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आखिर अफगानिस्तान में हो रहे नाटक का सच क्या हो सकता है ?

अफगानिस्तान में होने वाला घटनाक्रम शायद एक बहुत बड़ा नाटक है दूसरे देश मे refugee भेजने का। ये जो लोग दिख रहे हैं क्या ये शरिया को मानने वाले लोग नही है। इनमें और तालिबान में अंतर क्या है। तालिबान में Aliens थोड़े है अफगानी ही है 90% अफगान वहां की सेना, ऑफिसर डॉक्टर सब तालिबान को support करते हैं इसलिए अमरीका back हो गया। भारत के लोग क्यो इतना उछल रहे समझ नही आ रहा। भारत का देवबंद क्या है वह भी तो तालिबान है। उसको खत्म कर अपनी पीढ़ियों की चिंता करो अफगान की चिंता करते हम केवल एक जोकर नजर आ रहे हैं। we are sitting on demographic time bomb
काबुल की दुर्दशा का कारण अमेरिका का पलायन नहीं अफगानी सेना का अपने दीन के प्रति समर्पण है।
काबुल की सड़कों पर बर्बरता का नंगा नाच हो रहा है। भारत अफगानिस्तान में अपनी पूंजी लगाकर जो चौड़ी-चौड़ी सड़कें बनाया था उस पर तालिबानी आतंकवादी राइफल लहराते हुए अपनी गाड़ियां दौड़ा रहे हैं।
अमेरिका और नाटो की दस हजार की सेना कुछ हजार तालिबानों को गुफा में छुपने के लिए मजबूर कर दी थी, लेकिन क्या कारण है कि साढ़े तीन लाख की अफगानी सेना उन्हें नहीं रोक पायी? वास्तविकता तो यह है कि अफगानी सेना नें युद्ध ही नहीं लड़ा। बीस वर्षों से अमेरिका के पैसे पर पल रहे और प्रशिक्षित किए जा रहे सैनिक इन बर्बर असभ्यों से भला कैसे हार गए? वास्तविकता तो यह है कि वे हारे नहीं बल्कि स्वयं एक-एक राज्य सौंपते गए और अंत में काबुल भी सौंप दिए, क्योंकि यह उनके दीन की बात थी। भले ही वे अमेरिका से वेतन ले रहे थे लेकिन उनका ईमान तालिबानियों के साथ था। अमेरिका यह जान चुका था कि ओसामा और मुल्ला उमर के मारे जाने के बाद अफगानिस्तान में उसका अपना काम तो पूरा हो चुका है। अब वह ऐसे लोगों का बोझ ढो रहा है जो स्वयं तालिबान से लड़ने की इच्छा शक्ति नहीं रखते,बल्कि अपने मजहबी फरमान के आधार पर उनके प्रति सहानुभूति भी रखते हैं
बीस वर्ष एक लम्बा समय होता है। कब तक कोई देश दूसरे का बोझ उठाएगा? वह भी उस परिस्थिति में जब सभी प्रयास मजहब के सामने राख में घी सुखाने की तरह बेकार हों। वास्तव में यह अमेरिका का पलायन नहीं मजहब की मूलगामी सोच का प्रतिफल है। जो सरकारें और जो लोग इससे सबक नहीं लेंगे उन्हें भी भविष्य में ऐसे ही परिणाम के लिए तैयार रहना चाहिये।
अफ़ग़ानिस्तान की घटना से क्या सीखा.?

सारा व्यापार, घर और बैंक बैलेंस यहीं रह जाता है. जब तक राष्ट्र मजबूत नहीं तब तक रिफ्यूजी की ज़िंदगी है, व्यक्तिगत स्वार्थ के ऊपर है राष्ट्र
राजनेताओं के परिवार तो आराम से निकल जाते हैं, रह जाता है आम आदमी…

 

-सपना सक्सेना ‘दत्ता’

One reply on “आखिर अफगानिस्तान में हो रहे नाटक का सच क्या हो सकता है ?”

A Muslim country is always a Muslim country. They fight among themselves. But they are against hindus or other religions. It is strange that india invested billions in Afghanistan. Afgans or talibans will never support us.
It was a bad policy and waste of money to have supported Afghanistan.
We should concentrate on our own country. We can’t change other s.letus help ourselves. Let us not repeat the mistake of helping others. Especially Muslim countries. Bangladesh is a standing example how after taking help from India has become anti hindu.

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