garībīभारत में आंकड़ों के खेल के जादूगर बहुत हैं। ये जादूगर बड़ी होशियारी से आंकड़ों का ऐसा खेल बनाते दिखाते हैं कि अच्छे से अच्छा विशेषज्ञ या विवेकशील व्यक्ति भी इनमें उलझकर रह जाएगा। उसका सिर भी चकरा जाएगा और वह भी आंकड़ों के जादूगर को उसके बौद्घिक कौशल के लिए बधाई दिये बिना नही रहेगा। इन आंकड़ों से ही देश के पिछले सभी लोकसभा चुनाव हारे जीते गये हैं। इनका मकडज़ाल ऐसा है कि नेता को इनसे बाहर नही निकलने देता और ना ही अधिकारी वर्ग और जनता को ही बाहर निकलने देता है।

अब बात करें भारत में गरीबी की, तो इसके विषय में भी ‘आंकड़ों के जादूगरों’ ने प्रारंभ से ही आंकड़ों की ‘चौसर’ बिछाने का काम किया है, पर बेचारे यह अनुमान नही लगा पाये कि वास्तविक गरीब कौन है और गरीबी कहते किसे हैं? इस देश में सुबह से शाम तक जी तोड़ मेहनत करके रात को गहरी नींद लेने वाले ‘बादशाह’ बहुत हैं, जबकि कुछ ‘चोर’ ऐसे भी हैं जो दिन भर सरकारी कार्यालयों में या किसी अन्य माध्यम से निन्यानवे के फेर में लगे रहते हैं। दिन के उजाले में जितनी आंतडिय़ा खिंची दिखती है, और जो रात को गहरी नींदलेकर अपनी ‘बादशाहत’ दिखाते हैं, वे हमारे आंकड़ों के जादूगरों की दृष्टि में गरीब हैं, और जिसकी तोंद को देखकर यह अनुमान लगाया जाता है कि ये तो खुश होंगे वे रात को नींद न आने की ‘कंगाली’ के मारे होते हैं, जिन्हें अमीर माना जाता है।

अमीरी गरीबी केवल बहम है। एक घटना सोशल मीडिया पर आयी। एक विदेशी महिला ने अपने छोटे बच्चे के लिए एक होटल मालिक से एक गिलास दूध लिया, जो उसे दो सौ रूपये में दिया गया। पर वह दूध उस महिला की लापरवाही के कारण गाड़ी में बैठने पर बोतल की डाट ढीली रहने के कारण बिखर गया। कुछ समय उपरांत बच्चे को भूख लगी तो वह रोने लगा। तब महिला ने बोतल के रखे दूध को प्रयोग करना चाहा, परंतु वह यह देखकर बड़ी दुखी हुई कि उसकी बोतल वाला दूध गाड़ी में बिखर गया था। तब उसे फिर दूध की इच्छा हुई। तब तक गाड़ी भी शहर से दूर निकल चुकी थी। कहीं जंगल में एक चाय वाले की दुकान उसे दिखाई दी। महिला ने अपना ड्राइवर उस चाय वाले के पास दूध के लिए भेजा। चाय वाले ने कह दिया कि हम दूध नही बेचते।

इस पर वह महिला स्वयं उस चाय वाले के पास गयी और अपने बच्चे के लिए दूध प्राप्त करने की प्रार्थना करने लगी। चाय वाले ने कहा कि बच्चे के लिए अगर आप दूध चाहती हैं तो अवश्य मिलेगा। चाय वाले ने एक गिलास दूध महिला की बोतल में डाल दिया। महिला उस चाय वाले को भी वही दो सौ रूपये देने लगी। चाय वाला हाथ जोडक़र कहने लगा-‘बहन! हम बच्चों के लिए दिये गये दूध का कोई पैसा नही लेते हैं।’

महिला ने अगले दिन सारी घटना को वर्णित कर टवीट किया कि आप बतायें कि वास्तविक गरीब कौन है? हमारा मानना है कि हमारे भारत में भ्रष्टाचार नाम की कोई चीज नही है। यदि है तो वह ‘इंडिया’ में है। इंडिया का नैतिक पतन हुआ है, और जब संबंधों का बाजारीकरण या व्यावसायीकरण हो जाता है तो ऐसी समस्या आती ही है। आधुनिक कथित समाजशास्त्री व्यक्ति को संबंधों के प्रति नैतिक नही बना पाये और ना ही उनके पास लोगों को नैतिक बनाने का कोई उपाय दिखता है, इसलिए समाज में अमीर बने गरीबों की संख्या अधिक है। ये लोग गरीब से अधिक दुखी हैं। इनका दिमाग  भी खराब है (टेंशन की बीमारी इन्हीं में मिलती है) और स्वास्थ्य भी खराब है।

भारत में गरीबी रेखा तय करने की शुरूआत योजना आयोग ने 1962 ई. में एक कार्यकारी समूह बनाकर की थी इसने प्रचलित मूल्यों के आधार पर प्रति व्यक्ति बीस रूपये मासिक उपयोग व्यय को गरीबी रेखा माना था। 1979 ई. में अलघ समिति ने गांवों में 49 रूपये तथा शहरों में 56.64 रूपये प्रति व्यक्ति मासिक व्यय को गरीबी रेखा बताया। 1993 ई. में लकड़ावाला समिति के मुताबिक गांवों में 205 रूपये तथा शहरों में 281 रूपये तय की गयी गरीबी रेखा 2009 में तेंदुलकर समिति ने गांवों में 447 रूपये तथा शहरों में 579 रूपये प्रति व्यक्ति मासिक खर्च को बारीकी रेखा बताया। तेंदुलकर समिति पर विवाद हुआ तो संप्रग सरकार ने रंगराजन समिति का गठन किया। जिसने गांवों में 972 रूपये तथा शहरों में 1407 रूपये प्रति व्यक्ति मासिक खर्च को गरीबी रेखा माना।

भारत में संपन्नता और संमृद्घि की जानकारी के लिए प्रसन्नता को पैमाना बनाया जाता रहा है। यह गरीबी का मौलिक पैमाना है। धन को गरीबी का पैमाना मानना पश्चिमी जगत की देन है। आप प्रसन्न हैं तो आप संपन्न हैं और यह प्रसन्नता भीतरी जगत का विषय है। इसलिए भीतर की दुनिया में व्यक्ति को दीप जलाने की शिक्षा दी जाती थी भारत में। आज उल्टा हो गया है। यह धन हमारे भीतरी दीप बुझा रहा है और बाहरी दीप जला रहा है।

भारत में ‘गरीबी’ की जानकारी लेने के लिए यही किया जाए और यह देखा जाए कि भीतरी दीपों की रोशनी में जिंदगी की मंजिल की ओर बढ़ रहे लोगों की संख्या कितनी है? तब आपको ज्ञात होगा कि ‘चायवाले’ को मालदार कहने का उस विदेशी महिला का उद्देश्य क्या था। प्रसन्नता में संपन्न रहने वाले लोगों की जब धन के कीड़ों को जानकारी होगी कि वास्तविक अमीर तो वे हैं, तब वह भी कुछ क्षण रूककर सोचेंगे और अपनी अमीरी के लिए प्रसन्नता को खोजने का काम करेंगे। अंधेरे दिलों को ‘अमीरी’ मत कहो। जलती हुई मसालों को, दीपों को ‘अमीरी’ का प्रतीक मानो। सारी परिभाषाएं सीधी हो जाएंगी। समस्याओं के समाधान मिल जाएंगे।

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