सामाजिक नियमों का पालन करना उस समाज के सदस्यों पर निर्भर करता है। इन सद्गुणों को समाज तभी ग्रहण कर पाएगा, जब स्कूली स्तर से ही बच्चों में सदाचार के इन नियमों का पालन करने की आदत डाल दी जाए। इन अच्छी आदतों के विकास में योग एक अहम भूमिका निभा सकता हैज्वर्ष 2015 योग के लिहाज से खास महत्त्व रखता है। इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा पारित प्रस्ताव के तहत हर वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में विश्व भर में मनाए जाने का सराहनीय फैसला लिया गया। यह हम सभी भारतीयों के लिए एक गर्व का विषय है। योग हमारी प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के रूप में हमारे ऋषियों, विशेषकर महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अमूल्य संपदा है। आज की भागदौड़ एवं प्रतिस्पर्धा के इस गलाकाट युग में हम सभी अपनी मानसिक एवं आत्मिक शांति खोते जा रहे हैं। प्रतिस्पर्धात्मक हताशा और उचित मार्गदर्शन न मिल पाने के कारण युवा वर्ग नशे की गिरफ्त में बुरी तरह फंसता जा रहा है। इसके कारण कई घर तबाह हो रहे हैं। युवाओं और किशारों में नैतिक मूल्यों की कमी साफ तौर पर देखी जा रही है। इस कद्र हमारी युवा पीढ़ी का संस्कारविहीन होना, समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।नैतिक मूल्य एवं योग शिक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। योग शिक्षा से नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जा सकता है, इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। युवा शक्ति के दिशाविहीन होने एवं शिक्षा की गुणवत्ता में निरंतर गिरावट से मुख्यमंत्री स्वयं भी चिंतित हैं। ऐसे में यह विषय हम सभी के लिए विचारणीय हो गया है। प्रदेश में योग शिक्षा को विषय के रूप में पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का प्रदेश सरकार का निर्णय निस्संदेह सराहनीय एवं दूरगामी प्रभाव वाला है। प्रदेश के स्कूलों में बच्चों को योग शिक्षा के साथ नैतिक मूल्यों एवं हिमाचल की संस्कृति का पाठ भी पढ़ाया जा रहा है, यह स्वागत योग्य कदम है। सर्व शिक्षा अभियान भी इस दिशा में अग्रसर है। नैतिक मूल्यों की शिक्षा प्रदान करने का उद्देश्य आज के स्कूली बच्चों भविष्य के अच्छे नागरिक बनाने के लिए आवश्यक सभी मूल्यों को उनके उनके आचरण में ढालना है। आधुनिक भौतिकवादी युग की चकाचौंध में नैतिक मूल्यों का निरंतर हनन हो रहा है, जबकि शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य चरित्र निर्माण एवं नैतिक मूल्यों का विकास करना होता है। स्कूलों में प्रचलित पाठ्यक्रम केवल सूचनाएं प्रदान करता है। इससे विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास की इच्छा रखना बेमानी होगा। आज जरूरत है कि पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए जाने के साथ-साथ सुबह प्रार्थना के साथ योग भी करवाया जाए।यदि हम इतिहास के पन्नों को उल्टें, तो समझ में आता है कि भारत में अंग्रेजों के आगमन से पूर्व हमारी शिक्षा व्यवस्था भारतीय संस्कृति के आदर्शों, मूल्यों एवं विचारों पर आधारित थी। अंग्रेजों ने अपने लाभ के लिए हमारी इस शिक्षा व्यवस्था से इन मूल्यों को मिटाकर अपनी सुविधा को ध्यान में रखते हुए शिक्षा व्यवस्था विकसित की। इसका परिणाम यह हुआ कि आज हम शारीरिक रूप से भारतीय हैं, लेकिन मानसिक रूप से अंग्रेजी सभ्यता के गुलाम बन कर रह गए हैं। स्वतंत्रता के बाद हमारे नेताओं ने भी इस व्यवस्था को सुधारने की ओर ध्यान नहीं दिया। वर्तमान में जब हर तरफ अपराध का बोलबाला है, नैतिक मूल्यों की शिक्षा का महत्त्व और भी बढ़ गया है। केंद्र की मोदी सरकार एवं राज्य सरकार इस दिशा में संयुक्त रूप से प्रयत्नशील है। सरकार के विरोधियों को भी चाहिए कि सुधार की इस राह में किसी तरह के अड़ंगे न डालें।कोई भी समाज निर्धारित नैतिक मूल्यों के बिना अपनी सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को बनाए रखने में सफल नहीं हो सकता। इन्हीं मूल्यों को आधार बनाकर समाज के नियमों, कानूनों का निर्माण किया जाता है। इन नियमों का पालन करना उस समाज के सदस्यों पर निर्भर करता है। इन सद्गुणों को समाज तभी ग्रहण कर पाएगा, जब स्कूली स्तर से ही बच्चों में सदाचार के इन नियमों का पालन करने की आदत डाल दी जाए। इन अच्छी आदतों के विकास में योग एक अहम भूमिका निभा सकता है। योग शिक्षा एवं नैतिक शिक्षा का संबंध व्यवहार, कुशलता या कार्य कौशल से है। इसके बार में कहा भी गया है, ‘योग: कर्मशु कौशलम’। नैतिक शिक्षा एवं योग शिक्षा विद्यार्थियों को उन निर्धारित मूल्यों से अपने जीवन में अनपाकर जीवन की तमाम समस्या के समाधान के लिए अडिग रहकर संघर्ष हेतु सक्षम बनाती है। योग शिक्षा एवं नैतिक शिक्षा एक साधन है और इस साधन का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति के व्यवहार संबंधी क्रियाओं-कलाओं, अध्यात्म का ज्ञान कराना है। नैतिकता के नियमों का पालन करने के लिए राज्य सरकार का दबाव नहीं होता, बल्कि इनका पालन आत्म चेतना द्वारा किया जाता है। आत्म चेतना, आत्म निरीक्षण, आत्मानुभूति, आत्म विश्लेषण एवं आत्मावलोकन में योग शिक्षा एक सशक्त माध्यम बन सकती है। नैतिकता का आधारभूत सिद्धांत सभी धर्मों से एक समान है। अत: योग नैतिकता एवं संस्कृति का पाठ अवश्य पढ़ाया जाना चाहिए। धर्म सदैव नैतिकता से जुड़ा हुआ है। योग किसी धर्म विशेष का प्रचार नहीं करता, अपितु हमें जीवन को कैसे जिया जाए यह सिखाता। अत: योग शिक्षा एवं नैतिक शिक्षा विद्यार्थियों के चहुंमुखी विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।