Categories
विविधा

मंत्रिपरिषद के फेरबदल में राजनीतिक महत्व और चुनावी फायदे

शंकर अय्यर

राष्ट्रीय राजधानी में फेरबदल की खबरें तैर रही हैं। इन दिनों बातचीत में एक सवाल अक्सर उछाला जा रहा है, आप फेरबदल के बारे में क्या सुन रहे हैं। हालांकि पूछने वाला भी जानता है कि इस बारे में कोई कुछ नहीं जानता। फिर भी विभिन्न पार्टियों के राजनेताओं के बीच संभावनाओं के बारे में अटकलों और भविष्यवाणियों का कोई अंत नहीं है। मोदी मॉडल की राजनीति की परिभाषित विशेषता में हैरानी का तत्व है, जिसमें सिर्फ अप्रत्याशित होने की भविष्यवाणी की जा सकती है!

आम तौर पर मंत्रिपरिषद के फेरबदल में राजनीतिक महत्व और चुनावी फायदे को ध्यान में रखा जाता है-जिसमें व्यक्तिगत आकांक्षाओं के साथ पार्टी की महत्वाकांक्षाओं का समायोजन होता है। तथ्य यह है कि विभाग और विशेषाधिकार कुछ ही लोगों के लिए निहित होते हैं, जबकि कई लोग अपनी भक्ति के लिए पुरस्कृत होने की प्रतीक्षा करते रह जाते हैं, जो उनके गुस्से का कारण बन जाता है। उत्तर प्रदेश के 2022 में प्रस्तावित चुनाव के मद्देनजर अभी संस्थागत स्तर पर संदेश देने की अनिवार्यता है। उम्मीदें अपेक्षाओं से प्रेरित होती हैं और चुनावी लाभांश के लिए जरूरी है कि फेरबदल सिर्फ संदेश देने तक सीमित न रहे। राजनीतिक और सार्वजनिक विमर्श मोटे तौर पर ‘कौन-कौन’ कारक के इर्द-गिर्द घूमता है-यानी कौन अंदर होगा और कौन बाहर। जबकि अधीर मतदाताओं के लिए मुख्य मुद्दा यह है कि यह बदलाव क्या वादा करता है और कैसे आएगा। इसके लिए मंत्रिमंडल की संरचना की समीक्षा की जरूरत है और क्या और कैसे के कारक पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है।

यह फेरबदल इन्कार, बहिष्करण को खत्म कर दक्षता लागू करने के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने का एक अवसर है-इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल करने पर विचार होना चाहिए, जैसा कि हरित क्रांति के लिए या हाल ही में आधार के लिए किया गया था। ऐसा करने के लिए पार्टी को ऐसे युवा नेताओं के समूह को लाने की आवश्यकता होगी, जिनकी भविष्य में हिस्सेदारी हो और जहां भी संभव हो, इसमें टेक्नोक्रेट को शामिल करना चाहिए, ताकि केंद्र में पार्टी की राजनीतिक ताकत का लाभ उठाया जा सके और ऐसा एक दर्जन से अधिक भाजपा शासित राज्यों में प्रदर्शन से दिखाया जा सकता है।

यहां इस संबंध में कुछ विचार सुझाए जा रहे हैं।  कल्याण मंत्री (मिनिस्टर फॉर वेलनेस)- महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की दयनीय दशा को उजागर कर दिया है। मोदी सरकार ने 2017-18 में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को उन्नत करने और 1.5 लाख कल्याण केंद्र बनाने की घोषणा की थी। जाहिर है कि इनमें से बहुत से केंद्र स्थापित नहीं हुए। इसे लागू करने के लिए एक मंत्री को कैसे शामिल किया जाए, ताकि वह केंद्र एवं राज्यों के बीच सेतु बने, ताकि ग्रामीण व शहरी गरीबों के लिए मानवीय और भौतिक आधारभूत संरचनाओं के विस्तार के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का मॉडल तैयार करे?

