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प्रमुख समाचार/संपादकीय

आज का चिंतन-05/02/2014

ज्ञान बाँटने के बाद छोड़ दें

संसार की सेवा के लिए

– डॉ.दीपक आचार्य

9413306077

dr.deepakaacharya@gmail.com

 

ज्ञान ऎसा कारक है जिसे अपने पास नहीं रखकर उन लोगों को बांट दिया जाना चाहिए जो इसे चाहते हैं।  अपने पास जो कुछ है वह समुदाय और संसार का है और इसलिए हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी आत्मिक प्रसन्नता की धाराएं तभी वेगवान रह सकती हैं कि जब हम अपने ज्ञान को औरों में बांटें। ज्ञान जब बिना बंटे रह जाता है तब वह उद्विग्नता और चिंताओं का जनक हो जाता है और मरते दम तक हमारे भीतर संचित ज्ञान अनुपयोगी पड़ा रहकर हमारे बुढ़ापे से लेकर मौत तक को बिगाड़ देता है और इसका असर दूसरे जन्मों में भी दृष्टिगोचर होने लगता है। इसलिए जो ज्ञान या हुनर हमारे पास है उसको मुक्त मन से बांटें और बांटते चलें। हमें इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि हमसे ज्ञान पाने वाले हमारे किसी काम आएगा या उससे हमारे किसी स्वार्थ की पूर्ति भविष्य में होगी ही। यह अपने आप में बहुत बड़ा भ्रम है। जिसे ईश्वर ने ज्ञान या हुनर दिया है उसमें उतनी ही उदारता दी हुई होती है और ऎसे में यह जरूरी है कि हम अत्यन्त उदारतापूर्वक उस ज्ञान को बांटें, जो हमें भगवान ने दिया है। कई लोगों के मन में ज्ञान या हुनर को बांटने को लेकर मनभेद और मतभेद हैं। उनका मानना है कि वे सारे लोग एक समय बाद हमारे ही सामने आ खड़े हो जात ेहैं जिन्हें हम ज्ञान बाँटते हैं। ऎसा होना स्वाभाविक ही है। मनुष्य समुदाय के बीच स्वार्थ, अंधानुचरी और लेन-देन के रिश्तों से लेकर मांग और आपूर्ति के सिद्धान्त हर युग में रहे हैं। इस युग में कुछ ज्यादा ही हैं। ऎसा चलता रहा है और चलता रहेगा। अपने शिष्यों के प्रति कभी भी अनुदार सोच रखने की जरूरत नहीं है। बल्कि यह मानकर चलें कि हमारी छवि या कृतज्ञता वे स्वीकारें या नहीं, मगर उनकी आत्मा में वो सब कुछ गहरे तक अंकित है जो हमारे साथ रहकर पाते हैं। यह इतना अमिट होता है कि इसे ताजिन्दगी किसी भी रबर से मिटाया नहीं जा सकता। चाहे संबंध रहें या न रहें। इसलिए ज्ञान या हुनर को मुक्त मन से औरों तक संवहित करें और जिस समय उन्हें इस बात का अहसास हो जाए कि वे पूर्ण हो गए हैं, उन लोगों को अपने मोह से पूरी तरह मुक्त कर स्वतंत्र उड़ान भरने के लिए संबंधों की रस्सी को तोड़ लें ताकि वे अपने इर्द-गिर्द ही नहीं बने रहें बल्कि दूर-दूर तक समाज और देश की सेवा करें तथा जो ज्ञान संवहन की धाराएं कहीं से भी प्राप्त की हैं, उनका लाभ आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं।

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