कण-कण में है व्याप्त तू, फिर भी निर्विकार कैसे?
प्रवासी तू मानव मन का, फिर भी मन में छह विकार कैसे?

सत्यं शिवं सुंदरम तू, करता दुर्गुणों का बहिष्कार कैसे?
ओ सृष्टि के स्रष्टा बता, हुआ तेरा आविष्कार कैसे?

मानव संसार का प्राणी है, प्रभु तू भी तो संसारी है।
फिर भी तू अलौकिक शक्ति है, विस्मित बुद्घि ये हमारी है।

नेति-नेति कह सब हारे, हुआ न कोई सफल।।
जीवन बदल रहा पल-पल,
प्रमाण सहित कोई तो बताये, एक छोटी सी बात।
पहले दिवस हुआ धरती पर, या बीती थी रात?
ओ चट्टानों तुम बोलो, सहीं कितनी सर्दी, गर्मी, बरसात?

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