गतांक से आगे…

हिंदुस्तान में आ जाने पर द्रविड़ों के साथ मेलजोल होने से उनकी गणना पच द्रविड़ो में हो गई ।
जहां नई बस्ती होती है, वहीं पर सब जातियों की वर्गाकार बस्ती बन सकती है ।इस तरह की पद्धतिवार बस्ती वाले गांव कोकण में ही है।इससे सिद्ध हो जाता है कि कोकणस्थ ब्राह्मण कहीं बाहर से आकर बसे ।प्रोफेसर कर्वे नेें अपने जीवन चरित्र में ऐसे 1 गांव का विस्तार पूर्वक बड़ा ही मनोरंजक वर्णन किया है और बतलाया है कि कब, क्यों और कैसे वह गांव जंगल काटकर बसाया गयाI


चिता से चित्पावन हुए अथवा कोकणस्थों में अभिमान बुद्धि व्यक्त करने वाली जिसका चित्त पावन् अर्थात पवित्र हो, वह चित्त पावन है। ऐसी व्युत्पत्ति हो सकती है, परंतु वास्तव में यह दोनों प्रकार के शब्द साधक कल्पनामात्र ही है। इन प्रमाणों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि चित्तपावन ब्राह्मण मिश्र निवासी यहूदी है। ये वहां से दक्षिण देश में आए और ब्राह्मण बन गए।यद्यपि ब्राह्मण बन गए पर उस समय किसी ब्राह्मण ने इनको ब्राह्मण नहीं माना। क्योंकि इनका आचार व्यवहार बहुत नीच था ,यह अपने कुत्सित और नीच व्यवहार का प्रचार भी करने लगे ,इसलिए दक्षिण में बहुत बड़ा कोलाहल मचा और तुरंत ही वहां के निवासियों की एक बड़ी सभा द्वारा कनारी भाषा में अफ्रीका खंड, इजिप्त देश दिन्द बन्दिरूव द्दजिप्तवान जिप्तवान या चितपावन एवं जातीय निर्णयवु। अर्थात यह अफ्रिका खंड के इजिप्त देश के रहने वाले हैं, इसलिए इनको इजिप्टवान या जिप्तवान अथवा चितपावन कहते हैं ।इस शीर्षक का एक विस्तृत घोषणा पत्र निकाला गया और उसमें लिखा गया कि चित्त पावन जाति के संबंध में अब तक चले हुए साद्यन्त कागज पत्रों को देख कर के और ऐतिहासिक प्रमाणों तथा अन्य अनेक विषयों पर विचार करके इस सभा में जो निष्पादित दी है ,उसको अच्छी प्रकार अवलोकन करने से सिद्ध होता है कि चित्तपावन जाति भारतखंड की मूल निवास नही है। यह अफ्रिका देशान्तर्गत इजिप्ट देश की रहने वाली है। इसके अतिरिक्त उनकी जाति के ही शोधक के कबूल करने तथा सभा को भी वैसा ही प्रतीत होने से यही सिद्ध होता है कि वे लोग भारतवर्ष के निवासी नही है। भारतवर्ष के 10 प्रकार के ब्राह्मणों को इनके के साथ मिलकर रहना सदाचार के अनुकूल नहीं है। इन चितपावनों के बारे में अब तक कोई भी निश्रयात्मक फैसला किसी की तरफ से नहीं हुआ ।चितपावनों की तरफ से जो कुछ लिखा हुआ इस सभा में आया है , उसमें कुछ भी आधार नहीं है। आधार न होते हुए भी सब की संपति लाने के लिए जो सभा की आज्ञा थी, न तो वही लाई गई और न कोई आधार ही पेश किया । इसलिए इस सभा की ओर से यह घोषणा की जाती है कि इस चितपावन जाति के लोग अफ्रीका खंड नामी दीप से आए है। चितपावन लोग भारत खंड के ब्राह्मण लोगों में मिल जाने और उन में अधर्मी तथा स्वार्थी आचार विचार फैलाने के लिए बड़ी-बड़ी युक्तिप्रत्युक्ति से प्रयत्न कर रहे हैं ,इसलिए भारतीय वासी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों को चाहिए कि इनके नीच चातुरी को बड़े ध्यान और बारीकी से देखते रहे । अर्थात उनके साथ मिलकर धर्म-कर्म जाति और सत्य से भ्रष्ट ना हो। इस प्रकार की चर्चा और प्रचार से महाराष्ट्र ब्राह्मणों के दो भेद हो गए। जो असल थे वे देशस्थ और जो बनावटी थे वे कोंकणस्थ कहलाने लगे। महाराष्ट्र में यह दोनों जातियां मौजूद है। और एक का दूसरे के साथ विवाहसम्बन्ध प्रायः नही है। कोकणस्थों ने ब्राह्मण बन चुकने पर राज्य लेने का प्रयत्न जारी किया।अन्त में यही पेशवा नाम के राजा हुए और पूना शहर इनका अड्डा हुआ।
क्रमशः

 

देवेंद्र सिंह आर्य

चेयरमैन : उगता भारत

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