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आतंकवाद

बंगाल में राजनीतिक हिंसा की मूल समस्या और उपाय

 

बंगाल की समस्या जम्मू कश्मीर से कम जटिल नहीं है। बंगाल में लगातार हो रही राजनैतिक हिंसा में राष्ट्रवादियों, हिन्दुओं भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमला होते देखकर हमें बहुत कष्ट होता है। हम तुरंत अपने नेतृत्व से प्रश्न करने लगते है पर हम कभी मूल समस्या को समझने का प्रयास नहीं करते।

बंगाल में हो रही राजनैतिक हिंसा कोई आज की बात नहीं है न ही ये एकदम से पिछले 7 वर्षों में होना शुरू हुई है। राजनैतिक हिंसा का इतिहास कई दशकों पुराना है।

1960 के दशक के बाद से सबसे पहले वहां कांग्रेस ने राजनैतिक हिंसा की शुरुआत की। उस समय वामपंथीयों को चुनाव पर विश्वास नहीं था और वो चुनाव का विरोध करते थे। तब कांग्रेस ने कई वामपंथी नेताओं की हत्या करवायी। इसके जवाब में वामपंथियों ने नक्सली (माओवादी) तैयार किया और इनका सहारा लेकर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। अब वामपंथियों ने 34 साल तक लगातार शासन किया और अपने शासनकाल में खूब राजनैतिक हिंसा का सहारा लिया। लेफ्ट ने अपने शासन काल में गुंडई, हत्या, हिंसा को इस हद तक पाला पोसा की इन पार्टियों के समर्थकों के खून में गुंडई, हिंसा समा चुकी है। इसका एक और कारण गरीबी, निरक्षरता और पिछड़ापन भी है। लेफ्ट ने बंगाल को बरबाद कर दिया और फिर आई ममता बनर्जी, बांग्लादेशी घुसपैठ और लेफ्ट के कुशासन के खिलाफ आवाज उठाकर सत्ता हासिल की और अब खुद लेफ्ट की लेगेसी को आगे बढ़ा रही है।

पिछले 50 सालों में बंगाल में बांग्लादेश भारी मात्रा में घुसपैठियों को बसाया गया, उनके आधार, वोटर आदि पहचान पत्र भी बनाएं इस तरह करके एक वोटबैंक तैयार किया। मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते बंगाल के कई इलाके आज मिनी पाकिस्तान बन चुके है।

बांग्लादेश बॉर्डर से लगे घरों में बम बनाए जाते है। अवैध घुसपैठियों का एक घर बांग्लादेश में हैं तो एक घर बंगाल में भी है। ये सारी बातें मोदीजी, मोटा भाई समेत भाजपा के सभी वरिष्ठ नेता जानते है। तभी राजनाथ सिंह ने चुनाव प्रचार करते वक्त कहा था कि बंगाल का चुनाव राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

पेंडुलम आलोचक कह रहे थे की चुनाव क्यों लड़ रही है भाजपा? बंगाल जीतना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण था, आप शरजील इमाम का वो बयान याद कीजिए जब उसने चिकन नेक पर कब्जा करके नॉर्थ ईस्ट को भारत से काटने की बात कही थी। अब शरजील इमाम जैसे देशद्रोहियों का समर्थन करने वाले लोग सत्ता में फिर से आ गए है। गद्दारों, गुंडों, अराजक तत्वों को सीधे सीधे सत्ता का संरक्षण प्राप्त है।

5 दशकों में बंगाल के युवाओं में हिंसक राजनीति की आदत डाली गई ताकि ये लोग तोलाबाज़ी, कटमनी आदि करके पार्टी फंड में पैसा जमा करें और रोजगार, शिक्षा व विकास जैसे मुद्दों पर ध्यान न दें। 5 दशकों में वहां हिंसक राजनीति का जाल तैयार हो चुका है। बंगाल की लाइफ स्टाइल ही ऐसी हो गई है।

बंगाली अस्मिता के नाम पर इन्हे भड़काना आसान है। पेंडुलम लोगों को मोदी की दाढ़ी से बड़ी आपत्ति हो रही थी। मोदी ने दाढ़ी ऐसे ही नहीं बढ़ाई थी। आपने चुनाव में देखा भी होगा दीदी को बार बार बंगाली अस्मिता की दुहाई देते हुए और मोदी शाह को बहारवाला कहते हुए भी सुना होगा। हिंदी भाषा के खिलाफ दीदी का द्वेष भी देखा होगा। ये सब बंगाली अस्मिता का खेल था जो वहां के लोगों की मानसिकता है।

