नेहरू गांधी का भारत और भारत का तेजस्वी राष्ट्रवाद

देश के वीर क्रांतिकारियों और महान योद्धाओं के अनेकों बलिदानों के बाद जब  15 अगस्त 1947 को हमें आजादी मिली तो गांधी के ‘आशीर्वाद’ से देश का पहला प्रधानमंत्री बनने का ‘सौभाग्य’ पंडित जवाहरलाल नेहरू को मिला। देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तब आधी रात को मिली आजादी की पावन घड़ी में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा था – “कई साल पहले ( यहां पर नेहरू जी का संकेत 26 जनवरी 1930 को पंजाब में रावी नदी के किनारे ली गई उस शपथ की ओर है जब उन्होंने अपने अनेकों साथियों के साथ मिलकर कांग्रेस के अब तक के रास्ते से अलग हटकर देश को पूर्ण स्वाधीनता दिलाने का संकल्प व्यक्त किया था, कहने का अभिप्राय है कि उनके इस संकल्प से पहले हमारे जिन क्रांतिकारी योद्धाओं ने देश को पूर्ण स्वाधीनता दिलाने का संकल्प लेकर अपना सर्वोत्कृष्ट बलिदान दिया था, उन वीर योद्धाओं का वह संघर्ष और उनकी बलिदानी भावना नेहरू जी के लिए कोई मायने नहीं रखती थी)  हमने भाग्य को बदलने का प्रयास किया था और अब वो समय आ गया है, जब हम अपनी प्रतिज्ञा से मुक्त हो जाएंगे। पूरी तरह से नहीं लेकिन ये महत्वपूर्ण है। आज रात 12 बजे जब पूरी दुनिया सो रही होगी ,उस समय भारत स्वतंत्र जीवन के साथ नई शुरूआत करेगा।”
अपने इस भाषण में नेहरू जी ने देशवासियों को यह संकेत दिया था कि अब भारत स्वाधीन है और आज से हम नई जिंदगी की नई शुरुआत कर रहे हैं। हमारे सामने बहुत सारी चुनौतियां हैं, बहुत सारे संकल्प हैं, बहुत सारे सपने हैं और बहुत सारे अरमान हैं। जिन्हें हम सामूहिक रूप से पूर्ण करने का प्रयास करेंगे। नेहरू जी के इन शब्दों का अर्थ यदि यही था तो उनके इन शब्दों से ऐसा लग रहा था जैसे उनके भीतर एक राष्ट्र बोल रहा था । समग्र राष्ट्र की चेतना उनमें एकाकार हो गई थी। उनके भाषण की इन पंक्तियों से लोगों को लगा था कि नेहरू ‘बेताज के बादशाह’ के रूप में उनके सपनों , अरमानों और संकल्पों को पूर्ण करेंगे। तब देश को लगा था कि आजादी की यह नेमत यदि देश को मिली है तो इसमें केवल गांधी और नेहरू का योगदान है ।
नेहरू के भाषण की इन पंक्तियों से ही देश में ‘गोदी मीडिया’ का ‘शुभारंभ’ हो गया था। ‘गोदी मीडिया’ का अर्थ है – जो शासक वर्ग की चापलूसी करती हो और सच को सामने न आने देने का संकल्प लेकर अपना कार्य व्यवहार संपादित करती हो । इसके साथ ही जिसे सत्ता का वरदहस्त भी प्राप्त हो। इसी गोदी मीडिया ने नेहरू जी के शब्दों का महिमामंडन करते हुए नई सुबह, नई उम्मीद, नई शुरुआत का इतना गुणगान किया था कि भारत को ही नहीं, सारे संसार को ऐसा लगा था कि भारत अब आसमान की ऊंचाइयों को छूने ही वाला है । यहीं से भारत की राजनीति में नेताओं का बड़बोलापन आरंभ हुआ। जिन्होंने भाषण के माध्यम से लोगों को ऊंचे – ऊंचे सपने दिखाने आरंभ किए। दुर्भाग्य से नेहरू के शब्दों में जिस नियति को हमने उस समय प्राप्त किया था, नेताओं की बदनियति के चलते वह हमारे लिए दुर्भाग्य का कारण बन गई। क्योंकि आज तक नेताओं का बड़बोलापन, झूठे वचन पत्र , झूठे शपथ पत्र, झूठे घोषणा पत्र देने का खेल यथावत जारी है।
नेहरू के भाषण ने भारत के लोगों में इस भ्रम को मजबूती से फैला दिया कि देश को यदि आगे बढ़ा सकते हैं तो केवल नेहरू ही बढ़ा सकते हैं। उसी का परिणाम यह हुआ कि नेहरू जी 1952, 1957 और 1962 के आम चुनावों में विजयी हुए।
नेहरू ने अपने भाषण में कहा- “ये ऐसा समय होगा जो इतिहास में बहुत कम देखने को मिलता है।पुराने से नए की ओर जाना, एक युग का अंत हो जाना, अब सालों से शोषित देश की आत्मा अपनी बात कह सकती है।” उन्होंने कहा कि यह संयोग है कि हम पूरे समर्पण के साथ भारत और उसकी जनता की सेवा के लिए प्रतिज्ञा ले रहे हैं।इतिहास की शुरुआत के साथ ही भारत ने अपनी खोज शुरू की और न जाने कितनी सदियां इसकी भव्य सफलताओं और असफलताओं से भरी हुई हैं।
उन्होंने कहा कि समय चाहे अच्छा हो या बुरा, भारत ने कभी इस खोज से नजर नहीं हटाई, कभी अपने उन आदर्शों को नहीं भुलाया जिसने आगे बढ़ने की शक्ति दी. आज एक युग का अंत कर रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ भारत खुद को खोज रहा है. आज जिस उपलब्धि की हम खुशियां मना रहे हैं, वो नए अवसरों के खुलने के लिए केवल एक कदम है. इससे भी बड़ी जीत और उपलब्धियां हमारा इंतजार कर रही हैं। क्या हममे इतनी समझदारी और शक्ति है जो हम इस अवसर को समझें और भविष्य में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार करें?
