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पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा : नया सवेरा

दर्जनों पुस्तकों के लेखक पुरुषोत्तम शाकद्वीपी ‘साहित्यरत्न’ द्वारा लिखित ‘नया सवेरा’ पुस्तक एक कहानी संग्रह है। इस पुस्तक में लेखक ने कुल 21 कहानियों का संकलन किया है। ‘नया सवेरा’ भी एक नई कहानी है, जो इस पूरी पुस्तक का सार तत्व बन गई है।
पुस्तक के विषय में श्री अभिषेक ‘अमर’ जी का यह कहना नितान्त सत्य प्रतीत होता है कि ”इस संग्रह की कहानियों में मानव के जीवन संघर्ष, परिस्थितियों के दंश, मन की पीड़ा, मानव की मनोदशाओं, घटित घटनाओं, राष्ट्रीय सरोकारों , मानवीय व्यवहार और जीवन के संस्कारों, मानवीय मूल्यों, आध्यात्मिक आस्थाओं, पारस्परिक विश्वासों, मन के द्वंद्वों के आख्यान के साथ जिंदगी की जटिलताओं, परिस्थितियों की भयावहताओं, टूटते रिश्ते, दरकते जज्बातों, जीवन में घटित होते घातों -प्रतिघातों, त्रासदियों के संत्रासों, हृदय के एहसासों, विश्वासों, उत्कर्ष – पतन और उल्लासों, परिवेश प्रकृति के हालातों, जर्जर रूढ़ियों और समस्याओं को कहानी के कैनवास पर उतारने में श्री शाकद्वीपी जी सफल रहे हैं। कहानियों के शीर्षक पाठक के मन में जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं । कहानी का कौतूहल पाठक की चेतना को कहानी के अंत तक सजग रखता है। कहानियों का शिल्प विधान अनूठा है । भाषा भावों की अनुगामिनी होकर चलती है । कहानीकार की दृष्टि लक्ष्य भेद करने में सफल व समर्थ है। निश्चित ही ये कहानियां कथा साहित्य में नवीन प्राणवायु का संचार करेंगी।”
लेखक ने इस पुस्तक में जिन अन्य कहानियों को स्थान दिया है उनमें चंपा बोली हैप्पी दिवाली, ममता का त्याग, एहसास, मुनिया, मुखौटा उतर गया, पुनर्विवाह, पश्चाताप, सब्जीवाली बाई, प्यार की नदी, नो प्लास्टिक, गोविंद रुखसार, पुनर्मिलन, अद्भुत, प्रायश्चित, गुरु दक्षिणा , वृक्षारोपण, क्या मैं बिकाऊ हूं, खेल भावना और जो भुलाया नहीं जा सका – सम्मिलित हैं।
इन कहानियों में लेखक ने कहीं गरीब और गरीबी के दर्द को प्रकट करते हुए सफल अभिव्यक्ति दी है तो कहीं नारी के बांझपन को उसका कलंक मानते हुए उसकी मनोदशा का सफल चित्रण किया है। जबकि कहीं व्यक्ति को समय का सम्मान करने की प्रेरणा दी गई है तो कहीं समाज को नई दिशा देते हुए बेटियों के उत्साह में वृद्धि करने का प्रयास किया गया है।
किसी कहानी में नारी के मुख से पुरुष प्रधान समाज के खोखलेपन को प्रकट करते हुए यह कहलवाया गया है कि जब तुम जैसों के व्यवहार से नारी आहत होती है तो वह नारी कालिका और चंडी का रूप धारण कर लेती है। जबकि ‘नया सवेरा’ नामक प्रमुख कहानी में लेखक ने कश्मीर में हिंदुओं पर मुस्लिमों के मजहबी अत्याचारों की तस्वीर प्रस्तुत की है। लेखक का यह प्रयास वंदनीय है। जिसमें वह सत्य से तनिक भी समझौता करते दिखाई नहीं देते, परंतु साथ ही अपने दृष्टिकोण के मानवीय पक्ष को भी वह उजागर कर देते हैं, जब वह सांप्रदायिक सौहार्द को भी अनिवार्य मानते हुए उस पर प्रकाश डालते हैं।
लेखक ने अपनी ‘पुनर्विवाह’ नामक कहानी में जैसा कि कहानी के शीर्षक से ही स्पष्ट है पुनर्विवाह पर बल दिया है और कहानी के पात्रों के माध्यम से यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि किसी भी विधवा को पुनर्विवाह के उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए । क्योंकि प्रत्येक नर और नारी को अपना हंसी खुशी का जीवन जीने का मौलिक अधिकार है। इसी प्रकार ‘पश्चाताप’ में वह उलेमा को अपनी मूर्खता का आभास कराने में सफल होते हैं। मुस्लिम उलेमा कोरोना महामारी में सरकार और प्रधानमंत्री के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलता हुआ दिखाई देता है ।
लेखक कहीं मानवीय संवेदनाओं को शब्द देने में सफल हुए हैं तो कहीं वृद्धों के प्रति उपेक्षा के भावों पर वह वर्तमान नई पीढ़ी को भी यह संदेश देने में सफल हुए हैं कि उन के प्रति प्रेम और सम्मान का व्यवहार किया जाना चाहिए।
कुल मिलाकर लेखक की प्रत्येक कहानी कोई न कोई ऐसा संदेश देती है जिससे समाज की व्यवस्था को हम और भी बेहतर बनाने में सफल हो सकते हैं। वास्तव में लेखक या कहानीकार का उद्देश्य भी यही होता है कि वह अपनी प्रत्येक रचना से या प्रत्येक कहानी से समाज को सार्थक संदेश देता हुआ दिखाई दे । साहित्यकार का प्रयास यही होता है कि वह संसार में सार्थकता का प्रवाहमान स्रोत बना हुआ दिखाई दे। एक सफल और सार्थक जीवन जीने वाले लेखक के ये गुण इस पुस्तक के लेखक में स्पष्ट दिखाई देते हैं । जिससे यह पुस्तक बहुत ही अधिक समाजोपयोगी बन गई है । आज की युवा पीढ़ी को तो इसे अवश्य ही पढ़ना चाहिए।
इस पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार , धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता ,जयपुर 302003 हैं। पुस्तक प्राप्ति के लिए 0141-2310785 व 40 22 382 पर संपर्क किया जा सकता है। इस पुस्तक के कुल पृष्ठ 134 हैं जबकि पुस्तक का मूल्य ₹ 250 हैं।

  • डॉ राकेश कुमार आर्य
    संपादक : उगता भारत

 

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