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भारतीय संस्कृति

धर्मसंस्थापक योगेश्वर श्रीकृष्ण जी

धर्म संस्थापक योगेश्वर श्री कृष्ण
सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाला कोई ना था। कंस, जरासन्ध, शिशुपाल, दुर्योधन आदि जैसे दुराचारी व विलासियों का वर्चस्व बढ़ रहा था। राज्य के दैवीय सिद्धान्त से भीष्म जैसे योद्धा तक बंधे हुए थे।
ऐसी घोर अन्धकार युग में श्री कृष्ण का अविर्भाव हुआ। अपने अद्भुत चातुर्य एवं कौशल से श्रीकृष्ण ने इन राजाओं का विनाश करवाकर युधिष्ठिर को चक्रवर्ती सम्राट बनवाया।


चरित्र चित्रण
जन्म व छात्रावस्था– श्रीकृष्ण का जन्म लगभग ५२०० वर्ष पूर्व हुआ। वेद-वेदांग, धनुर्वेद, स्मृति, मीमांसा, न्यायशास्त्र व सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैत व आश्रय इन छः भेदों से युक्त राजनीति उनके अध्ययन के विषय थे।
लोकनायकत्व – अरिष्ट नामक पागल बैल, कैशी नामक दुर्दम्य घोड़े व कालिया नाग से मुक्ति दिलाकर , राजा इन्द्र का विरोध करते हुए गोवर्धन पूजा को मान्यता दिलाते हुए वे बचपन से ही गौकुल वासियों के नायक बन गए थे।
संघ राज्य के समर्थक – कंस का वध कर पुनः संघ राज्य की स्थापना की।
अर्ध्यदान के पात्र युगपुरुष – राजसूर्य यज्ञ की समाप्ति पर भीष्म ने युधिष्ठिर अर्ध्य दिलवाया कि, समस्त पृथिवी पर अर्ध्य प्राप्त करने के सबसे उत्तम अधिकारी श्रीकृष्ण ही हैं, क्योंकि वेद-वेदांग का ज्ञान व बल में सम्पूर्ण पृथिवी पर इनके समान कोई और नहीं है।
संयम एवं ब्रह्मचर्य की साधना – विवाह के १२ वर्ष पश्चात तक ब्रह्मचर्य की साधना की । ऐसे महात्मा के लिए ८-८ पटरानियां व १६००० रानियां होने के अनर्गल प्रलाप किया गया। ब्रह्मवैतादि पुराणकारों ने राधा का नाम लेकर उनके उज्जवल चरित्र को कलंकित करने की कुत्सित चेष्टा किया।
ज्ञान – श्रीकृष्ण अप्रतिम ज्ञानी थे। गीता का ज्ञान संसार का सर्वोच्च उदाहरण है। वे शास्त्रों में पारंगत, शस्त्रों में निपुण व राजनीति के बृहस्पति थे।
महान योगी – श्रीकृष्ण महान योगी थे। श्रीकृष्ण ने तीन बार दृष्टि अनुबन्ध का प्रयोग किया। दुर्योधन के समक्ष राजदरबार में, युद्ध के समय अर्जुन को और तीसरी बार कौरवों को सूर्यास्त का भान कराया।
कूटनीतिज्ञ – शुक्राचार्य ने अपने नीतिसार में लिखा है कि,” कृष्ण के समान कुटनीतिज्ञ कोई इस पृथिवी पर नही हुआ। इसी कुटनीति के साथ पांडवों को सभी विपत्तियों से बचाते हुए विजयी बनाया |
मनोविज्ञानी – कर्ण से हारने के बाद युधिष्ठिर का मनोबल गिर गया था। पुनः शल्य के साथ युद्ध करने की अनुमति देकर उसका मनोबल बढ़ाया।
पाखण्ड का विरोध – धर्म के नाम पर ढोंग फैलाने वालों को श्रीकृष्ण मिथ्याचारी तथा विमूढ़ कहकर भर्त्सना करते हैं। कर्म को वेद से और वेद परमात्मा से उतपन्न मानते हैं ।
श्रीकृष्ण वेद को ही सर्वोपरि मानते हैं।
सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान, और वैराग्य इन छः का नाम ‘भग’ है। जिसके पास इनमें से एक गुण भी हो वह भगवान कहलाता है। इसीलिए श्रीकृष्ण जैसे महापुरुषों को भगवान कहा जाता है।
ईश्वर के पास ये सभी गुण है इसीलिए ईश्वर भी भगवान है। किन्तु भगवान ईश्वर नहीं है।
श्रीकृष्ण स्वयं कहते है कि मैं ईश्वर नही हूँ। वे कहते है कि, मैं यथासाध्य मनुष्योचित प्रयत्न कर सकता हूँ, किन्तु देव (ईश्वर) के कार्यो में मेरा कोई वश नहीं।
श्रीकृष्ण एक महान योगी, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, योद्धा, विद्वान और एक आप्त पुरुष थे |
हम मूढ़ बनकर उनका अपमान ना करें, अपितु उनके उज्जवल जीवन चरित्र का अधिक से अधिक प्रचार व प्रसार करें।
ओ३म्।
….. फेसबुक से साभार ।

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