ई-गवर्नेंस मंत्री- ई-गवर्नेंस का परिदृश्य नारों और धन की कमी वाले कार्यक्रमों के बीच अटका है। लॉकडाउन ने साबित कर दिया कि ई-गवर्नेंस संभव है और यह उन लोगों के एक बड़े वर्ग को स्वीकार्य है, जिन्हें सेवाओं तक पहुंचने के मंच से वंचित कर दिया गया है। भारत के पास भविष्य के लिए क्रियाशील ई-गवर्नेंस स्थापित करने की खातिर किसी पेशेवर को मंत्रिमंडल में शामिल करके सेवा और वितरण के बीच की खाई को पाटने का अवसर है। निजीकरण मंत्री- सार्वजनिक वित्त की वर्तमान स्थिति कम लागत व उच्च विकास वाली अर्थव्यवस्था की स्थापना और 50 खरब डॉलर की जीडीपी की आकांक्षा के लिए एक बाधा है। मेरा मानना है कि विनिवेश के लिए लक्ष्य निर्धारित करना पर्याप्त नहीं है। निजीकरण और विनिवेश विकास के लिए धन जुटाने में केवल तभी सफल हुए, जब वाजपेयी सरकार में अरुण शौरी ने इसका समर्थन किया। वास्तव में राज्यों में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की स्थिति केंद्र की तुलना में बहुत खराब है। उम्मीद है कि केंद्र की सफलता राज्यों में साफ-सफाई के लिए प्रेरित करेगी।

जलवायु प्रौद्योगिकी मंत्री- भारत को जलवायु के अनुकूल परिदृश्य पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। दुनिया भर की 180 से अधिक कंपनियों ने एक प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। 700 खरब डॉलर से अधिक की वैश्विक बचत अब नए ईएसजी (इन्वायरॉन्मेंट सोशल गवर्नेंस) ढांचे से संबद्ध है। इसका मतलब यह है कि वैश्विक फंड उन देशों को चुनेंगे कि जहां निवेश करना है, जिसकी भारत को प्रौद्योगिकी और बाजारों तक पहुंच के लिए आवश्यकता है। भारत को निवेश के नए माहौल के लिए तैयार रहना चाहिए। रूफटॉप सोलर, ई-बसों जैसी सभी नागरिक केंद्रित पहलों को जोड़ने और एक मंत्री के अधीन सर्वोत्तम प्रथाओं को लागू करने के बारे में क्या विचार है?

कानूनी सुधार मंत्री- भारत की कानून की पुस्तकें पुराने कानूनों से भरी हैं, जो निवेश, रोजगार सृजन एवं विकास में बाधा डालती हैं। इन कानूनों को अक्सर छोटे व्यवसायों और उद्यमियों के उत्पीड़न के लिए इस्तेमाल किया जाता है। केंद्र ने पहले मसौदा कानून तैयार किया और राज्य सरकारों को सलाह दी है, लेकिन नए कानून बनाना और उसे राज्यों पर छोड़ना पर्याप्त नहीं है। समयबद्ध तरीके से पुराने कानूनों की पहचान करने और उन्हें समाप्त करने की तत्काल आवश्यकता है। इसके लिए सरकार को समयबद्ध लक्ष्य के साथ एक मंत्री को जिम्मेदारी देने की जरूरत है।

सरकार की वर्तमान संरचना परस्पर विरोधी परतों का एक जटिल गठबंधन है। भारत सरकार की निर्देशिका में 50 मंत्रालयों और 60+2 विभागों की सूची है-इसके अलावा 27 आयोगों और समितियों, 289 सार्वजनिक उपक्रमों/कंपनियों, 176 अधीनस्थ कार्यालयों, 555 वैधानिक/स्वायत्त निकायों, 613 अकादमियों/संस्थानों आदि के नाम शामिल हैं। सुधारों के तीन दशक बाद भी भारत में कोयला, इस्पात, विमानन और वस्त्र मंत्रालय बने हुए हैं। अराजकता की स्थिति को समझने के लिए देखिए कि पानी, जो सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण समस्याओं में से एक है, का प्रबंधन कैसे किया जाता है। पूरे भारत में पानी का गंभीर संकट है। इसका प्रबंधन छह से अधिक मंत्रालयों और फिर 30 राज्यों के अधीन है। इसे बदलना होगा, लेकिन भारत आम सहमति के लिए इंतजार नहीं कर सकता। मंत्रिमंडल में फेरबदल शासन में नवाचार को शामिल करने, मंत्रियों को लक्षित जिम्मेदारियां देने और परिणामोन्मुख शासन स्थापित करने के लिए एक मॉडल बनाने का अवसर प्रदान करता है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version