हमारे नेताओं को अजमेर में चिश्ती की दरगाह तो याद रहती है महर्षि दयानंद का उद्यान याद नहीं रहता


कल शाम लगभग 7:30 बजे हम अजमेर स्थित परोपकारिणी सभा पहुंचे। जहां पर महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज के जीवन से जुड़ी अनेकों घटनाओं का सजीव चित्रण ऋषि उद्यान के एक भवन में किया गया है। महर्षि के जीवन से जुड़ी अनेकों घटनाओं का निरीक्षण कर मन प्रसन्न हो गया।
ब्रह्मचारी नीलेश जी ने इस अवसर पर हमारा मार्गदर्शन किया।
हमारे यात्री दल में मैं स्वयं ,श्री तोरणसिंह आर्य जी, श्रीनिवास आर्य जी व बेटा अमन आर्य रहे।

हम सभी को इस बात पर घोर आश्चर्य व दुख हुआ कि आजादी के बाद जितने भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री ,राज्यपाल या अन्य केंद्रीय व प्रांतीय मंत्री अजमेर पधारे उन्होंने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मोइनुद्दीन चिश्ती जैसे हिंदूद्रोही व्यक्ति की मजार पर जाकर तो चादर चढ़ाई परंतु महर्षि दयानंद उद्यान में आकर कभी यह कहने का साहस नहीं किया कि महर्षि दयानंद इस देश के स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्रधार थे ।

भारत के किसी नेता राजनेता ने कभी यह कहना भी उचित नहीं माना कि महर्षि दयानंद पहली बार ‘स्वराज्य’ शब्द का चिंतन इस देश को दिया और ‘वेदों की ओर’ लौटने का नारा देकर भारत में तेजस्वी राष्ट्रवाद की विचारधारा को मजबूत किया और उसे नई धार दी। निश्चित रूप से इस उपेक्षा वृत्ति के कारण देश का भारी अहित हुआ। क्योंकि स्वराज्य, वेद और वैदिक तेजस्वी राष्ट्रवाद की विचारधारा को आगे बढ़ाने में राजनीति बाधक बन गई । यदि महर्षि दयानंद के उद्यान में हमारे नेताओं का बार-बार आगमन होता रहता तो निश्चय ही महर्षि के जीवन की सुगंध उन्हें तेजस्वी राष्ट्रवाद के निर्माण के लिए प्रेरित करती रहती। लेकिन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाने वाले मानसिक रूप से पक्षाघात का शिकार हुए राजनेता बार-बार चिश्ती की दरगाह पर जाते रहे और इस देश को सेकुलरिज्म का ऐसा बेतुका पाठ पढ़ाते रहे जिससे देश गर्त में चला गया। नेताओं के इस आचरण से ही ‘गंगा जमुनी संस्कृति’ की मूर्खता पूर्ण अवधारणा भारत में विकसित हुई जिससे हम वर्तमान की अनेकों विसंगतियों को झेल रहे हैं।
निश्चय ही यह कहना ठीक है कि उधारी मानसिकता और उधारी सोच देश, समाज और राष्ट्र का भारी अहित करती हैं। जिससे हमारी राजनीति को सबक लेना चाहिए।
महर्षि दयानंद के महान व्यक्तित्व को हम नमन करते हैं । जिन्होंने अपने समय में पौराणिक पाखंडी पंडितों के पाखंड का तो विरोध किया ही, साथ ही मुसलमानों के विज्ञान के विरुद्ध सिद्धांतों, मान्यताओं और धारणाओं का भी जोरदार खंडन किया। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों की धार्मिक ,राजनीतिक व सामाजिक सभी प्रकार की मान्यताओं का भी उतनी ही प्रबलता से विरोध किया । इस प्रकार महर्षि दयानंद एक ऐसे विशाल व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने एक ही समय में अपने लिए अनेकों चुनौतियां खड़ी कीं और उनका निर्भीकता से सामना किया।

समाज सुधारक , वेदोद्धारक, देश धर्म व संस्कृति के रक्षक और मानवता के प्रहरी महर्षि को हृदय से नमन कर हमने उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं का गंभीरता से निरीक्षण किया और उनके स्वयं के द्वारा प्रयोग की जाने वाली उन वस्तुओं को भी बहुत श्रद्धा के साथ देखा जो यहां पर यथावत रखी गई है।
अब प्रातः काल में 4:05 बजे हम ऋषि उद्यान को छोड़कर भीनमाल के लिए प्रस्थान कर चुके हैं।
अजमेर से निकलते – निकलते यह पोस्ट मैंने लिखी है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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