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भारतीय संस्कृति

स्वामी दयानंद और आर्य समाज का मनुस्मृति संबंधित दृष्टिकोण

मनु स्मृति सृष्टि के प्रथम राजा मनु द्वारा रचित प्रथम संविधान है ।

स्वामी दयानन्द आधुनिक भारत के प्रथम ऐसे विचारक है जिन्होंने यह सिद्ध किया कि वर्तमान में उपलब्ध मनुस्मृति मनु की मूल कृति नहीं है। उसमें बड़े पैमाने पर हुई है । यही मिलावट मनुस्मृति के सम्बन्ध में प्रचलित भ्रांतियों का मूल कारण है ।

मनुस्मृति पर सबसे बड़ा आक्षेप जातिवाद को समर्थन देने का लगता है । जबकि सत्य यह है कि मनुस्मृति जातिवाद नहीं अपितु वर्ण व्यवस्था की समर्थक है । वर्ण का निर्धारण शिक्षा की समाप्त होने के पश्चात निर्धारित होता था न कि जन्म के आधार पर होता था । मनु के अनुसार एक ब्राह्मण का पुत्र अगर गुणों से रहित होगा तो शूद्र कहलायेगा और अगर एक शूद्र का पुत्र ब्राह्मण गुणों वाला होगा तो ब्राह्मण कहलायेगा । यही व्यवस्था प्राचीन काल में प्रचलित थी । प्रमाण रूप में मनुस्मृति ९/३३५ श्लोक देखिये । शरीर और मन से शुद्ध- पवित्र रहने वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्रह्म जन्म और द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है ।

मनुस्मृति पर दूसरा आक्षेप नारी जाति को निम्न दर्शाने का लगता है । सत्य यह है कि मनुस्मृति नारी जाति को पुरुष के बराबर नहीं अपितु उससे श्रेष्ठ मानती है । प्रमाण रूप में मनुस्मृति ३/५६ श्लोक देखिये। जिस समाज या परिवार में स्त्रियों का आदर-सम्मान होता है, वहां देवता अर्थात् दिव्यगुण और सुख़- समृद्धि निवास करते हैं, और जहां इनका आदर-सम्मान नहीं होता, वहां अनादर करने वालों के सभी काम निष्फल हो जाते हैं, भले ही वे कितना ही श्रेष्ठ कर्म कर लें, उन्हें अत्यंत दुखों का सामना करना पड़ता है |

मनुस्मृति पर तीसरा आक्षेप यह है कि मनुस्मृति पशु हिंसा की समर्थक है । यह भी एक भ्रान्ति है । मनुस्मृति ५/१५ का प्रमाण देखिए । अनुमति देने वाला, शस्त्र से मरे हुए जीव के अंगों के टुकड़े–टुकड़े करने वाला, मारने वाला, खरीदने वाला, बेचने वाला, पकाने वाला, परोसने या लाने वाला और खाने वाला यह सभी जीव वध में घातक–हिंसक होते हैं।

मनुस्मृति हमें धर्म-अधर्म, पञ्च महायज्ञ, चतुर्थ आश्रम व्यवस्था, समाज व्यवस्था के विषय में मार्गदर्शन करता है। इसलिए वह आज भी प्रासंगिक है।

वर्तमान मनुस्मृति में २६८५ श्लोकों में से १४७१ श्लोक प्रक्षिप्त (मिलावटी) और १२१४ श्लोक ही मौलिक हैं। यही प्रक्षिप्त श्लोक मनु स्मृति के विषय में भ्रांतियों का कारण है। इसलिए इन श्लोकों को हटाकर सत्य श्लोकों को स्वीकार कीजिये । डॉ. अम्बेडकर ने प्रक्षिप्त श्लोकों में से ८८ प्रतिशत श्लोकों का प्रयोग अपने लेखन में किया है । इससे यही सिद्ध होता है कि डॉ. अम्बेडकर की मनुस्मृति के विषय में मान्यताएं प्रक्षिप्त और अशुद्ध मनुस्मृति पर आधारित है।

आर्यसमाज के विद्वान् डॉ सुरेंद्र कुमार द्वारा मनुस्मृति के विशुद्ध स्वरुप का भाष्य इस कार्य को जनकल्याण के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है । हमारे देश के सभी बुद्धिजीवियों को निष्पक्ष होकर इसे स्वीकार करना चाहिए ।

मनुवाद, ब्राह्मणवाद चिल्लाने से कुछ नहीं होगा। बुद्धिपूर्वक यत्न करने में सभी का हित है।
डॉ. विवेक आर्य
मनुस्मृति के विषय में भ्रांतियों निवारण के लिए आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित एवं डॉ सुरेंद्र कुमार द्वारा लिखित मनुस्मृति भाष्य अब उपलब्ध है।
पुस्तक मूल्य- ६०० रुपये (डाक खर्च सहित)
पृष्ठ संख्या- १०००+
प्रकाशक- आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली |
(Hard Bound)
https://www.vedrishi.com/book/manusmriti-dr-surendra-kumar/
से क्रय करें ।

One reply on “स्वामी दयानंद और आर्य समाज का मनुस्मृति संबंधित दृष्टिकोण”

मनुस्मृति में जो प्रक्षिप्त श्लोक हैं, उन्हें किसने मनुस्मृति में मिश्रित किया है?
वर्तमान समय में कितने ब्राह्मणों के बच्चे शूद्र बने हैं और कितने शूद्र के बच्चे ब्राह्मण।
क्या वर्तमान समय में हमारा समाज वर्ण व्यवस्था के अनुसार चल रहा है कि जाति व्यवस्था?
जब हमारा समाज वर्ण व्यवस्था के अनुसार चल रहा था तो ये व्यवस्था जाति व्यवस्था के रूप में कैसे बदल गई, क्या वर्ण व्यवस्था का विकृत रूप जाति व्यवस्था नहीं है?

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