जवाहर लाल नेहरू ने अपने भाषण के दौरान कहा था कि भविष्य में हमें आराम नहीं करना है और न चैन से बैठना है बल्कि लगातार कोशिश करनी है। इससे हम जो बात कहते हैं या कह रहे हैं उसे पूरा कर सकें। भारत की सेवा का मतलब है करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना. इसका अर्थ है अज्ञानता और गरीबी को मिटाना, बीमारियों और अवसर की असमानता को खत्म करना. हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा रही है कि हर आंख से आंसू मिट जाएं।
उन्होंने कहा- शायद यह हमारे लिए पूरी तरह से संभव न हो पर जब तक लोगों की आंखों में आंसू हैं और वो पीड़ित हैं तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा और इसलिए हमें मेहनत करना होगा। जिससे हम अपने सपनों को साकार कर सकें। ये सपने भारत के लिए हैं, साथ ही पूरे विश्व के लिए भी हैं। आज कोई खुद को बिलकुल अलग नहीं सोच सकता क्योंकि सभी राष्ट्र और लोग एक दूसरे से बड़ी निकटता से जुड़े हुए हैं। जिस तरह शांति को विभाजित नहीं किया जा सकता, उसी तरह स्वतंत्रता को भी विभाजित नहीं किया जा सकता। इस दुनिया को छोटे-छोटे हिस्सों में नहीं बांटा जा सकता है। हमें ऐसे आजाद महान भारत का निर्माण करना है जहां उसके सारे बच्चे रह सकें।
नेहरू ने कहा था आज सही समय आ गया है, एक ऐसा दिन जिसे भाग्य ने तय किया था और एक बार फिर सालों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और आजाद खड़ा है। हमारा अतीत हमसे जुड़ा हुआ है, और हम अक्सर जो वचन लेते रहे हैं उसे निभाने से पहले बहुत कुछ करना है। लेकिन फिर भी निर्णायक बिंदु अतीत हो चुका है, और हमारे लिए एक नया इतिहास शुरू हो चुका है, एक ऐसा इतिहास जिसे हम बनाएंगे और जिसके बारे में और लोग लिखेंगे।
पंडित नेहरू ने कहा था कि ये हमारे लिए एक सौभाग्य का समय है, एक नए तारे का जन्म हुआ है, पूरब में आजादी का सितारा. एक नई उम्मीद का जन्म हुआ है, एक दूरदर्शिता अस्तित्व में आई है. काश ये तारा कभी अस्त न हो और ये उम्मीद कभी धूमिल न हो। हम हमेशा इस आजादी में खुश रहें. आने वाला भविष्य हमें बुला रहा है।”
पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के इस भाषण पर यदि ध्यान दिया जाए तो पता चलता है कि उन्होंने आजाद भारत के अपने पहले भाषण में प्रधानमंत्री के रूप में भारतीय धर्म ,संस्कृति और इतिहास के संरक्षण की कोई बात नहीं कही। उन्होंने भारत के क्रांतिकारी आंदोलन की गरिमा पर भी कोई शब्द बोलना उचित नहीं माना था। वे नहीं चाहते थे कि भारत की नई पारी वैदिक धर्म की मान्यताओं को अपनाकर और भारत को विश्व गुरु बनाने के संकल्प को लेकर  आगे बढ़े। वे अपने भाषण में विश्व गुरु भारत की संकल्पना को भी व्यक्त नहीं कर पाए थे अर्थात वह विश्व राजनीति में भारत को ब्रिटेन या अपनी पसंद के देशों का पिछलग्गू बनाए रखने में ही देश का भला देखते थे। यदि देश का प्रधानमंत्री उस समय यह संकल्प व्यक्त करता कि हम विश्व गुरु रहे हैं और फिर विश्वगुरु बनने के लिए आज उठ खड़े होकर आगे बढ़ने का संकल्प व्यक्त कर रहे हैं तो बात दूसरी होती। तब देश दब्बू राष्ट्र न बनकर दबंग राष्ट्र के रूप में अपना अभियान आरंभ करता। यदि नेहरू भारत को विश्व गुरु बनाने का संकल्प व्यक्त करते तो यह बुरी बात नहीं होती। क्योंकि जो अमेरिका कभी ब्रिटेन का गुलाम रहा था उसने भी  अपनी आजादी के समय अपने तत्कालीन नेतृत्व के माध्यम से आगे बढ़ने का संकल्प व्यक्त करते हुए अपने आपको विश्व शक्ति के रूप में स्थापित करने का संकल्प लिया था, जो उसने बहुत जल्दी प्राप्त कर लिया था।
तेजस्वी राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के निर्माण में नेताओं का मनोबल और आत्मबल राष्ट्र का मनोबल और आत्मबल माना जाता है। यदि नेतृत्व अपनी बातों को कहने में संकोच करता है या मुँह छिपाता है तो तेजस्वी राष्ट्रवाद का निर्माण संभव नहीं है और यदि अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं से भी नेतृत्व मुंह फेरता है तो भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की संकल्पना को साकार नहीं किया जा सकता। बस, यही कारण रहा जिसके चलते हम नेहरू गांधी के भारत को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और तेजस्वी राष्ट्रवाद की अवधारणा के साथ संकल्पित नहीं कर पाए।

— डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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