सिंध के राजा दाहिर और उनके परिजनों का बलिदान

 

भारत के इतिहास में ऐसे अनेकों वीर/वीरांगना हुए हैं जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अदम्य साहस का परिचय दिया है। और जब बात बलिदानी परिवार की होगी तो इसमें सिंध के राजा दाहिर सेन एवं उनके स्वजनों के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। लेकिन इतिहासकारों ने ऐसा छल किया है कि राजा दाहिर सेन एवं उनके परिवार का इतिहास भुला दिया गया है। दाहिर सेन के बारे में बहुत खोजबीन करने के बाद हमें जो जानकारी प्राप्त हुई है उसे हम आप सभी के साथ साझा कर रहे हैं। आइए पढ़ते हैं बलिदानी राजा एवं उनके परिवार की गाथा।

✍️ *● कौन थे राजा दाहिर सेन*

इतिहासकारों ने राजा दाहिर के जन्म से लेकर राजा बनने तक के विषय में कुछ भी नहीं लिखा है। किंतु कुछ अवशेषों से ज्ञात होता है कि राजा दाहिर का जन्म 630 ईसवी में सिंध प्रांत (जो उस समय भारत भूमि का हिस्सा था।) में हुआ था। 663 में उन्हें सत्ता मिलने से पहले उनके भाई चन्द्रसेन सिंध के राजा थे।

👉 राजा चन्द्रसेन बौद्ध अनुयायी थे जिन्होंने अपने शासनकाल में बौद्ध धर्म का बढ़चढ़कर प्रसार-प्रचार किया। राजा दाहिर सिंध के सिंधी सेन राजवंश के अंतिम राजा थे। उनके समय में ही अरबों ने सर्वप्रथम सन ७१२ में भारत (सिंध) पर आक्रमण किया था। मोहम्मद बिन कासिम ने 712 में सिंध पर आक्रमण किया था जहां पर राजा दहिर सैन ने उन्हें रोका और उसके साथ युद्ध लड़ा। राजा दाहिर सेन का शासनकाल 663 से 712 ईसवी तक रहा उन्होंने अपने शासनकाल में अपने सिंध प्रांत को बहुत ही मजबूत बनाया परंतु अपने राष्ट्र और देश की रक्षा के लिए उन्होंने उम्मेद शासन के जनरल मोहम्मद बिन कासिम से लड़ाई लड़ी और हार गए। 712 ईसवी में सिंधु नदी के किनारे उनकी मौत हो गयी।

✍️ *● मोहम्मद बिन कासिम का सिंध पर आक्रमण*

जिस समय राजा दाहिर राजा बने उन दिनों ईरान में धर्मगुरु खलीफा का शासन था। हजाज उनका मंत्री था। खलीफा के पूर्वजों ने सिंध फतह करने के मंसूबे बनाए थे, लेकिन अब तक उन्हें कोई सफलता नहीं मिली थी। अरब व्यापारी ने खलीफा के सामने उपस्थित होकर सिंध में हुई घटना को लूटपाट की घटना बताकर सहानुभूति प्राप्त करनी चाही। खलीफा स्वयं सिंध पर आक्रमण करने का बहाना ढूंढ रहा था। उसे ऐसे ही अवसर की तलाश थी। उसने अब्दुल्ला नामक व्यक्ति के नेतृत्व में अरबी सैनिकों का दल सिंध विजय करने के लिए रवाना किया। युद्ध में अरब सेनापति अब्दुल्ला को जान से हाथ धोना पड़ा। खलीफा अपनी इस हार से तिलमिला उठा।

