भारत की प्राचीन परंपरा रही है ‘घर वापसी’ या अशुद्धि अभियान

प्रस्तुति – देवेंद्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’ समाचार पत्र)

पिछले दिनों देश में घर वापसी की काफी चर्चा हुई है। यह चर्चा शुरू हुई आगरा में कुछ मुस्लिम परिवारों को वापस सनातन मत में लाने के एक कार्यक्रम से। घर वापसी किए एक व्यक्ति ने लालच दिए जाने की बात कह दी और हंगामा होने लगा। कई सवाल खड़े हुए? लालच से मतांतरण कराना गलत है, मतांतरण ही गलत है आदि। हालांकि यह सवाल किसी ने नहीं पूछा कि आखिर पिछले हजार वर्ष से देश में जो मतांतरण होता रहा है, उसकी प्रक्रिया क्या रही है? या फिर किसी ने भी यह पड़ताल करने की कोशिश नहीं की कि आज भी देश में जो मतांतरण किया जा रहा है, उसकी प्रक्रिया में लालच या भय शामिल है या नहीं।
यह तो एक स्थापित तथ्य है कि देश में ईसाई मतांतरण अधिकांशत: लोभ से और मुस्लिम मतांतरण अधिकांशत: भय से होते रहे हैं, आज भी होते हैं। परंतु मतांतरित हुए लोगों को वापस उनके मूल मत में लाने की प्रक्रिया महर्षि दयानंद सरस्वती ने की थी। यह एक इतिहास है कि एक बार कश्मीर के मतांतरित मुसलमानों ने हिंदू धर्म में वापस आने की इच्छा प्रकट की थी, परंतु उस समय के पंडित वर्ग ने इसे शास्त्रविरोधी कार्य बताते हुए राजा को ऐसा करने नहीं दिया था। दुर्भाग्यवश जो काम उस समय पंडित वर्ग ने किया था आज वही काम देश की मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग कर रहा है।
देखा जाए तो वेदों ने ‘कृण्वंतो विश्वमार्यम्Ó के शब्दों में इसका समर्थन किया है। सूत्र ग्रंथों ने इसका विस्तार करते हुए विधान बनाए थे। प्राचीन काल में आर्य बनाने की प्रक्रिया को शुद्धि कहा जाता था। इस प्रक्रिया में आत्मचरित को पवित्र करना शुद्धि कहलाती थी। आज मुस्लिम अथवा ईसाई हो चुके हमारे भाइयों को पुन: वैदिक सनातन मत में प्रविष्ट करने को ‘शुद्धÓ करना कहा जाता है। वेदों में इसका विधान कई स्थानों पर किया गया है।
उदाहरण के लिए ऋग्वेद में कहा हे इन्द्र! शत्रुओं के निवारणार्थ हमें शक्ति दीजिये जो हिंसारहित एवं कल्याणकारक है। जिससे तुम अनार्यों को आर्य अर्थात श्रेष्ठ बनाते हो, जो मनुष्य की वृद्धि का हेतु है। आपस्तम्ब सूत्र में कहा है, धर्म के अनुसार जीवन न जीने वाले द्विजों की संतान को शुद्ध कर यज्ञोपवीत दे देना चाहिये और प्रायश्चित से प्रायश्चित्कर्ता शुद्ध होकर अपने असली वर्ण को प्राप्त करता है। पाराशर, हारित और देवल स्मृतियों में भी ऐसे विधान पाए जाते हैं। इसी प्रकार पुराणों में भी शुद्धि का वर्णन प्राप्त होता है। भविष्य पुराण में कण्व ऋषि द्वारा शुद्धि का वर्णन किया गया है।
भारत का इतिहास भी शुद्धि की घटनाओं से भरा हुआ है। शंकराचार्य ने बौद्धों की शुद्धि की थी। कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल में शुद्धि का विधान हमारे देश में प्रचलित था। आधुनिक भारत में शुद्धि के प्राचीन संस्कार को पुनर्जीवित करने का और खोये हुए भाइयों को वापिस से हिन्दू धर्म में लाने का सबसे प्रथम एवं क्रांतिकारी प्रयास स्वामी दयानंद द्वारा किया गया और उस क्रम में अनेक लोगों ने अपनी आहूति भी दीं। शुद्धि कराने वाले अनेक वीरों की हत्या कर दी गई।
बहरहाल, लोभ और भय से मतांतरण का विरोध बिल्कुल होना चाहिए। इसके लिए कानून भी बनाया जाना चाहिए। परंतु क्या हम मतांतरण और घर वापसी या फिर शुद्धि में अंतर कर पाएंगे ?

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