बंगाल की राजनीति उत्तर भारतीय राजनीति से बहुत अलग है। संख्याबल आज भी अराजक तत्वों के साथ है। बाकी हर जगह कुछ ऐसे लोग होते है जिन्हे किसी चीज से कोई मतलब नहीं होता। जब तक आग इनके घर तक नहीं पहुंचती तब तक ये आंखो पर पट्टी बांधकर स्वार्थी जीवन जीते है।

पेंडुलम लोगों को इसपर भी बड़ी आपत्ति हुई की बीजेपी टीएमसी के नेताओ को क्यों पार्टी में शामिल कर रही है। बंगाल में चलता है बाहुबल, बंगाल से हिंसा तब तक खत्म न होगी जब तक मौजूदा दौर के बाहुबलियों से भी बड़ा बाहुबली बीजेपी बंगाल में नही खड़ा करती।

जानकर मित्रों ने बताया कि बंगाल में 90 के दशक की बिहार वाली समस्या है। राजनीति मतलब दबंगई और बांग्लादेशी घुसपैठ से यह समस्या और विकराल हो चुकी है। राजनैतिक हिंसा बंगाल का चरित्र बन चुकी है।

बंगाल में भाजपा उम्मीदवार, भाजपा के बड़े नेता तक सुरक्षित नहीं है तो कार्यकर्ता और समर्थक तो कुछ भी नहीं है।

बंगाल में वोट भी फिक्स है। 30% मुस्लिम, 5% लीगल इलीगल कंट्रक्शन से जुड़े लोग, 20% गिट्टी बालू मोरंग के सप्लायर, ऑटो रिक्शा वाले, टोटो रिक्शा वाले, पार्टी के दया से गुमटी रखने वाले, सिविक पुलिस वाले, नरेगा कार्ड वाले (यहाँ नरेगा कार्ड सिर्फ पार्टी समर्थकों को दिया जाता है)। टोटल 55% वोट फिक्स है।

इस राजनैतिक हिंसा को रोकने के लिए केंद्र सरकार जो उपाय कर सकती है:

📌 केंद्रीय सुरक्षा बल: आर्टिकल 355 के तहत केंद्र सरकार बंगाल में हिंसा रोकने के लिए भारी मात्रा में सुरक्षाबलों की कम्पनियां तैनात कर सकतीं है। जैसा जम्मू कश्मीर में किया था।

📌 राष्ट्रपति शासन: राज्यपाल की अनुशंसा पर केंद्र सरकार लॉ & ऑर्डर सिचुएशन को आधार बनाकर धारा 356 का प्रयोग करके राज्य सरकार को बर्खास्त कर सकती है और राष्ट्रपति शासन लगा सकती है।

📌 बंगाल का पुनर्गठन: संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करके बंगाल राज्य का पुनर्गठन कर सकती है और बंगाल को केंद्र शासित प्रदेश बना सकती है। जैसे जम्मू कश्मीर और लद्दाख को बनाया है।

लेकिन ये तीनों उपाय बस कहने के लिए आसान है। बंगाल में राजनैतिक हिंसा को रोकना हमारे आपके सोचने, बोलने से कहीं अधिक जटिल है।

मोदी सोचते है की शांतिपूर्ण ढंग से और लोकतांत्रिक तरीके से काम निकाला जाए। मोदी विरोध में कुछ लोग न संविधान को मानते है न लोकतंत्र को और जनता उन्हे ही चुनकर सत्ता पर बिठा देती है।

लेकिन राष्ट्रपति शासन लगने के बाद दीदी चुप नहीं बैठेगी, उसके साथ साथ पूरा लेफ्ट कांग्रेस इकोसिस्टम खड़ा होकर सुप्रीम कोर्ट जायेगा। सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति शासन को रद्द कर देगा। (पहले भी कर चुका है)

अगर बंगाल का पुनर्गठन करते है तो टीएमसी अपने गुंडों और वोटर्स को विद्रोह करने के लिए कहेगी। दीदी ने बंगाल में अच्छा खासा अवैध घुसपैठियों का वोटबैंक बना रखा है।
बंगाल की परिस्थिति बहुत ही जटिल है और इससे निपटा इतना आसान नहीं जितना लगता है। फिर भी मोदीजी और मोटा भाई अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की सुरक्षा करने के लिए कुछ न कुछ तो करेंगे ही। हमें अपने नेतृत्व पर अटल विश्वास बनाए रखना होगा।

(पोस्ट में लिखे तथ्यो में जानकार मित्रों की टिप्पणियां शामिल है)
✍️ Abhijeet Srivastava

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