👉 ख़लीफ़ा द्वारा दस हजार सैनिकों का एक दल ऊंट-घोड़ों के साथ सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। इससे पहले सिंध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में 9 खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया या करवाया। 15वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया। सिंधी शूरवीरों ने सेना में भर्ती होने और मातृभूमि की रक्षा करने के लिए सर्वस्व अर्पण करने का आह्वान किया। कई नवयुवक सेना में भर्ती किए गए। सिंधु वीरों ने डटकर मुकाबला किया और कासिम को सोचने पर विवश कर दिया। सिंध की सेना ने इस प्रकार से लड़ा कि सूर्यास्त तक अरबी सेना हार के कगार पर खड़ी थी। सूर्यास्त के समय युद्धविराम हुआ। सभी सिंधुवीर अपने शिविरों में विश्राम हेतु चले गए। लेकिन ज्ञानबुद्ध और मोक्षवासव नामक दो लोगों ने राजा दाहिर के साथ विश्वासघात किया और कासिम की सेना का साथ दे दिया। इसके बाद कासिम की सेना द्वारा रात्रि में सिंधुवीरों के शिविर पर हमला बोल दिया गया। महाराज की वीरगति और अरबी सेना के अलोर की ओर बढ़ने के समाचार से रानी लाडी अचेत हो गईं। सिंधी वीरांगनाओं ने अरबी सेनाओं का स्वागत अलोर में तीरों और भालों की वर्षा के साथ किया। कई वीरांगनाओं ने अपने प्राण मातृभूमि की रक्षार्थ दे दिए। जब अरबी सेना के सामने सिंधी वीरांगनाएं टिक नहीं पाईं तो उन्होंने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर कर लिया।

✍️ *● राजा दाहिर की बेटियां और मोहम्मद बिन क़ासिम*

राजा दाहिर की दोनों राजकुमारियां सूरजदेवी(सूर्यादेवी भी कहा जाता है) और परमाल देवी ने युद्ध क्षेत्र में घायल सैनिकों की सेवा की। लेकिन तभी उन्हें दुश्मनों ने पकड़कर कैद कर लिया। सेनानायक मोहम्मद बिन कासिम ने अपनी जीत की खुशी में दोनों राजकन्याओं को भेंट के रूप में खलीफा के पास भेज दिया। खलीफा दोनों राजकुमारियों की खूबसूरती पर मोहित हो गया और दोनों कन्याओं को अपने जनानखाने में शामिल करने का हुक्म दिया, लेकिन राजकुमारियों ने अपनी चतुराई से कासिम को सजा दिलाई। लेकिन जब राजकुमारियों के इस धोखे का पता चला ‍तो खलीफा ने दोनों का कत्ल करने का आदेश दिया। तभी दोनों राजकुमारियों ने खंजर निकाला और कहा, एक क्रूर के तलवार से मरने से अच्छा है सिंध की इस रत्न से प्राण त्याग दिया जाए। और इसके बाद दोनों राजकुमारियों ने एक दूसरे के पेट में खंजर घोंप दिया। और इस तरह सिंध के अंतिम हिन्दू शासक एवं उनके राजपरिवार की सभी महिलाओं ने अपने देश के लिए बलिदान दे दिया।

*टिप्पणी :* राजा दाहिर सेन के बारे में चचनामा नामक पुस्तक में लिखा गया है, किंतु इस पुस्तक की ऐतिहासिकता पर संदेह ही व्याप्त होता है। इतिहासकार डॉक्टर मुरलीधर जेटली के मुताबिक़ चचनामा सन 1216 में अरब सैलानी अली कोफ़ी ने लिखी थी जिसमें हमले के बाद लोगों से सुनी-सुनाई बातों को शामिल किया गया। ये पुस्तक राजा दाहिर सेन के वीरगति प्राप्त होने के लगभग 5 शताब्दी बाद लिखी गई। इतने दिनों तक मौखिक इतिहास नहीं टिकता है, और धीरे धीरे उसमें मिलावट आ ही जाती है। इसी तरह असल इतिहास को बढ़ावा देने वाले पीटर हार्डे, डॉक्टर मुबारक अली और गंगा राम सम्राट ने भी चचनामा में उपलब्ध जानकारी की वास्तविकता पर सन्देह व्यक्त किया है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि चचनामा अरब लोगों द्वारा लिखी एक काल्पनिक पुस्तक मात्र है जिसका वास्तविकता से कोई सम्बंध नहीं है। हर एक सच्चे सिंधी को राजा दाहिर के कारनामे पर गर्व करना चाहिए क्योंकि उन्होंने सिंध के लिए प्राण त्याग दिया किंतु झुके नहीं।

*जय हिन्द*

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