जो काम नहीं हो पाए

उनका तनाव न रखें

– डॉ. दीपक आचार्य

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आदमी की आधी से ज्यादा जिंदगी इन चिंताओं में गुजर जाती है कि उसके सोचे हुए काम पूरे नहीं हुए और समय बीतता चला जा रहा है। ऎसा प्रत्येक इंसान के साथ होता ही है। शायद ही कोई बिरला ऎसा बचा हो जिसे सोचे हुए कामों के पूरा न हो पाने का कोई मलाल न हो।

बात आम की हो या खास की हो, इस मामले में हम सभी एक जैसे ही हैं। सबकी अपने भविष्य और जीवन को लेकर कल्पनाएं होती हैं, लक्ष्यों का निर्धारण करते हैं और अपनी कामनाओं और इच्छाओं की पूर्ति के लिए न्यूनाधिक प्रयास भी करते रहते हैं।

इंसान अपनी पूरी जिंदगी में जितने लक्ष्य सामने रखता है उसमें से सारे के सारे पूरे होना कभी संभव नहीं हो पाता।   इंसान अपनी पूर्ण आयु भी प्राप्त कर ले, तब भी उसके कामों का अधूरापन कभी समाप्त नहीं होता।   अपनी इच्छाओं के अनुरूप जो काम नहीं हो पाते हैं वे हमारे अवचेतन में सूचीबद्ध होते रहते हैं और जब भी हमारा अवचेतन सक्रिय होता है, यह सूची बार-बार उभरने लगती है। हर दिन इसमें एक न एक काम जुड़ता जाता है जो अगले दिन पुराना हो जाता है।

इस प्रकार  आयु में बढ़ोतरी के साथ ही हमारे अवचेतन का पुराना भण्डार बढ़ता जाता है  और यही हमारी जिन्दगी में तनाव ला देता है। हमें  रोजाना इस बात का मलाल सताता रहता है कि हमारे कई सारे सोचे हुए काम पूरे नहीं हो सके। कई तो बीज रूप में ही दफन हो गए और कई अंकुरण के उपरान्त नष्ट हो गए, कई काम ऎसे ही रहे जिनमें लाख कोशिशों के बाद भी सफलता नहीं मिली।

इन लंबित पड़े कामों के मारे हमारे जेहन में अपूर्ण कामों और विचारों का कबाड़ जमा हो जाता है। यही कबाड़ हमारे सारे तनावों का कारण है जिनकी वजह से मानसिक और शारीरिक   व्याधियां पैदा होती हैं और हमारे मन-मस्तिष्क की ऊर्जाओं का अकारण क्षरण करती रहती हैं।

इन स्थितियों में हमें हर क्षण यह टीस रहती है  कि  अमुक-अमुक काम हम नहीं कर सके या हमारी लाख कोशिशों के बावजूद अमुक काम नहीं हो सके। यह स्थिति हमें नकारात्मकता की ओर धकेलने वाली  होती है तथा इससे हम वर्तमान के कत्र्तव्य कर्म भी ठीक ढंग से नहीं कर पाते। हमेशा मन में उद्विग्नता रहती है और मन-मस्तिष्क तथा शरीर भारी-भारी रहने लगता है।

जो काम एक आम इंसान के लिए  बुनियादी तौर पर जरूरी होते हैं उन्हें वह चाहे-अनचाहे कर ही लेता है अथवा हो ही जाते हैं लेकिन हमें अनावश्क चिंता उन कामों की सताती रहती है जो हमारी आवश्यकता से नहीं बल्कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति से जुड़े होते हैं और उनकी प्राथमिकता अनिवार्य न होकर द्वितीयक, तृतीयक और बाद वाली होती है तथा उन कामों के नहीं हो पाने की वजह से हमारे सामान्य जीवनयापन में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती।

लेकिन मनुष्य स्वभाव ही ऎसा है कि वह हरेक काम को कर लेने को आतुर रहता है और ऎसे में हमारे मन-मस्तिष्क में ढेरों कामों का बोझ जमा हो जाता है जो हर क्षण हमें अधूरे कामों का अहसास कराने लगता है। एक सामान्य मनुष्य के दुःखों और  तनावों का यही मूल  कारण है जो उसका वर्तमान तक बिगाड़ देता है और ऎसे में वर्तमान से लेकर भविष्य तक के उन  कामों में भी अड़चने आनी शुरू हो जाती हैं जो वह नवीन और ताजे धरातल के साथ करना चाहता है।

हर इंसान हर काम नहीं कर सकता, कुछ काम हमारे भले के लिए ईश्वर हमसे करवाने के लिए राजी नहीं रहता, कुछ काम हमें अच्छे लगते हैं मगर भगवान को लगता है कि ये हमारे लिए न होकर औरों के लिए हैं, कुछ काम ऎसे होते हैं जो हमसे निम्न स्तर के होते हैं और नियति हमसे इससे बड़े-बड़े काम करवाना चाहती है। ऎसे में हम अपने इन कामों को लेकर तनावग्रस्त क्यों रहें ?

काफी सारे काम हम बेवजह ओढ़ लिया करते हैं।यह स्थिति इंसान को मानसिक  व्याधियों  का शिकार बना लेती है जो कालान्तर में शारीरिक व्याधियों के रूप में उभरने लगती है।  इन हालातों में दो-चार दिन अपने लिए निकालें और नितांत एकान्त पाते हुए गंभीरतापूर्वक यह सोचें कि जो काम रह गए हैं उनके बगैर भी हमारी जिंदगी चल सकती है अथवा चल गई है,ऎसे में हमें कामों के न हो पाने या अधूरे हो पाने का मलाल क्यों ?

जो काम हमसे किसी न किसी कारण से नहीं हो पाए, उन्हें  यह सोच-समझ कर दृढ़ इच्छाशक्ति रखते हुए मन से निकाल दें और यह निश्चय जान लें कि ये काम  हमारे लायक नहीं थे और ईश्वर ने उनके लिए दूसरे लोगों को मुकर्रर कर रखा है। हमारे लिए कोई बड़े श्रेयस्कर काम होंगे।

कोई सा एक दिन निकालें और उस दिन अपने सारे सोचे हुए कामों के भण्डार को दिल और दिमाग से बाहर निकाल कर मुक्त हो जाएं ताकि अवचेतन का कबाड़ खाली हो जाए और हमें नई जिंंदगी जीने के लिए , वर्तमान का सुख व आनंद भोगने तथा सुनहरे भविष्य के लिए  नई ऊर्जा और सामथ्र्य प्राप्त हो सके।

ऎसा होने पर ही हमारे जीवन में गहराते रहने वाले दुःखों और तनावों का स्थायी समाधान संभव है।  इससे हम मानसिक और शारीरिक व्याधियों से भी बचे रहेंगे और जीवन का हर आनंद भी पूरी मस्ती के साथ ले पाएंगे। फिर देर किस बात की, दृढ़ संकल्प लें और हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त हो जाएं, वैचारिक कबाड़ से।

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