसंगिनी बनाया, क्योंकि ऐसा करने से कुंडली मेलापक तालिका के अनुसार उन्हें सर्वाधिक 35 अंक प्राप्त हो रहे थे। इतना करने के बावजूद उनकी अपनी पत्नी से एक दिन भी नहीं बनी। किसी कारणवश वे तलाक तो नहीं ले पाए परंतु उनका मतभेद इतना गहरा बना रहा कि एक ही घर में रहते हुए भी आपस में बातचीत भी बंद रहा। इसका अर्थ यह नहीं कि ज्योतिष विज्ञान ही झूठा है या ग्रहों का प्रभाव मनुष्य पर नहीं पड़ता है। दरअसल मेरे पिताजी के उस मित्र की कुंडली में स्त्री पक्ष या घर-गृहस्थी के सुख में कुछ कमी थी, इसलिए विवाह के बावजूद उन्हें सुख नहीं प्राप्त हो सका।
एक सज्जन अपनी पुत्री की तुला लग्न की कुंडली लेकर मेरे पास आए। उस कुंडली में सप्तम भावाधिपति मंगल अतिवक्र होकर अष्टमभाव में स्थित था। ऐसी स्थिति में लड़की पूरी युवावस्था यानि 24 वर्ष से 48 वर्ष तक पति के सुख में कमी और घर-गृहस्थीे में बाधा महसूस कर सकती थी, यह सोचकर मैने उस लड़की को नौकरी कर अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह दी, लेकिन अभिभावक तो लड़की की शादी करके ही निश्चिंत होना चाहते हैं। उन्होंनें दूसरे ज्योतिषी से संपर्क किया, जिसने अच्छी तरह कुंडली मिलवाकर अच्छे मुहूर्त में उसका विवाह करवा दिया। मात्र दो वर्ष के बाद ही एक एक्सीडेंट में उसके पति की मृत्यु हो गयी और वह लड़की अभी विधवा का जीवन व्यतीत कर रही है। मेरे पिताजी एक ज्योतिषी हैं पर उन्होने अपने किसी भी बच्चे की शादी में कुंडली मेलापक की कोई चर्चा नहीं की। क्या कोई पंडित 10 पुरुष और 10 स्त्रियों की कुंडली में से वर और कन्या की कुंडली को अलग कर सकता है, यदि नहीं तो वह किसी जोड़े को बनने से भी नहीं रोक सकता।
आज घर-घर में कम्प्यूटर और इंटरनेट के होने से मंगला-मंगली और कुंडली मेलापक की सुविधा घर-बैठे मिल जाने से यह और बड़ी समस्या बन गयी है। किन्ही भी दो बायोडाटा को डालकर उनका मैच देखना काफी आसान हो गया है, पर इसके चक्कर में अच्छे-अच्छे रिश्ते हाथ से निकलते देखे जाते हैं। उन दो बायोडाटा को डालकर देखने से, जिनकी बिना कुंडली मिलाए शादी हुई है और जिनकी काफी अच्छी निभ रही है या जिनकी कुंडली मिलाकर शादी हुई है और जिनकी नहीं निभ रही है, कम्प्यूटर और उसमें डाले गए इस प्रोग्राम की पोल खोली जा सकती है। एक ज्योतिषी होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि मैं अभिभावकों को उचित राय दूं। मेरा उनसे अनुरोध हे कि वे पुरानी मान्यताओं पर ध्यान दिए बिना, कुंडली मेलापक की चर्चा किए बिना, अपने बच्चों का विवाह उपयुक्त जीवनसाथी ढूंढ़कर करें। किसी मंगला और मंगली की शादी भी सामान्य वर या कन्या से निश्चिंत होकर की जा सकती है।

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