बिखरे मोती ऊँचा सोचो सर्वदा,ऊँचे रखो भाव

ऊँचा सोचो सर्वदा,
ऊँचे रखो भाव।
जैसा चिन्तन चित्त में,
वैसा बने स्वभाव॥1504॥

व्याख्या:- छान्दोग्य-उपनिषद की सूक्ति है “यत पिण्डे जो ब्रह्माण्डे” अर्थात जो हमारे शरीर में है, वही ब्रह्माण्ड में है। पिण्ड और ब्रह्माण्ड का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। हमारे हृदय में चित्त है, जिसमें आत्मा रहता है और आत्मा के अन्दर परमात्मा रहता है, जो इतना सूक्ष्म है कि हमारे चित्त में उठने वाली भाव-तरंगों को भी जानता है। इससे सिद्ध होता है कि भगवान भाव से भी सूक्ष्म है।
ध्यान रहे,हमारा चित्त ऐसा प्रसारण केंद्र (Relay Centre) है, जो भाव तरंगों को ग्रहण भी करता है और उनका प्रसारण भी करता है। इसके लिए निष्पादन में ब्रह्माण्ड की शक्तियाँ(Natur Force) बड़ी सक्रिय भूमिका अदा करती है। यदि आपकी सोच महान है,विचार अथवा भाव महान है, तो ब्रह्माण्ड की शक्तियाँ आपकी सहायक बनेंगी और एक दिन आप को महान बना देंगी। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं उन्हें उनकी ऊँची सोच ने ही उन्हें महान बनाया है। आपको आपकी सोच के अनुरूप संगी-साथी और साधन मिलते चले जायेंगे। इस संदर्भ में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास रामचरित मानस के किष्किन्धा काण्ड में कितना सुंदर और सटीक कहते हैं:-

अति हरि-कृपा जाहि पै होई।
पाऊँ देहि एहि मारग सोई॥

         मनुष्य अपने साहस और संकल्प से, प्रार्थना और पुरुषार्थ से,अपने ऊँचे विचार और ऊँची सोच से अपने अभीष्ट लक्ष्य को एक दिन प्राप्त कर ही लेता है।ऊँची सोच से अभिप्राय श्रेष्ठ बुद्धि से है। इसलिए गायत्री मंत्र में श्रेष्ठ बुद्धि के लिए प्रार्थना की गई है:-

“धियो योन: प्रचो दयात् ”
अर्थात हे प्रभु ! मेरी बुद्धि को अपनी दिव्यताओं से प्रेरित करो, अपने तेज से प्रेरित करो, अपनी महानताओं (सकारात्मक सोच, श्रेष्ठ विचार) से प्रेरित करो, संसार की निकृष्ट सोच (नकारात्मक सोच, घटिया अथवा हीन विचार) से नहीं। जिन्हें महान बनना होता है, साधनों का अभाव उनके कभी आड़े नहीं आता है। साधन तो मिलते चले जाते हैं – “जहाँ चाह है, वहां राह है।” याद रखो, “सफलता साधनों में नहीं संकल्प में होती है।”अपने विचारों अथवा भावों की सर्वदा महान और पवित्र रखिए। “जैसा सोचेगे, वैसा ही बनोगे।” यह सृष्टि का नियम है।
यह कभी मत भूलो कि तुम अब अकेले हो, और तुम्हारे शब्दों को कोई सुन नहीं रहा। याद रखो, ब्रह्माण्ड की शक्तियाँ तुम्हारे एक-एक शब्द को पकड़ती हैं। इतना ही नहीं चित्त में होने वाले चिन्तन को भी पकड़ती हैं उसे हजारों गुणा करके तुम्हें वापस देती हैं। चित्त से जैसे भावों अथवा विचारों का विकीरण(Radiation) करोगे, ब्रह्माण्ड की शक्तियाँ वैसा ही तुम्हें हजारों गुणा परावर्तित(Reverse) कर के देंगी – यह ब्रह्माण्ड का नियम(Law of universe ) है। यदि आप किसी को अपने चित्त से भाव-तरंगें प्रेम की भेज रहे हैं, तो उधर से भी प्रेम की तरंगें लौटकर आएंगी और यदि आप का चित्त किसी के प्रति ईर्ष्या,द्वेष, निन्दा,चुगली और नफरत की भावतरंगे भेज रहा है, तो उधर से भी यही लौटकर आएंगी जिसका चिन्तन निन्दा – चुगली करने का है वह चुगलखोर कहलाता है, कामी है,तो बलात्कारी अथवा व्यभिचारी कहलाता है, चोरी का है, तो चोर कहलाता है,हिंसा का है, तो हिसंक अथवा हत्यारा कहलाता है, बेईमानी करने का है, तो बेईमान कहलाता है। और यदि किसी का चिन्तन सौम्यता अथवा दिव्य गुणों से ओत-प्रोत है,तो वह शिष्ट,सौम्य और देवता कहलाता है।कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य के चित्त का जैसा चिन्तन होता है, वैसा ही उसका स्वभाव और व्यक्तित्व बन जाता है। अतः क्षण – प्रशिक्षण अपने चिन्तन का प्रक्षालन कीजिए और ब्रह्माण्ड की शक्तियों के कृपा- पात्र के बनिए। निम्नलिखित पंक्तियों को हमेशा याद रखिए और आगे बढ़ते रहिए:-
” गिरते हैं जब विचार तो,गिरता है आदमी।
उठते हैं जब विचार तो, उठता है आदमी।।
क्रमशः

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